सीरिया की लड़ाई में हिजबुल्लाह
२५ मई २०१३सैनिकों की संख्या बढ़ रही है. सीरिया के मानवाधिकार संगठनों के अनुसार गृह युद्ध में हिस्सेदारी के बाद से लेबनानी संगठन ने अपने सौ से ज्यादा लड़ाके खोए हैं. हिजबुल्लाह के एक प्रतिनिधि ने 75 लोगों के मरने की बात स्वीकार की है. खासकर अल कुसैर में हो रही लड़ाई की वजह से मरने वालों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. लेबनान की सीमा पर स्थित सामरिक महत्व के छोटे शहर में हिजबुल्लाह असद शासन के पक्ष में लड़ रहा है. शुरू में शिया संगठन ने असद को समर्थन देने की बात छिपाए रखी. इस बीच लड़ाई में मारे जा रहे हिजबुल्लाह सैनिकों का वापस घर पर बड़े सम्मान के साथ सार्वजनिक रूप से दफन किया जा रहा है.
सीरिया की लड़ाई में हिजबुल्लाह के शामिल होने का उद्देश्य रणनैतिक है. पड़ोसी देश में भारी क्षति वाला उसका अभियान कई लक्ष्य पूरे करता है. राजनीति शास्त्री रामी खूरी कहते हैं कि एक तो हिजबुल्लाह ईरान और सीरिया के साथ इस्राएल और पश्चिम के खिलाफ मोर्चे में शामिल हैं. "यदि सीरिया और असद का पतन हो जाता है तो यह सीरिया और ईरान के लिए भारी झटका होगा." तेहरान, दमिश्क और हिजबुल्लाह की तिकड़ी इस बात को रोकना चाहते हैं कि दूसरे देश राजनीतिक नक्शे को बदलें. सुन्नी बहुल सऊदी अरब और कतर सीरिया में सरकार बदलवा कर शिया ईरान के प्रभाव को कम करना चाहते हैं. सीरिया के बिना हिजबुल्लाह और ईरान अलग थलग पड़ जाएंगे.
हिजबुल्लाह को नुकसान
सीरिया में मदद पहुंचाकर हिजबुल्लाह अपनी ताकत को भी बचाए रखना चाहता है. बेरूत में अमेरिकी यूनिवर्सिटी के रामी खूरी कहते हैं कि यदि दमिश्क की सरकार का पतन हो जाता है तो हिजबोल्लाह अपने गढ़ लेबनान में भी कमजोर हो जाएगा. अब तक उसे सीरिया सरकार की राजनीतिक और लॉजिस्टिक मदद का फायदा मिल रहा है. दमिश्क उसे खुफिया सूचनाओं के अलावा जरूरी हथियार भी देता है.
सीरिया में सरकार बदलने का असर ईरान के साथ शिया आंदोलन हिजबुल्लाह के रिश्तों पर भी पड़ेगा. तेहरान ने 1982 में हिजबुल्लाह संगठन बनाने में मदद दी थी. ईरान के शिया नेताओं का अभी भी लेबनानी संगठन के राजनीतिक और सैनिक धड़ों पर बहुत प्रभाव है. सीरिया के न होने से दोनों के बीच सीधा रास्ता खत्म हो जाएगा. सीरिया से होकर जाने वाला रास्ता न होने पर ईरानी हथियार और लड़ाकों को लेबनान लाना बहुत मुश्किल हो जाएगा. छोटे लेबनान की सीमा इसके अलावा सिर्फ इस्राएल से मिलती है. लेबनान के समुद्री तट की सुरक्षा 2006 से संयुक्त राष्ट्र के फैसले पर अंतरराष्ट्रीय सेना करती है.
सीरिया में एलीट सैनिक
सीरिया में हिजबुल्लाह कितनी ताकत लगा रहा है, यह साफ नहीं है. इस्राएल में आतंकवाद विरोधी संस्थान की एली कारमोन का अनुमान है कि वहां कुछ सौ से कुछ हजार सैनिक लड़ रहे हैं. वे कहते हैं, "ये एलीट सैनिक हैं जो पहले दक्षिण लेबनान में इस्राएल के खिलाफ लड़ रहे थे." जरूरत पड़ने पर हिजबुल्लाह अपनी कम प्रशिक्षित बड़ी टुकड़ियों को भी लड़ाई में झोंक सकता है. हिजबुल्लाह की भागीदारी सीरिया के गृह युद्ध में बढ़ते साम्प्रदायिक चरित्र को दिखाती है. राष्ट्रपति असद और उनकी सरकार को समर्थन देने वाले बहुत से लोग अलावी समुदाय के हैं, जो धार्मिक रूप से शिया समुदाय के करीबी हैं.
शिया हिजबुल्लाह और शिया ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड के अलावा इलाके में उनका कोई सहयोगी नहीं है. उधर विद्रोहियों का समर्थन मुख्य रूप से सुन्नी समुदाय के लोग कर रहे हैं. हिजबुल्लाह के जानकार कारमोन के विचार से अल कुसैर की लड़ाई का लक्ष्य सीरिया के तटीय क्षेत्र में स्थित अलावी इलाकों के रास्तों को खुला रखना है. तब अगर विद्रोही दमिश्क पर कब्जा भी कर लेते हैं तो एक दूसरे के साथ जुड़े इलाके हिजबुल्लाह और सीरिया के अलावियों के नियंत्रण में रहेंगे. कारमोन कहते हैं, "यह कुसैर में लड़ाई का महत्व यह है कि यहां सीमा के दोनों ओर शिया गांव हैं."
लेबनान की बिगड़ती स्थिति
यह लड़ाई अस्थिर लेबनान में तनाव को और बढ़ा रही है. दशकों से लेबनान में हिजबुल्लाह सत्ता का एक कारक है. लेकिन वहां के सुन्नी और ईसाई अल्पसंख्यकों में उसके खिलाफ गंभीर आपत्तियां हैं. उत्तरी लेबनान के त्रिपोली में कई दिनों से शियाओं और सुन्नियों के बीच, असद के समर्थकों और विरोधियों के बीच भारी लड़ाई हो रही है. रामी खूरी कहते हैं, "ये सब देश की स्थिति को और तनावपूर्ण, हिंसक और अस्थिर बना रहा है." लेबनान में हालात क्या करवट लेंगे, यह समझना इस समय मुश्किल है.
हालात और बिगड़ने के खतरे के कारण दमिश्क को मिल रही शिया मदद ने अंतरराष्ट्रीय समदाय को और चिंता में डाल दिया है. पश्चिमी और अरब देशों के संगठन फ्रेंड्स ऑफ सीरिया ने अम्मान में हुई एक बैठक में सीरिया से विदेशी सैनिकों की वापसी की मांग की है. उनका कहना है कि लड़ाई में उनकी भागीदारी इलाके की स्थिरता को खतरे में डाल रही है. यूरोपीय संघ के देश हिजबुल्लाह के सैनिक संगठन को आतंकवादी संगठनों की सूची पर डालने पर विचार कर रहे हैं. तब उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई संभव होगी. लेकिन हिजबुल्लाह नेतृत्व पर इसका असर नहीं हो रहा है. उसके एक प्रतिनिधि ने बेरूत में कहा है कि वह अपने और सैनिकों को सीरिया भेज रहा है.
रिपोर्ट: आंद्रेयास गोर्जेव्स्की/एमजे
संपादन: ए जमाल