"सरबजीत को रहम मिलने की उम्मीद"
१५ अगस्त २००९अमृतसर के दौरे पर आए शेख़ ने कहा कि पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट सरबजीत के मामले पर नरमी बरत सकता है क्योंकि वह पहले ही 19 साल जेल में काट चुके हैं. शेख़ ने बताया कि हाल ही में पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मौत की सज़ा पाने वाले जो लोग पहले ही 18 साल से ज़्यादा सज़ा काट चुके हैं, उनकी सज़ा उम्र क़ैद में तब्दील की जा सकती है.
सरबजीत के वकील ने कहा कि इस्लाम भी कड़ी सज़ा के बजाय दया पर ज़ोर देता है. उनके मुताबिक़ वैसे भी सरबजीत का नाम शुरुआती एफ़आईआर में शामिल नहीं था. उनका नाम बाद में जोड़ा गया और उन्हें झूठे मामले में फंसाया गया.
भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह पर आरोप है कि 1990 में लाहौर और मुल्तान में सिलसिलेवार बम धमाकों में उनका हाथ था. इन धमाकों में 14 लोगों की मौत हो गई थी. पाकिस्तान उनकी पहचान मंजीत सिंह के रूप में करता है और धमाकों में शामिल होने की बात कहता रहा है लेकिन सरबजीत सिंह ने इसे ग़लत बताते हुए ख़ुद को एक किसान बताया है. 1991 में सरबजीत सिंह को मौत की सज़ा दी गई थी.
पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी भी पाकिस्तान सरकार से काफ़ी पहले मांग कर चुके हैं कि सरबजीत की मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया जाना चाहिए. अंसार बर्नी ने पाकिस्तान में 35 सालों से सज़ा काटने वाले कश्मीर सिंह को रिहा कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
रिपोर्टः एजेंसियां ए कुमार
संपादनः आभा मोंढे