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शिया सुन्नी में जंग

२५ फ़रवरी २०१३

पाकिस्तान भले ही इस्लामी गणतंत्र हो लेकिन यह मुसलमानों के दो धड़ों, शिया और सुन्नी के बीच जंग का मैदान बन गया है. इस साल 200 से ज्यादा शियाओं की हत्या हुई है, बदले की कार्रवाई में सुन्नियों को निशाना बनाया जा रहा है.

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तस्वीर: BANARAS KHAN/AFP/Getty Images

कराची में औरंगजेब फारुकी पर जानलेवा हमला हुआ तो उनके छह बॉडीगार्ड मारे गए. खुद उनकी जांघ में एक गोली बुरी तरह धंस गई. लेकिन बुरी तरह घायल होने के बाद भी उन्होंने शियाओं को चेताने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अस्पताल से उनका वीडियो संदेश जारी हुआ, "दुश्मन इस बात को सुन लें. मेरा काम अब सुन्नियों में जागरूकता पैदा करनी है. मैं सुन्नियों को इतना ताकतवर बना दूंगा कि उन्हें किसी भी शिया से हाथ मिलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. वे अपनी मौत खुद मरेंगे. हमें उन्हें मारने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी."

पिछले साल 25 दिसंबर को जारी इस वीडियो से शियाओं में दहशत लाजिमी है क्योंकि फारुकी एक चर्चित सुन्नी उलेमा हैं. इस साल क्वेटा में 200 शिया मुसलामनों की हत्या के बाद पूरी दुनिया की नजरें उस शहर पर हैं लेकिन उससे दूर पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी कराची में दोनों समुदायों के बीच झगड़े पर कम लोगों की नजर जा रही है. यहां शियाओं के छोटे छोटे झुंड बदले की कार्रवाई करते नजर आ रहे हैं.

मुश्किल होती जंग

आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका पाकिस्तान का साथ दे रहा है और उस पर इस बात का दबाव है कि अफगानिस्तान में आतंकवादियों का साथ दे रहे पाकिस्तानी संगठनों के खिलाफ कदम उठाए. लेकिन इस बीच लश्कर ए जंगवी के उभरने और हाल के दिनों में ताकतवर बनने के बाद आतंकवाद के खिलाफ युद्ध अपनी धार खोता जा रहा है.

लश्कर ए जंगवी (एलईजे) ने क्वेटा बम धमाकों की जिम्मेदारी ली है और पुलिस का मानना है कि पिछले छह महीने में कराची में 80 शियाओं की हत्या की जिम्मेदारी भी इसी संगठन पर बनती है. मारे गए लोगों में डॉक्टर, बैंकर और शिक्षक भी शामिल हैं.

Pakistan Quetta Schiiten Proteste gegen Anschläge
तस्वीर: AP

बदले की कार्रवाई

इसके बदले में कई सुन्नी नेताओं की भी हत्या की गई, जो फारुकी की विचारधारा से सहमति रखते हैं. इसे बदले की कार्रवाई समझा जा रहा है. फारुकी के दर्जनों समर्थकों की गोली मार क हत्या कर दी गई है.

कराची पाकिस्तान का एक मुश्किल शहर है, जहां तस्करों और ड्रग माफिया भी सक्रिय है और जहां हत्याएं राजनीतिक से लेकर बिजनेस और समुदाय से संबंधित हो सकती हैं. लेकिन जांचकर्ताओं का कहना है कि धीरे धीरे साबित होता जा रहा है मेहंदी फोर्स नाम का संगठन फारुकी समर्थकों की हत्या के पीछे है.

पाकिस्तान के धर्मनिरपेक्ष लोगों का दावा है कि इस साल के चुनावों के बाद देश ज्यादा सहिष्णु और लिबरल बन कर उभरेगा लेकिन कराची की घटनाओं से साबित हो रहा है कि देश में ध्रुवीकरण बढ़ता जा रहा है. कराची के रेडियो स्टेशन में काम करने वाले सुंदूस रशीद का कहना है, "शिया और सुन्नियों के बीच की दरार बढ़ती जा रही है. अब आपको अपना खेमा चुनना जरूरी हो गया है." रशीद कभी चांदी का हार अपने गले में पहनते थे, जो उनके शिया होने की निशानी थी और जिसे पहन कर वह काफी गौरवांवित महसूस करते थे. लेकिन अब उन्होंने इसे उतार कर किनारे कर दिया है क्योंकि उन्हें डर है कि यही हार कहीं उनके लिए निशाने का सबब न बन जाए.

'मुस्लिम नहीं शिया'

फारुकी दिसंबर के हमले से उबर चुके हैं. अब वह पूरी तरह स्वस्थ हैं और कराची के लांधी इलाके में एक दफ्तर में बैठे हैं. रॉयटर्स से बातचीत में उन्होंने शियाओं के बारे में अपनी राय रख दी, "हम कहते हैं कि शिया नास्तिक हैं. हमारे पास यह कहने का सबूत है. मैं चाहता हूं कि सुप्रीम कोर्ट मुझे बुलाए, तो मैं खुद उनके किताबों का हवाला देकर साबित कर सकता हूं कि वे मुस्लिम नहीं हैं."

बातचीत के बीच भी तस्बीह के दाने चुनते फारुकी कराची में देवबंदी संस्था अहले सुन्नुत जमात के मुखिया हैं. कभी इस संगठन का नाम सिपह ए सहाबा हुआ करता था लेकिन पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने जब आतंकवाद पर लगाम कसी थी, तो 2002 में इस पर पाबंदी लगा दी गई थी. फारुकी का कहना है कि वह हिंसा का विरोध करते हैं और कहते हैं कि एलईजे से उनका कोई रिश्ता नहीं, लेकिन सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि उनके समर्थक चरमपंथियों से मिले हैं.

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एलईजे की दहशत

चौदह साल की सजा के बाद 2011 में एलईजे के संस्थापक मलिक इशहाक को जेल से छोड़ा गया, जिसके बाद से वह कई जगहों पर सार्वजनिक रैलियों में शामिल हुए हैं. एलईजे ने इसके बाद दहशत फैलाने वाले हमले किए हैं. उन्होंने मस्जिदों को निशाना बनाया है, स्नूकर हॉल पर हमले किए हैं और लोगों को बसों से उतार कर उनकी हत्या की है.

पाकिस्तान में शियाओं की कुल संख्या के बारे में पक्की जानकारी नहीं है. अनुमान है कि आबादी का चार से 20 फीसदी शिया समुदाय का है. लेकिन एक बात पक्की है कि उनकी मौत बहुत तेजी से हो रही है. पिछले साल 400 शियाओं की हत्या हुई, जिनमें हजारा समुदाय के लोग शामिल हैं, जो मुख्य रूप से क्वेटा में रहते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि यह आंकड़ा इससे कहीं बड़ा है.

बाहर की ताकत

पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि इस "युद्ध" को भड़काने में अंतरराष्ट्रीय शक्तियां भी हाथ बंटा रही हैं. उनका दावा है कि एलईजे को सऊदी अरब और दूसरे अरब देशों से आर्थिक मदद मिल रही है, जबकि शिया संगठनों को ईरान से. क्वेटा के हमलों के बाद पैदा हुए दबाव की वजह से पाकिस्तान सुरक्षा एजेंसियों ने इशहाक को गिरफ्तार कर लिया है.

Trauer und Protest nach Bombenanschlag in Quetta Pakistan
तस्वीर: BANARAS KHAN/AFP/Getty Images

लेकिन कराची में फारुकी और उनके समर्थकों के विश्वास में कोई कमी नहीं आई है. जुमे की नमाज के बाद उन्होंने खुलेआम नारे लगाए, "शिया नास्तिक हैं, शिया नास्तिक हैं." फारुकी के समर्थन में इश्तेहार लिखे जा रहे हैं. उनका कहना है कि वह चाहते हैं कि सरकार शियाओं को गैरमुस्लिम करार दे, जैसा कि 1974 में अहमदिया मुसलमानों के साथ किया गया था. उनके मुताबिक यह पहला कदम होगा और इसके बाद उनकी किताबों पर पाबंदी लगाई जा सकेगी, "जब किसी का सामाजिक बहिष्कार होता है, तो वह अलग थलग पड़ जाता है. उसे लगने लगता है कि उसका विश्वास ठीक नहीं है और लोग उससे नफरत कर रहे हैं." फारुकी का कहना है कि उनकी हत्या सही हल नहीं है, "बातचीत करें और लोगों को बताएं कि वे गलत हैं."

शियाओं का अभियान

फारुकी के गढ़ से कुछ ही दूर कराची में शियाओं की भी सभा चल रही है. वे भी "जागरूक" होने की कोशिश कर रहे हैं. मलीर क्वार्टर में अधूरी मस्जिद के पास मजलिस वहादते मुसलेमीन (एमडब्ल्यूएम) का दफ्तर है, जो शियाओं की प्रमुख पार्टी है. इसके नेता एजाज हुसैन बहिश्ती सफेद पगड़ी और काले लबादे में बैठे हैं. वे महिलाओं को राजी करने की कोशिश कर रहे हैं कि वे भी उनके काम में साथ दें.

उनके पास ही ईरान के धार्मिक नेता आयातुल्लाह खुमैनी की तस्वीर लगी है, जिनकी अगुवाई में ईरान में 1979 की क्रांति हुई थी. बहिश्ती का कहना है कि वे एलईजे के उकसावे में नहीं बहने वाले हैं, "हमारा धर्म कहता है कि अगर आपकी हत्या की जाए, तो आप बदले की कार्रवाई न करें. अगर हम भी हथियार उठा लें तो देश का कोई भी हिस्सा आतंकवाद से खाली नहीं रहेगा. लेकिन हम ऐसा नहीं करेंगे. यह मना है."

क्वेटा हमलों के बाद एमडब्ल्यूएम ने कई जगह धरना प्रदर्शन किए हैं, जिससे पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी कराची पर काफी असर पड़ा है. हालांकि पुलिस का कहना है कि इस समुदाय के एक धड़े ने हिंसा का सहारा लिया है. जांचकर्ताओं का मानना है कि 20 सदस्यों वाले मेहंदी फोर्स नाम का ग्रुप देवबंदी गुरुओं पर हमला कर रहा है. जांच करने वालों का कहना है कि वे "शहीद" कोड नाम वाला यह अंडरग्राउंड संस्था लोगों को चोरी छिपे भर्ती कर रहा है.

Bombenanschlag in Quetta Pakistan
तस्वीर: Reuters

चोरी छिपे हिंसा

पुलिस सुपरिटेंडेंट राजा उमर खतब का कहना है, "इन लोगों का आतंकवाद से लेना देना नहीं है लेकिन शियाओं पर हमले के बाद वे संगठन में शामिल हो रहे हैं और हिसाब किताब बराबर करना चाह रहे हैं. वे धार्मिक नेताओं को मार रहे हैं." आरोप है कि पिछले साल नवंबर में कराची के अहसानुल उलूम मदरसा के पास मेहंदी फोर्स ने लोगों को निशाना बनाया, जिसमें फारुकी के छह छात्र मारे गए. इसके बाद मदरसा के एक कातिब की हत्या की गई और जनवरी में भी एक छात्र का मार डाला गया.

पुलिस के डीआईजी शाहिद हयात का कहना है, "निश्चित तौर पर यह बदले की कार्रवाई है. शिया पहले हमले नहीं करते हैं." सिटिजेन पुलिस लाएजन कमेटी के मुताबिक पिछले साल सितंबर से 19 फरवरी 2013 के बीच कराची में फारुकी के 68 समर्थक और 85 शियाओं की हत्या हुई है. पुलिस का कहना है कि कराची में हत्या राजनीति और ड्रग जैसे कई मुद्दों की वजह से होती है और इसमें पता लगाना बहुत मुश्किल है कि कौन सी हत्या किस वजह से हुई है.

कौन धर्म बेहतर

कराची में कुछ लोगों का मानना है कि मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट का भी इन हत्याओं में हाथ हो सकता है, जबकि कुछ लोग मानते हैं कि विरोधी सुन्नी धड़े भी इन हत्याओं में मदद कर सकते हैं. दोनों धड़ों ने बीच बचाव और सुलह की भी कोशिशें की हैं लेकिन इसमें उन्हें ज्यादा कामयाबी नहीं मिली है. वे एक दूसरे के जमात में जाकर बातचीत करना चाहते हैं लेकिन हाल की स्थिति को देखते हुए यह मुमकिन नहीं लग रहा है.

कराची के एंबुलेंस सर्विस अब्दुल सत्तार अहदी का नाम कभी नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया जा चुका है. वे इन दिनों बहुत व्यस्त हैं. अस्सी पार कर चुके अहदी शिया सुन्नी से ऊपर की बात कहते हैं, "अगर धर्म में इंसानियत नहीं, तो यह बेकार है. सबसे अच्छा धर्म इंसानियत है."

रिपोर्टः मैथ्यू ग्रीन (रॉयटर्स)/एजेए

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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