सीधे दिमाग से सुनने की तैयारी
५ फ़रवरी २०१२फायदा उन लोगों को भी हो सकता है जो शतरंज खेलते हैं. प्रतिद्वंदी की चाल उनके दिमाग से कब उड़ कर दूसरे के पास पहुंच गई, खिलाड़ी को पता नहीं चलेगा. रिसर्च के दौरान जीवों के दिमाग में इलेक्ट्रोड लगा दिए गए और फिर उन्हें बातचीत सुनने दिया गया. वैज्ञानिकों ने आवाज की फ्रीक्वेंसी दर्ज की और फिर उनके विश्लेषण से पता लगाया कि कौन से शब्द सुने गए हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया बर्कले में हेलेन विल्स न्यूरो साइंस इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर ब्रायन पास्ले भी इस रिसर्च में शामिल हुए. उन्होंने बताया, "हमारा ध्यान था कि दिमाग कही गई बात की आवाज के साथ क्या प्रतिक्रिया करता है. ज्यादातर जानकारियां 1 से 8000 हर्ट्ज की बीच थीं. दिमाग अनिवार्य रूप से अलग आवाज की फ्रीक्वेंसियों का अलग अलग हिस्सों में विश्लेषण करता है."
शरीर के श्रवण तंत्र का मुख्य केंद्र कनपटी की परलिका पर पहुंची ध्वनियों को दिमाग कैसे ग्रहण करता है. इसकी खोज के बाद वैज्ञानिक उन शब्दों का खाका खींचने में कामयाब हो जाएंगे जो दिमाग में सुनाई देता है. इसके बाद इसी तरह के शब्दों को गढ़ा जा सकता है. पास्ले ने बताया, "हम जानते हैं कि दिमाग का कौन सा हिस्सा सक्रिय होता है. यह इससे तय होता है कि मरीज ने दरअसल क्या सुना है. तो हम इस हद तक उसका खाका खींच सकते हैं जितना कि दिमाग की सक्रियता इसका विश्लेषण कर हमारे अनुमान की फ्रीक्वेंसी वाली आवाजें सुन सके."
रिसर्चरों ने एक शब्द, जिसका खाका खींचा वह हैः स्ट्रक्चर. इसमें उच्च फ्रीक्वेंसी वाले एस ने दिमाग में एक खास तरह की आकृति बुनावट दिखाई, जबकि नीची फ्रीक्वेंसी वाले यू ने एक अलग तरह की. पास्ले ने बताया, "आवाज के इन गुणों और उनसे दिमाग में पैदा होने वाली सक्रियता के बीच एक खास तरह की समानता है." दिमाग में इन्हें साथ रख कर शब्दों को दोबारा उत्पन्न किया जा सकता है.
यह खोज नेवले पर हुए रिसर्च के आगे की कड़ी है. तब वैज्ञानिकों ने जंतुओं के दिमाग में होने वाली गतिविधियों को रिकॉर्ड करने में कामयाबी पाई थी. उन्होंने उन शब्दों को भी पकड़ने में कामयाबी हासिल की जिन्हें नेवले के दिमाग ने सुना. हालांकि वो खुद उससे अनजान था और उसके लिए उन शब्दों को समझ पाना मुमकिन नहीं था.
वैज्ञानिकों के लिए अब आगे का लक्ष्य है कि शब्दों को सुनने की प्रक्रिया उनकी कल्पना की प्रक्रिया के कितनी समान हो सकती है. इस जानकारी के आधार पर वैज्ञानिक यह पता लगा सकेंगे कि जो लोग बोल नहीं पा रहे हैं, वो क्या बोलना चाहते हैं. कुछ पुराने रिसर्च के आधार पर वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें काफी समानता है. लेकिन अभी इसके लिए और खोजबीन की जरूरत है. पास्ले कहते हैं, "जिन मरीजों के बोलने की तंत्र में कोई समस्या आ गई है, चाहे वो किसी वजह से हो, उनके लिए यह बहुत काम का साबित होने वाला है. अगर आप दिमाग में चल रही बातचीत को पढ़ सकें, उन्हें समझ सकें, तो इससे हजारों लोगों को फायदा हो सकता है."
रिसर्च में यूनिवर्सिटी ऑफ मेरिलैंड, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया बर्केले और बाल्टीमोर की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने भी हिस्सा लिया. साइंस जर्नल पीएलओएस बायोलॉजी के 31 जनवरी वाले अंक में इसके बारे में विस्तृत रिपोर्ट छपी है.
रिपोर्टः एएफपी/एन रंजन
संपादनः ए जमाल