संगीत से बदलती कैदियों की जिंदगी
२४ अगस्त २०१०लंबे अरसे तक प्रशिक्षण हासिल करने के बाद प्रेसीडेंसी और अलीपुर जेल में रहने वाले 54 कैदियों ने एक नृत्य व नाट्य मंडली की स्थापना की है. इनमें दस महिलाएं भी शामिल हैं.यह समूह अब जेल से बाहर भी कई नाटकों का मंचन कर चुका है. और इसे खासी वाहवाही मिल रही है.
जेल विभाग के आईजी बी.डी.शर्मा बताते हैं कि डांस थैरेपी का मकसद इन कैदियों को समाज के लिए कुछ करने का मौका देना था. इससे उनमें यह भावना पैदा होगी कि वे भी इसी समाज का हिस्सा हैं.इससे उनके जीवन में खुशियां भी लौटेंगी.
जानी-मानी ओडिसी नृत्यागंना अलकनंदा राय बीते दो वर्षों से इन कैदियों को प्रशिक्षण देकर उनको नृत्य और अभिनय की कला में माहिर बना दिया है. अलकनंदा कहती हैं कि शुरू में तो लगता ही नहीं था कि मैं इनके कभी मंच पर अभिनय के लिए तैयार कर सकूंगी. यह लोग ठीक से पांव तक नहीं उठा पाते थे.
सरकार की इस पहल से कैदियों के चेहरों पर मुस्कान लौट आई है. प्रेसीडेंसी जेल में सजा काट रहे सुनील मांझी का कहना है कि इससे हमारे जीवन में खुशियां लौट आई हैं. बीते कुछ वर्षों से मैं हंसना भूल गया था. अब मेरे चेहरे पर फिर मुस्कान लौट आई है. सुनील अब समाज के लिए कुछ बढ़िया काम करना चाहता है. अलकनंदा कहती है कि इन कैदियों को अभिनय करते देख कर समझा जा सकता है कि उनके जीवन में कितना बदलाव आया है.
डांस थैरेपी की वजह से इन कैदियों के लिए जेल की कोठरियां अब खुशहाल घर में बदल गई हैं. इससे उनको मानसिक और शारीरिक तौर पर तो मजबूती मिली ही है, जेल से छूटने के बाद अपराध की दुनिया से तौबा करने की कसम भी खा चुके हैं.
रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: एस गौड़