श्रीलंका में युद्ध अपराधों की जांच का विरोध
१९ मार्च २०१२श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में सैंकड़ों हिंदू, मसलमान, ईसाई और बौद्ध नेताओं ने श्रीलंका के झंडे फहराते हुए प्रदर्शनों में हिस्सा लिया और युद्ध अपराधों को लेकर जांच के बारे में अपनी बात कही. धार्मिक नेताओं के बयान के मुताबिक स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ गुट श्रीलंका में शांति भंग करना चाहते हैं और वे हर हालत में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को रोकेंगे. श्रीलंका की सरकार का भी मानना है कि संयुक्त राष्ट्र का यह कदम उसके अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने जैसा है.
2009 में आखिरकार श्रीलंका की सेना ने तमिल विद्रोहियों को हरा दिया और देश में दो दशकों से ज्यादा चल रहे गृहयुद्ध पर रोक लगाई. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि लड़ाई के दौरान श्रीलंका की सेना और तमिल विद्रोहियों ने मानवाधिकार उल्लंघन किए हैं और इस पर कार्रवाई की जानी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक गृहयुद्ध के आखिरी दिनों में हजारों आम लोगों को मार दिया गया. सरकारी सुरक्षा बलों ने जान बूझकर आम लोगों को हमलों का निशाना बनाया और दवाइयों और खाने पर रोक लगाने की कोशिश की. तमिल विद्रोहियों पर आरोप है कि उन्होंने बच्चों को अपनी सेना में शामिल किया और आम लोगों को कवच बनाकर हमलों से बचते रहे.
इस बीच श्रीलंका में तमिल मुद्दे का साथ दे रही भारतीय पार्टियों ने भारत सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है. तमिलनाडु की डीएमके पार्टी ने युद्ध अपराधों की जांच को मंजूरी देने से मना करने की सूरत में सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी है. सत्ताधारी गठबंधन में फूट से जूझ रहे भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस बीच कहा है कि भारत प्रस्ताव का समर्थन कर सकता है हालांकि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का मसौदा अब तक भारत को नहीं मिला है. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार श्रीलंका में तमिल लोगों के पुनर्वास पर खास ध्यान देगी और इस सिलसिले में वे श्रीलंका की सरकार से संपर्क में हैं. डीएमके के सदस्यों ने मनमोहन सिंह के बयान का स्वागत किया है, हालांकि यूपीए को भविष्य में अपना समर्थन देने के बारे में डीएमके मंगलवार को सत्ताधारी गठबंधन से बात करेगा.
रिपोर्टः एपी, पीटीआई/एमजी
संपादनः एन रंजन