सबसे तेज, सबसे ऊंचे की जंग
२७ अगस्त २०११हर दो साल पर होने वाले इस टूर्नामेंट को फुटबॉल वर्ल्ड कप और ओलंपिक के बाद सबसे बड़ा खेल आयोजन माना जाता है. जहां सबसे आगे, सबसे तेज और सबसे ऊंचे की पहचान हो जाती है. दक्षिण कोरिया के देगू शहर में जो लोग जमा हुए हैं, वे ऊंचाइयों और तेजी की नई परिभाषा लिख सकते हैं.
बोल्ट का तूफान
पिछले तीन साल से तेजी के पर्याय बन चुके जमाइका के उसैन बोल्ट के लिए देगू कोई आसान मंजिल नहीं होगी और उन्हें बड़ी चुनौती मिल सकती है. 2008 के ओलंपिक में 100 और 200 मीटर का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के बाद 2009 में जर्मनी में हुए विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी बोल्ट का जादू चल चुका है और अब देखना है कि एशियाई ग्राउंड पर उनका बूट क्या अपना ही रिकार्ड रौंद पाता है या नहीं.
किसी जमाने में फर्राटा रेस का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने वाले मॉरिस ग्रीन का मानना है कि बोल्ट में अब पहले जैसी बात नहीं. चोटिल होने के बाद 2010 में ट्रैक पर लौटने वाले बोल्ट वह करिश्मा नहीं दिखा पाए हैं. ग्रीन का कहना है, "जब आप उन्हें पहले देखते तो वह दूसरे धावकों से बहुत आगे निकल जाया करते थे. अब वे किसी तरह जीत पाते हैं. और अगर आप उनके दौड़ने के तरीके पर ध्यान देंगे तो उन्होंने इसमें भी बदलाव किया है."
बोल्ट खुद भी कह चुके हैं कि अब उनमें पुराना वाला दम नहीं रह गया है. लेकिन उनके लिए अच्छी बात यह है कि प्रतिद्वंद्वी दौड़ाक जमाइका के असाफा पावेल और अमेरिका के टाइसन गे ने नाम वापस ले लिया है.
ब्लेड रनर की तेजी
देगू में ब्लेड रनर ऑस्कर पिस्तोरियस का जलवा भी देखने को मिलेगा. दक्षिण अफ्रीका के दौड़ाक पिस्तोरियस की दोनों टांगें नहीं हैं. वे कार्बन से बनी कृत्रिम टांगें लगाकर दौड़ लगाते हैं. लेकिन मजाल है कि अच्छे से अच्छे दौड़ाक को भी खुद से आगे निकलने दें. पिस्तोरियस के जज्बे को पूरा खेल समुदाय सलाम करता है. इस स्तर के अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में हिस्सा लेने वाले वह पहले खिलाड़ी हैं, जिनकी दोनों टांगें नहीं हैं.
हालांकि उन्हें इजाजत मिलने में भी बहुत मुश्किल हुई. पहले तो यह दलील दी गई कि कार्बन की बनीं टांगों से उन्हें फायदा पहुंचता है और कृत्रिम टांगें उन्हें तेज दौड़ने में मदद करती हैं. अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स ने इस पर पाबंदी भी लगा दी. लेकिन खेलों की अंतरराष्ट्रीय अदालत ने बाद में इस पाबंदी को हटा लिया और पिस्तोरियस के दौड़ने का रास्ता साफ हो गया.
बाद में कहा गया कि धारदार टांगों की वजह से साथ में दौड़ने वाले दूसरे दौड़ाकों को खतरा पहुंच सकता है. लेकिन 24 साल के पिस्तोरियास ने हार नहीं मानी है और अपना पहला अंतरराष्ट्रीय दौड़ लगाने को तैयार हैं. समझा जाता है कि 4X400 मीटर रिले रेस में दौड़ते वक्त उन्हें सबसे पहले रखा जाएगा ताकि दूसरे धावकों को किसी तरह का खतरा न हो.
बड़ा आयोजन
हर चार साल पर होने वाले ओलंपिक के बीच अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स फेडरेशन ने कुछ ऐसा करने का फैसला किया, जिसमें दूसरे खेलों से अलग सिर्फ एथलेटिक्स पर ध्यान दिया जा सके. 1983 में सपना साकार हुआ, जब पहला वर्ल्ड एथलेटिक्स टूर्नामेंट हेलसिंकी में हुआ. अमेरिका के कार्ल लेविस और माइकल जॉनसन उस आयोजन में छाए रहे और उन्होंने मिल कर 17 स्वर्ण पदक जीत लिए.
पहली बार चार साल के अंतराल पर 1987 में दूसरा वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप हुआ. उसके बाद से यह हर दो साल पर होता आया है. 2009 में इसका आयोजन जर्मनी में हुआ, जहां दक्षिण अफ्रीका की फर्राटा धावक कास्टर सेमिन्या के महिला होने या न होने का विवाद छाया रहा.
कैसा है देगू
जहां तक 2011 के आयोजक शहर देगू का सवाल है, यह दक्षिण कोरिया का चौथा सबसे बड़ा शहर है, जिसकी आबादी करीब 25 लाख है. जुलाई अगस्त में इस इलाके का तापमान करीब 30 डिग्री होता है, जो खेलों के लिए अच्छा माना जा सकता है. शहर के चारों तरफ पहाड़ हैं और सर्दियों में यहां का तापमान बहुत कम हो जाता है.
शहर को कोरिया का टेक्सटाइल सिटी भी कहा जाता है और यहां का देगू फुटबॉल क्लब बेहद प्रसिद्ध है.
भारत का भरोसा
जहां तक भारत का सवाल है, अंजू बॉबी जॉर्ज ने 2003 में पेरिस के वर्ल्ड चैंपियनशिप में लंबी छलांग में कांस्य पदक जीता है. इस बार भारत की आठ सदस्यीय टीम देगू में है. लेकिन पदकों की ज्यादा उम्मीद नहीं है.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल
संपादनः महेश झा