सीरिया में सरकार विरोध के सात महीने
१६ अक्टूबर २०११सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद की दशकों पुरानी सत्ता के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को सात महीने पूरे हो गए हैं. विरोध कर रहे कार्यकर्ताओं के मुताबिक शनिवार को मारे गए दो लोगों में से एक की जान राजधानी दमिश्क में गई जबकि एक अन्य को होम्स शहर में मार डाला गया. स्थानीय को-ऑर्डिनेशन कमेटी ने बताया, "दमिश्क में सुरक्षाबलों ने एक बच्चे इब्राहिम अल शेबान के अंतिम संस्कार के दौरान हमला किया. इस हमले में एक नौजवान की मौत हो गई." अल शेबान शुक्रवार को मारे गए 12 प्रदर्शनकारियों में शामिल था. उसके जनाजे में 15 हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए. इनमें औरतें और बच्चे भी शामिल हैं.
होम्स में सुरक्षाबलों ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं जिनमें एक नौजवान की मौत हो गई. सीरिया की एक मानवाधिकार संस्था ने स्थानीय लोगों के हवाले से कहा, "सेना ने अल नाजिन इलाके के प्रवेश द्वारों पर गोलियां चलाईं. अपने काम पर जा रहा एक नौजवान इस गोलीबारी का शिकार हो गया. होम्स में कई इलाकों को एक दूसरे से काटने के लिए सेना ने बाधाएं खड़ी कर दी हैं."
गृह युद्ध का खतरा
सीरिया में प्रदर्शनों को सात महीने पूरे हो गए हैं. संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख नवी पिल्लई के मुताबिक इन प्रदर्शनों में अब तक तीन हजार से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. इनमें 187 बच्चे भी हैं.
प्रदर्शन अब हिंसक दौर में जा रहे हैं. सेना को हथियारबंद विरोधियों को सामना करना पड़ रहा है. गुरुवार को ही विद्रोहियों और सेना के बीच हुई मुठभेड़ में 36 लोगों की जान गई जिनमें 25 सैनिक थे. पिल्लई ने कहा कि अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय कोई कार्रवाई नहीं करता है तो सीरिया में अब गृह युद्ध का खतरा है.
इस चेतावनी पर ध्यान देते हुए जर्मनी, फ्रांस और पुर्तगाल ने राष्ट्रपति असद के प्रदर्शनकारियों के दमन का मुद्दा उठाया है. पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सीरिया पर एक प्रस्ताव लाया गया था लेकिन चीन और रूस ने उस पर वीटो कर दिया था. अब पश्चिमी देश चीन और रूस को मनाने की तैयारियां कर रहे हैं. राजनयिकों के मुताबिक शुक्रवार को यूएन में एक बैठक में फ्रांस के राजदूत गेरार्ड अरौद ने कहा,"सीरिया पर कार्रवाई का विरोध करने वालों को हाल के बदलावों से नतीजे निकाल लेने चाहिए." अरौद की टिप्पणी सिर्फ चीन और रूस पर नहीं, बल्कि दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और भारत पर भी थी, जिन्होंने पिछले हफ्ते की वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया था.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय में मतभेद
जर्मनी, ब्रिटेन और पुर्तगाल के राजदूतों ने भी कहा है कि सुरक्षा परिषद को सीरिया पर कार्रवाई करनी चाहिए. हालांकि रूस और चीन ने अपनी यह बात दोहराई है कि सुरक्षा परिषद को प्रतिबंधों की ओर नहीं जाना चाहिए.
चीन के राजदूत ने कहा कि पिल्लई के बयान पर सुरक्षा परिषद में चर्चा नहीं होनी चाहिए. रूस ने भी इस चर्चा पर ऐतराज किया. रूस ने इस मसले के हल का एक मसौदा विभिन्न पक्षों को दिया है जिसमें बातचीत के जरिए हल की बात कही गई है. लेकिन यूरोप और अमेरिका को यह मसौदा पसंद नहीं आया क्योंकि इसमें सीरिया की सेना और विद्रोहियों दोनों की बराबर आलोचना की गई है.
इस बीच छह खाड़ी देशों ने रविवार को अरब देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक की मांग की है. अरब लीग के एक अधिकारी ने काहिरा में बताया कि सीरिया के हालात पर चर्चा के लिए बैठक की मांग की गई है.
रिपोर्टः रॉयटर्स/एएफपी/वी कुमार
संपादनः एन रंजन