सहयोग के नये रास्तों की तलाश के लिए जरूरी भारत चीन संवाद
२३ फ़रवरी २०१७बातचीत के लिए चीन गये भारत के विदेश सचिव एस. जयशंकर मानते हैं कि दोनों देशों के बीच संबंधों में पिछले सात-आठ सालों के दौरान काफी सुधार हुआ है और चीन की ओर से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में काफी बढ़ोतरी हुई है. अब दोनों देशों के नागरिक पहले की अपेक्षा अधिक आसानी से वीसा प्राप्त कर सकते हैं और कुल मिलाकर संबंध अच्छे ही कहे जाएंगे. इसके बावजूद अपने समकक्ष अधिकारी झांग येसुई के साथ पहले दिन की बातचीत के बाद जयशंकर संतुष्ट प्रतीत नहीं होते क्योंकि आशंका के अनुरूप भारत और चीन के आपसी संबंधों में पाकिस्तान एक बहुत बड़ा रोड़ा बना हुआ है. चीन के साथ पाकिस्तान की दोस्ती "हिमालय से अधिक ऊंची और सागर से अधिक गहरी” है और भारत के खिलाफ हमेशा चीन ने पाकिस्तान कार्ड और पाकिस्तान ने चीन कार्ड खेला है. भारतीय अर्थव्यवस्था में हुए विकास के कारण अब चीन आर्थिक क्षेत्र में भी भारत को एक उभरते हुए प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखने लगा है.
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद अभी तक हल नहीं हो सका है हालांकि उस पर राजीव गांधी की 1989 की ऐतिहासिक चीन यात्रा के बाद से अब तक वार्ता के अनेक दौर हो चुके हैं. पहले चीन ने यह रुख अपनाया था कि सीमा विवाद को एक तरफ रखकर अन्य क्षेत्रों में संबंध सुधारे जाएं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों के दौरान इस रुख में थोड़ा बदलाव देखा गया है. चीन अब और अधिक जोरदार ढंग से अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोंकने लगा है और दलाई लामा की हर गतिविधि पर आपत्ति प्रकट करने लगा है. परमाणु आपूर्तक समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता को केवल चीन के विरोध ने ही रोका हुआ है. इसका कारण भी पाकिस्तान की यह मांग है कि उसे भी भारत की तरह एक जिम्मेदार मुल्क माना जाए और इस समूह की सदस्यता दी जाए. क्योंकि पाकिस्तान के परमाणु प्रसार के रिकॉर्ड को देखते हुए कोई भी उसे जिम्मेदार देश नहीं मानता, इसलिए चीन भारत की सदस्यता को भी ‘प्रक्रियाओं' और‘तकनीकी' आधार पर रोके हुए है.
इसी तरह चीन पाकिस्तान-स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के संस्थापक मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादी घोषित किए जाने का ‘तकनीकी' आधार पर विरोध करता आ रहा है और केवल उसी के विरोध के कारण उसे अभी तक आतंकवादी घोषित नहीं किया जा सका है. चीन का कहना है कि भारत को मसूद अजहर के खिलाफ ठोस सुबूत देने होंगे. लेकिन जैसा कि जयशंकर ने बुधवार को झांग येसुई के साथ वार्ता के बाद कहा, भारत इस बारे में पहले ही बहुत ठोस प्रमाण पेश कर चुका है और पूरी दुनिया मसूद अजहर के बारे में जानती है. पर चीन अपने रुख पर अड़ा हुआ है और टस-से-मस नहीं हो रहा. जाहिर है वह पाकिस्तान को खुश करने के लिए ऐसा कर रहा है.
लेकिन इसके साथ यह भी सही है कि भारत की हरचंद कोशिश होनी चाहिए कि चीन के साथ रणनीतिक संवाद पाकिस्तान के मुद्दे की बलि न चढ़ जाए. इस समय उसके सामने दो अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिन पर दोनों देशों के बीच समझदारी बनना बेहद जरूरी है. ब्रह्मपुत्र पर चीन की बांध परियोजना का भारत और बांग्लादेश को मिलने वाले पानी से गहरा संबंध है. पानी की कमी आने वाले सालों में यूं भी दुनिया भर में एक बड़ा मुद्दा बनने वाली है. इसलिए इस विवाद का समाधान निकलना जरूरी है ताकि भारत के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध होने को सुनिश्चित किया जा सके. इसके अलावा हिन्द महासागर क्षेत्र में दोनों देशों की भूमिका की स्वीकार्य रूपरेखा बनाना भी बहुत जरूरी है. भारत की नौसेना अंतर्राष्ट्रीय भूमिका निभाने में सक्षम है और वह इस भूमिका को निभाती भी रही है. इसलिए दोनों देशों को यह सुनिश्चित करना होगा कि विशाल हिन्द महासागर क्षेत्र में दोनों की नौसेनाओं के बीच किसी प्रकार का टकराव न होने पाए. इस दृष्टि से भारत-चीन रणनीतिक संवाद का अपना विशिष्ट महत्व है. दो देशों के हितों में कभी एकरूपता नहीं हो सकती और उनका किसी न किसी क्षेत्र में आपस में टकराना लाजिमी है. इस प्रकार के संवादों की असल भूमिका यही है कि टकराव को रोककर सहयोग के नए रास्ते तलाश किए जाएं.