सितारों से आगे जहां की कहानी
२५ अप्रैल २०११इन पर्यवेक्षणों से सितारों के स्वरूप और उनके विकास के बारे में कहीं अधिक बेहतर समझ हासिल हुई है. मार्च, 2009 में केपलर के अंतरिक्ष में छोड़े जाने से पहले तक अंतरिक्षविद स्वयं हमारी मिल्की वे आकाशगंगा में हमारे सूर्य के आकार, उम्र और संरचना वाले कोई 25 सितारों की चमक में परिवर्तन की पहचान कर पाए थे.
सितारों की भौतिकी यानी सितारों के निर्माण, क्रमविकास, उनके अंदरूनी हिस्से और वातावरण के बारे में हो रही खोज अंतरिक्षभौतिकी, वैज्ञानिकों और नासा के केपलर मिशन के बीच गठित साझेदारी के नतीजे में अब सितारों के बारे में व्यौरे का एक ख़ज़ाना मौजूद है. इस व्यौरे से हमारे सूर्य के अलावा अन्य सितारों के गिर्द आवासयोग्य इलाक़ों में ग्रहों की खोज में सहायता मिलती है.
केपलर के व्यौरे के आधार पर हाल में तीन अलग-अलग वैज्ञानिक दलों की रिपोर्टें 'साइंस' पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं. तीनों से दूरदराज़ के सितारों की अंदरूनी संरचना के बारे में नई समझ और नए सवाल पैदा होते हैं.
कांपते सितारों के खुलते राज़
वैज्ञानिक केपलर का इस्तेमाल पृथ्वी की तरह के ग्रहों की तलाश में करते हैं, और इसके लिए वे सितारों की उज्ज्वलता में होने वाले कंपन के आधार पर मामूली से मामूली फेरबदल का माप करते हैं. उस समय जबकि इन सितारों के सामने से पिंड गुज़र रहे होते हैं. लेकिन पहले अध्ययन के अनुसार, केपलर ने सितारों की उज्ज्वलता में आती जिन तब्दीलियों का माप किया है, वह सामने से गुज़रने वाले ग्रहों के बजाय स्वयं सितारों के अंदर के हालात का पता देती हैं.
ऑस्टिन स्थित यूनिवर्सिटी ऑव टैक्सस के जाने-माने अंतरिक्षविद माइकल मॉंन्टगुमरी का कहना है कि जिन सितारों का अध्ययन किया गया है, उनमें उसी व्यौरे को आधार बनाया गया है, जो सितारों के कंपन के नतीजे में प्राप्त हुआ. यानी उसके लिए वही आज़माई जा चुकी तकनीक इस्तेमाल की गई और सितारों के द्रव्यमान और घेरे का पता लगाया गया. मॉंटगुमरी कहते हैं, "इस तकनीक के इस्तेमाल से वैज्ञानिकों ने पाया कि इन 500 पिंडों के घेरे के बारे में तो उन्हें ठीक वही व्यौरा हासिल हुआ, जिसका अनुमान था, लेकिन जहां तक द्रव्यमान की बात है, वह अनुमान पर खरा नहीं उतरा. अनोखी बात यह है कि घेरा बिल्कुल वही पाया गया, जो अनुमान अन्य अध्ययनों से प्राप्त हुआ था, पर इन सितारों का द्रव्यमान पिछले अनुमानों की तुलना में कम था. इसका अर्थ यह हुआ कि किसी भी सितारे के द्रव्यमान और घेरे का अनुपात, वह नहीं है, जो हम अब तक एक सिद्धांत के रूप में मानते आए हैं. और यह वास्तव में एक बड़ी तब्दीली है."
मॉंन्टगुमरी का कहना है कि सितारों के पिछले मॉडलों में कुछ न कुछ तो लापता था ही. क्या यह अंतर सितारों की अंदरूनी संरचना के कारण हो सकता है? वह कहते हैं कि यह बाक़ायदा संभव है.
यह अध्ययन 400 वैज्ञानिकों के संगठन केपलर ऐस्टैरोसाइस्मिक साइंस कन्सॉर्शियम ने किया, जिसमें तालमेल बिठाने का काम डेनमार्क के आर्थस विश्वविद्यालय का भौतिकी और अंतरिक्षविज्ञान विभाग करता है.
लाल दैत्य का गहरा भेद
केपलर के ही व्यौरे के आधार पर एक और वैज्ञानिक दल को विकास के लगभग अंतिम चरण पर पहुंचे हुए एक विशाल सितारे में ऐसी अप्रत्याशित तरंगों के होने का पता चला, जो उसके धुर अंदरूनी भाग में पहुंचती हैं. रेड जायंट कहलाने वाले ऐसे सितारों में ऐसी लहरों के केवल बाहरी हिस्से यानी कुछ लाख मील तक अंदर जाने वाली लहरों की जानकारी थी. यह कि इन सितारों का अभ्यंतर इतना सघन है कि पृथ्वी की ध्वनि तरंगों जैसी ये लहरें उस तक नहीं पहुंच सकतीं. भविष्य में कभी हमारा सूर्य भी ऐसा ही वयोवृद्ध सितारा बन चुका होगा. तो बेशक़, इस जानकारी में हमारे लिए भी कुछ सबक़ छिपे हुए हैं. यह बात और है कि हमारा सूर्य उस बड़ी उम्र में कोई 5 अरब वर्ष बाद पहुंचेगा.
अनूठा तिगड्डा
एक तीसरी खोज तीन सितारों की एक प्रणाली के बारे में है. इनमें से एक सितारा वैसा ही रेड जायंट है, जिसकी अभी हम चर्चा कर रहे थे. दरअसल, तीन-सितारा प्रणालियां कोई अनोखी बात नहीं है. लेकिन यह तिगड्डा अपनी तरह की अन्य प्रणालियों से किस रूप में अलग है, इसके बारे में माइकल मॉंटगुमरी कहते हैं, "यह प्रणाली इस रूप में अनूठी है कि उसका हर भाग ग्रहण का कारण बन रहा है. इनमें से दो सितारे रेड जायंट के सामने से और उसके पीछे से गुज़रते हैं और एक-दूसरे के सामने से भी. इस तरह वे एक दूसरे को ग्रहण लगाते हैं और रेड जायंट को भी. तो इस तरह की बहुभागीय, बहुग्रहण प्रणालियां काफ़ी अनूठी हैं."
एक और दिलचस्प बात यह है कि इस तिगड्डे के रेड जायंट में कंपन के कोई संकेत नहीं मिले, जबकि ऐसे आम सितारों में हमारे सूर्य की ही तरह का कंपन बाक़ायदा होता है. मतलब यह कि तिगड्डे के इस विशाल वयोवृद्ध सितारे में कोई रहस्यमय प्रक्रिया जारी है.
इस तरह केपलर मिशन निहायत ही रोमांचक नए तथ्य सामने ला रहा है. माइकल मॉंन्टगुमरी उसकी साढ़े तीन वर्ष की आरंभिक अवधि को आगे बढ़ाने के पक्ष में हैं. उनका कहना है कि केपलर ग्रहों की खोज में भी जुटा है, जो अपने सितारे के गिर्द अपनी परिक्रमा कभी-कभी तीन वर्षों तक में पूरी करते हैं. यानी उनके लंबे अध्ययन की ज़रूरत है, "तो मेरे विचार में, उसके मिशन की अवधि बढ़ाकर हम उससे कहीं अधिक वैज्ञानिक तथ्य जुटा पाएंगे, जो हमें अभी तक हासिल हुए हैं. "
मॉंन्टगुमरी कहते हैं कि आने वाले वर्षों में इन अध्ययनों को जारी रखना वास्तव में तर्कसंगत होगा.
रिपोर्ट: गुलशन मधुर, वाशिंगटन
संपादन: उभ