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सपना है शिक्षा में समान अवसर

२९ मई २०१२

हर इंसान को जीवन में विकास के समान मौके मिलने चाहिए. उनके साथ सामाजिक पृष्ठभूमि, लिंग, धर्म या उम्र के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए. ये सब कहने की बातें हैं, कहीं भी समानता की गारंटी नहीं है. हकीकत सच जैसी कड़वी है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

समानता 18वीं सदी में ब्रिटिश उदारवाद के प्रमुख मुद्दों में एक था. पूंजीवादी विशेषाधिकार वाले सामंतों की तुलना में अपने अधिकारों को पुख्ता करना चाहते थे. वे चाहते थे सब अपने जीवन के बारे में खुद फैसला करने का अधिकार पाएं. इसमें सामाजिक न्याय सबसे अहम मुद्दा नहीं था. महिलाओं को यूरोप में 19वीं सदी के अंत तक राजनीति में भागीदारी का लोकतांत्रिक अधिकार नहीं था. जर्मनी में अभी भी रोजगार पाने में और समान वेतन के मामले में महिलाओं के साथ भेदभाव होता है.

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शिक्षा के समान अवसर

स्कूल और कॉलेज की शिक्षा में भी दुनिया के हर हिस्से में लड़के और लड़कियों के साथ एक जैसा बर्ताव नहीं होता. यूनेस्को अपने 'सब के लिए शिक्षा' कार्यक्रम के साथ इसे बदलना चाहता है. 164 देशों ने सभी बच्चों को मुफ्त बुनियादी शिक्षा देने, वयस्कों में निरक्षरता को आधा करने और शिक्षा में लैंगिक समानता लाने का फैसला किया है. यूनेस्को में शिक्षा और विकास के लिए प्रभारी मार्क रिचमंड कहते हैं, "हर किसी को शिक्षा का अधिकार है. जितनी अधिक हम इसकी मांग करेंगे, सरकारें जितना इसे स्वीकार करेंगी और इसे कानून में शामिल करेंगी, उतना ही अधिक यह उम्मीद बन जाएगी."

मृग मरीचिका

मानवीय नजरिए से शिक्षा में समान अवसर की मांग को खुला समर्थन मिलना चाहिए. लेकिन ऐसा है नहीं, यह मुद्दा विवादास्पद है. उद्यमों और सरकारों की दिलचस्पी खास प्रतिभा वाले लोगों को खास बढ़ावा देने में है, ताकि वे बाद में जिम्मेदार पदों पर काम कर सकें. प्रतिभा को बढ़ावा देने में पढ़े लिखे घर से आने वाले बच्चों को फायदा रहता है. वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि शिक्षकों को कामगार घरों के बच्चों की तुलना में मध्यवर्गीय घरों के बच्चों पर उच्च शिक्षा पाने का ज्यादा भरोसा होता है. बोल चाल की भाषा ही इसका राज खोल जाती है कि कोई किस सामाजिक पृष्ठभूमि का है. और वह इंटरव्यू में फैसले को भी प्रभावित करती है, चाहे वह कॉलेज की सीट पाने के लिए हो, या किसी कंपनी में ऊंची नौकरी पाने के लिए. इसलिए बहुत से लोगों के लिए शिक्षा के समान अवसर एक आदर्श स्थिति है. हकीकत में मृग मरीचिका, जिसे कभी हासिल नहीं किया जा सकता.

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तस्वीर: Fotolia/Eva Kahlmann

अधिकांश औद्योगिक देशों में स्कूली शिक्षा अनिवार्य है. इस तरह वे बुनियादी शिक्षा के अधिकार की गारंटी करते हैं. यूनेस्को में वार्षिक शिक्षा रिपोर्ट के लिए प्रभारी पाउलीने रोज कहती हैं, "हालांकि बहुत से देशों में ज्यादा से ज्यादा बच्चों को स्कूल जाने का मौका मिल रहा है, अभी भी 6.7 करोड़ बच्चे इससे वंचित हैं." जर्मनी में हायर सेकंडरी तक स्कूली शिक्षा मुफ्त है. औपचारिक रूप से सभी बच्चे स्कूली शिक्षा पूरी कर यूनिवर्सिटी की पढ़ाई कर सकते हैं. फिर भी शिक्षा के क्षेत्र में समान अवसरों के मामले में जर्मनी प्रमुख औद्योगिक देशों में पीछे है.

शिक्षा की गारंटी

पिछड़े देशों में भ्रष्टाचार और गरीबी शिक्षा में समानता नहीं आने दे रहे हैं. गरीब परिवारों के पास फीस देने, किताब खरीदने और स्कूल ड्रेस खरीदने का पैसा नहीं होता. जर्मनी में आलोचकों के अनुसार स्कूल पद्धति ही भेदभाव वाली है. ज्यादातर प्रांतों में चौथी क्लास के बाद ही तय हो जाता है कि बच्चे उस स्कूल में जाएंगे या नहीं, जिससे वे यूनिवर्सिटी में पढ़ सकें. आलोचकों का कहना है कि यह बहुत जल्दी है. इससे खासकर कमजोर सामाजिक पृष्ठभूमि वाले बच्चे और आप्रवासियों के बच्चे पीछे छूट जाते हैं. जर्मनी में भी गरीब परिवार के बच्चे ट्यूशन करने या प्राइवेट स्कूल में पढ़ने की हैसियत नहीं रखते. शिक्षा पाने का औपचारिक अवसर तो मौजूद हैं, लेकिन ऐसे अवसर का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहन की कमी है.

इस कमी को दूर करने के लिए कामगार परिवारों के बच्चों के लिए आर्बाइटरकिंड डॉट डीई संगठन बनाया गया है. संगठन के कर्मचारी शिक्षा से दूर रहे परिवारों के बच्चों पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. संगठन बनाने वाली कात्या उरबाच कहती हैं, "बहुत से लोग सोचते हैं कि यदि किसी के पास आबीटुअर की डिग्री हो तो वह कॉलेज की पढ़ाई भी करता है, लेकिन आंकड़े दिखाते हैं कि ऐसा नहीं है." जर्मनी में यूनिवर्सिटी शिक्षा नहीं पाने वाले परिवारों के सिर्फ 50 फीसदी बच्चे यूनीवर्सिटी की पढ़ाई करते हैं. यह संगठन इन बच्चों की पढ़ाई पूरी होने तक मदद करता है.

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बाजार का फैसला

जो सरकारें शिक्षा में निवेश करती हैं, वे अक्सर वे मानवतावश ऐसा नहीं करतीं. अक्सर उसके पीछे आर्थिक हित छुपे होते हैं. जहां खनिज पदार्थों की कमी हो सकती है, जैसे तेल बहुल अरब देशों में, वहां शिक्षा पर निवेश बढ़ा दिया जता है. जहां वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की कमी है, वहां स्कॉलरशिप के लिए पैसा निकल आता है. जहां विद्यार्थियों को आकर्षित करने के लिए यूनिवर्सिटियों के बीच प्रतिस्पर्धा हो रही है, वहां सुविधाएं बढ़ा दी जाती हैं, फीस खत्म कर दी जाती है. सरकार खास इलाकों में युवा कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए ऐसे कदमों की मदद करती है. ऐसी हालत में कंपनियां भी शिक्षा के क्षेत्र में निवेश करती हैं, जैसे कि जर्मनी या अमेरिका में.

शिक्षा के क्षेत्र में समान अवसर यूनेस्को के लिए औद्योगिक देशों में भी अभी लम्बे समय तक एक मुद्दा बना रहेगा. मार्क रिचमंड कहते हैं, "उच्च विकसित देशों में भी अभी भी आबादी में ऐसे तबके हैं जिनका शिक्षा का स्तर बाकियों जैसा नहीं है. संघर्ष भविष्य में भी जारी रहेगा."

रिपोर्ट: गाबी रौएशर/मझा

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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