सहयोग और प्रतिस्पर्धा में नए सत्ता केंद्र
१५ जुलाई २०११अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय ताकत घट रही है और नए नए जटिल भूराजनीतिक गठबंधन बन रहे हैं. फ्रांसीसी अखबार ले मोंद डिप्लोमाटिक के जर्मन संस्करण का कहना है कि इस प्रक्रिया में ऐसे सत्ता केंद्र उभर रहे हैं जिनके आपसी संबंधों में सहयोग और प्रतिस्पर्धा का विशिष्ट मिश्रण देखा जा सकता है. अखबार इस सिलसिले में भारत और वियतनाम की मिसाल देता है.
भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक दोनों ही दृष्टियों से दोनों पक्षों के लिए निकट सहयोग की अच्छी वजहें हैं. एक मिसाल ऊर्जा नीति है. भारत अपनी फैलती अर्थव्यवस्था में ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों के लिए दक्षिण चीनी सागर में वियतनाम के गैस भंडारों में दिलचस्पी रखता है. दूसरी ओर वियतनाम के गैस उद्योग में भारत का निवेश पश्चिमी देशों या चीन पर निर्भर हुए बिना तकनीक, संगठन और मार्केटिंग के क्षेत्र में फौरी जरूरी जानकारी लाता है. भारत हर हाल में इसे रोकना चाहता है कि चीन दक्षिण पूर्व एशियाई सागर के चट्टानी इलाके के विशाल ऊर्जा भंडार पर एकाधिकार जमाए. इस मामले में भारत और वियतनाम के आर्थिक और सामरिक हित एक जैसे हैं.
भारत हर दिन ईरान से 4 लाख बैरल तेल खरीदता है और जो उसके आयात का 12 से 14 फीसदी है. लेकिन अगस्त के शुरू में तेल की सप्लाई रुक सकती है. भारत को यह गंभीर चेतावनी दी है ईरान की राष्ट्रीय तेल कंपनी एनआईओसी ने. दिसंबर 2010 से भारत को अपने दूसरे सबसे बड़े सप्लायर को पैसा देने में मुश्किल हो रही है. इसके बारे में आर्थिक दैनिक हांडेल्सब्लाट लिखता है
ईरान की सरकारी कंपनी एनआईओसी की धमकी के बावजूद दोनों सरकारें आपूर्ति और भुगतान की दिक्कतों को नजरअंदाज कर रहे हैं. ईरान के तेल मंत्री मोहम्मद अली आबादी ने जोर देकर कहा, "भारत को, जो हमारे परंपरागत और दीर्घकालीन ग्राहकों में एक है, तेल की आपूर्ति जारी रहेगी." उनके भारतीय सहयोगी जयपाल रेड्डी ने कहलवाया कि "उन्हें जल्द ही एक समाधान पाए जाने की उम्मीद है." इस मौखिक गलबहिया की वजह बहुत आसान है: दोनों ही देशों के लिए तेल की सप्लाई का रुकना बहुत दर्द भरा होगा. ईरान के लिए ग्राहक के रूप में भारत की भरपाई बहुत मुश्किल है, भारत दूसरे देशों से अपना आयात बढ़ा सकता है. भले ही भारत की स्थिति बेहतर है लेकिन उसके लिए तेहरान से आपूर्ति का रुकना असुविधाजनक होगा, खासकर इसलिए कि वह हर उस चीज से बचना चाहता है जो तेल की कीमत को ऊपर चढ़ाए. भारत सरकार डीजल और दूसरे खनिज तेल उत्पादों की कीमत कृत्रिम रूप से कम रखती है और उससे जुड़ी सब्सिडी अभी ही बजट लक्ष्यों को खतरे में डाल रही है.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सालों से देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे माओवादी आंदोलन के सिलसिले में एक कड़ा फैसला सुनाया है. बर्लिन से प्रकाशित वामपंथी दैनिक नौएस डॉयचलैंड ने लिखा है कि अदालत ने छत्तीसगढ़ की सरकार द्वारा गठित और केंद्र सरकार द्वारा समर्थित हत्यारे दस्ते सलवा जुडूम और कोया कमांडो को असंवैधानिक घोषित कर दिया. इन्हें प्रतिबंधित माओवादियों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता था. अखबार लिखता है
फैसला खासकर लगभग 5000 स्पेशल पुलिस अफसरों (एसपीओ) के खिलाफ है, जिनकी भर्ती छत्तीसगढ़ पुलिस ने अनपढ़ युवा आदिवासियों में से की थी, उन्हें हथियार दिए, बहुत कम ट्रेनिंग दी और उसके बाद संघर्ष क्षेत्र में भेज दिया, जहां उनका इस्तेमाल किया गया. अदालत के मुताबिक एसपीओ के बीच मृत्युदर सामान्य सुरक्षाबलों की अपेक्षा पांचगुना अधिक थी. छत्तीसगढ़ पुलिस की दलील है कि एसपीओ उनकी माओवाद विरोधी रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. लेकिन नागरिक संघर्षकर्ताओं की लंबे समय से शिकायत है कि राज्य द्वारा तैनात हत्यारे दस्तों ने कानून अपने हाथों में ले लिया है खासकर अपने आदिवासी भाईयों के खिलाफ जबरन आतंक और हिंसा फैला रहे हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में माओवादी विद्रोह से आंतरिक सुरक्षा को खतरे की पुष्टि की है. लेकिन कहा है कि राज्य को गैरकानूनी प्रतिवादी हिंसा का सहारा नहीं लेना चाहिए, जो खूनी संघर्ष को बढ़ा और खतरनाक बना रहा है.
एक भारतीय मंदिर में हीरे जवाहरातों का बड़ा भंडार मिला है. अभी भी तहखाने के सारे कमरों को खोला नहीं गया है. नौए ज्यूरिषर त्साइटुंग का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय छठे तहखाने को खोलने में हिचकिचा रहा है.
इसका धार्मिक आदर से भी लेना देना है. जजों को एक ओर बहुत व्यावहारिक तरीके से फैसला लेना होगा कि क्या और यदि हां तो किन परिस्थितियों में वहां रखी संपत्ति को ऊपर लाया जा सकता है. उन्हें बहस के आध्यात्मिक पहलू पर भी गौर करना होगा. उनमें एक ओर मंदिर में जाने वाले और हिंदू पंडित शामिल हैं, जो भारतीय टेलिविजन में ऑटोमेटिक हथियारों से लैस सैकड़ों सिक्योरिटी गार्ड्स के बारे में शिकायत कर रहे हैं और जिंहें पूजा करने के लिए एकमात्र गेट से मेटल डिटेक्टर से होकर गुजरना पड़ता है. कुछ धार्मिक नेता तहखाने के बंद दरवाजे के पीछे नागों के होने की चेतावनी दे रहे हैं. एक और डर यह है कि तहखाना समुद्र से जुड़ा है और दरवाजा खोलने पर पानी मंदिर के अंदर आ सकता है. संभावना है कि अंतिम बंद तहखाने में और संपत्ति छुपी है जिसे राजपरिवार ने वहां छुपा कर रखा है या दान में वहां लाया गया है.
भारत के बाद अब पाकिस्तान, जहां देश के सबसे बड़े शहर कराची में हिंसा की लहर समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है. लड़ाई, हमलों और लक्षित हत्याओं में कम से कम 87 लोग मारे गए हैं. सरकार ने शहर में अतिरिक्त सुरक्षा बलों को तैनात किया है. नौए ज्यूरिषर त्साइटुंग लिखता है
विश्लेषक हमीद गुल झगड़े को गिरोहों की लड़ाई कहते हैं. गुल का कहना है कि सत्ताधारी पीपल्स पार्टी शहर के चुनाव क्षेत्रों को अपने फायदे में बदलने की कोशिश कर रही है जो मुख्य रूप से स्थानीय पार्टी एमक्यूएम की कीमत पर हो रहा है. बहुत से राजनीतिज्ञों के अपराधियों के साथ संपर्क हैं और वे लड़ाई में उनका इस्तेमाल कर रहे हैं. लड़ाई तब से साफ तौर पर बढ़ गई है जबसे एमक्यूएम पिछले महीने इस्लामाबाद और सिंध प्रांत में सत्ताधारी गठबंधन से बाहर निकल गया है.लेकिन खूनी संघर्ष परस्परविरोधी पार्टियों के सत्ता संघर्ष से कहीं आगे जाता है. क्योंकि हर पार्टी एक अन्य जातीय गुट का प्रतिनिधित्व करती है. यह विवाद पाकिस्तानी राष्ट्र की स्थिति के बारे में भी बहुत कुछ कहता है जो अपने को सामूहिक धर्म वाला बहुजातीय राष्ट्र समझता है. मरने वालों की संख्या युद्धक संघर्ष की याद दिलाते हैं. पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग का कहना है कि कराची में 2011 की पहली छमाही में 1100 लोग मारे गए हैं. उनमें से 490 राजनीतिक, जातीय और धार्मिक हिंसा का शिकार हुए हैं.
अमेरिका ने पाकिस्तान के लिए 2 अरब डॉलर की सैनिक सहायता में 80 करोड़ डॉलर की सहायता रोक दी है. बर्लिन के दैनिक बर्लिनर त्साइटुंग का कहना है
अमेरिकी सरकार अपने महत्वपूर्ण सहयोगी पाकिस्तान के साथ तनाव को कम कर दिखाने की कतई कोशिश नहीं कर रही है. इसके बदले अमेरिकी सरकार के कई अधिकारी पर्दे के पीछे पत्रकारों को पाकिस्तान के खिलाफ असाधारण दंडात्मक कदमों के बारे में जानकारी दे रहे हैं. दंडात्मक कदमों की जाहिराना वजह अमेरिकी सैन्य सलाहकारों को पाकिस्तान से बाहर निकालना है. लेकिन मौलिक रूप से एक आधारभूत संदेह है जो ओसामा बिन लादेन के खिलाफ हुई कमांडो कार्रवाई के बाद सामने आ गया. पाकिस्तानी सेना ने अमेरिकियों द्वारा अपमानित महसूस किया जबकि अमेरिकी सरकार की नाराजगी यह है कि पाकिस्तानी सुरक्षा संरचना के अंदर की ताकतें कट्टरपंथियों के साथ सहयोग कर रही थीं.
फ्रैंकफुर्ट से प्रकाशित दैनिक फ्रांकफुर्टर रुंडशाऊ का कहना है कि अमेरिकी एडमिरल माइक मलेन कभी ऐसे व्यक्ति नहीं थे जो चुपचाप बंधे कदमों से मार्च करे. अखबार लिखता है कि अब मलेन ने खुलकर पाकिस्तानी खुफिया सेवा पर पत्रकार सलीम शहजाद की मौत के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगाया है. ज्यूड डॉयचे त्साइटुंग ने भी इस मुद्दे को उठाया है
अमेरिका ने खुफिया सेवा आईएसआई पर अक्सर कट्टरपंथी गुटों के साथ संबंध रखने और अपनी कतारों में इस्लामी चरमपंथियों के होने का आरोप लगाया है. अमेरिकी प्रेस में सरकारी अधिकारी पिछले दिनों एक पसंदीदा साधन का सहारा ले रहे हैं : वे पाकिस्तानी खुफिया सेवा पर अपना नाम बताए बिना हत्या में शामिल होने का आरोप लगा रहे हैं. एक अधिकारी ने कहा, स्पष्ट रूप से लक्ष्य शहजाद के साथियों को दिखाना था कि आलोचक पत्रकारिता कहां ले जाती है. इसके पीछे तर्क यह था: कहानी एक बेनाम बयान पर आधारित है और पाकिस्तान की संदेहास्पद खुफिया सेवा आईएसआई आलोचना के घेरे में है. ओबामा सरकार के पास हमेशा आरोपों को नकारने की संभावना थी. लेकिन तब निवर्तमान सेनाध्यक्ष एडमिरल मलेन ने सामने आने का फैसला किया. मलेन ने पेंटागन में एक प्रेसवार्ता में कहा कि उनका मानना है कि पाकिस्तान सरकार ने शहजाद की मौत की अनुमति दी.
ज्यूड डॉयचे त्साइटुंग का कहना है कि इसके साथ मलेन ने अमेरिका और पाकिस्तान के तनावपूर्ण संबंधों को और तनावपूर्ण बना दिया है.
संकलन: अना लेहमान/मझा
संपादन: एस गौड़