सामाजिक सुरक्षा के मामले में भारत लचर
१७ नवम्बर २०१०मंगलवार को जारी संगठन ने अपनी पहली व्यापक विश्व सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट में कहा है कि भारत ने सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं. सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में उचित स्वास्थ्य देखभाल, पेंशन, सामाजिक सहायता और बेरोजगारी भत्ते जैसी सुविधाएं शामिल हैं. भारत में इस तरह की सुविधाएं बेहद सीमित हैं. ज्यादातर लोगों को इनके योग्य ही नहीं समझा जाता.
रिपोर्ट के लेखकों में से एक क्रजिस्तोफ हेगेमेजर का कहना है, "साफ तौर पर यह सिक्के का एक पहलू है कि भारत अपनी क्षमता के मुताबिक सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त कदम नहीं उठा सका है. लेकिन दूसरा पहलू यह भी है कि वहां राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जैसी नई योजनाएं चलाई जा रही हैं. साथ ही तीस करोड़ लोगों के लिए स्वास्थ्य योजना भी शुरू की गई है. लेकिन इन योजनाओं का असर दिखना अभी बाकी है."
भारत और चीन जिस तरह दुनिया के मंच पर बड़ी आर्थिक ताकत के तौर पर उभर रहे हैं, उस हिसाब से उन्होंने अपने सामाजिक क्षेत्र पर ध्यान नहीं दिया है. ऐतिहासिक रूप से सामाजिक सुरक्षा से जुड़े कदमों ने पश्चिमी देशों में एक अहम भूमिका अदा की है और गंभीर आर्थिक संकटों के समय में उनकी वजह से लोगों को कम परेशानियां झेलनी पड़ी हैं. अनुमान है कि दुनिया भर में कामकाजी आबादी के 20 प्रतिशत लोगों के परिवारों को व्यापक सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था का पूरा फायदा मिल पा रहा है.
दुनिया भर की जीडीपी का सिर्फ 17.2 प्रतिशत ही सामाजिक सुरक्षा पर खर्च किया जा रहा है. इसमें भी बड़ी हिस्सेदारी अमीर देशों की है. दुनिया भर में कामकाजी आबादी के सिर्फ 40 प्रतिशत लोग ही पेंशन स्कीम के तहत आते हैं. इसमें भी एशियाई देशों में ऐसे लोगों की संख्या सिर्फ 20 प्रतिशत के आसपास है. हैरानी की बात यह भी है कि भारत में सिर्फ 20 प्रतिशत लोगों को ही वृद्धावस्था में पेंशन मिलती है, जबकि बाकी जगहों पर 65 साल या उससे ज्यादा उम्र के 75 प्रतिशत लोगों को यह सुविधा प्राप्त है.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः प्रिया एसेलबोर्न