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सुपरबाजार या किराने की दुकान?

१६ दिसम्बर २०११

जर्मनी में कई छोटी दुकाने अब भी सुपरमार्केटों का मुकाबला कर रही हैं. भारत के खुदरा बाजार में विदेशी निवेश को लेकर बहस के चलते यह मुद्दा भारत में भी गर्मी पकड़ रहा है.

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तस्वीर: DW/Baron

भारत के छोटे शहरों में कई दुकानें परिवारों के जीवन का हिस्सा बन गई हैं. अरोड़ा एंड संस ऋषिकेश शहर में एक साड़ी की दुकान है. पिछले 35 सालों से कई परिवार लगातार इनसे साड़ियां और कपड़े खरीदते हैं. साड़ियों की शौकीन कामिनी का कहना है, "जब मैं छोटी थी तो मेरे पिता मुझे यहां लाया करते थे." अब शादी का जोड़ा भी कामिनी अरोड़ा एंड संस से ही मंगवा रही हैं. भारत सरकार ने इस वक्त खुदरा बाजार में विदेशी निवेश को रोक रखा है, लेकिन अगर यह फैसला लागू कर दिया जाता है, तो अरोड़ा एंड संस जैसे करोड़ों छोटे मगर समृद्ध व्यापारियों को भारी नुकसान हो सकता है. इन छोटी दुकानों की जगह लेंगे विदेशी सुपरमार्केट जैसे टेस्कोस और वालमार्ट.

नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र पढ़ा रहे डा प्रवीण झा भी मानते हैं कि भारतीय खुदरा बाजार में विदेशी निवेश से छोटे व्यापारियों के लिए मुश्किल पैदा हो सकती है. उनका कहना है कि विदेशी निवेश के पक्ष में तर्क यह है कि यह मूलभूत संरचनाओं के सुधार में मदद करेगा. लेकिन इस सिलसिले में जमीनी स्तर पर ज्यादा शोध नहीं हुआ है जिस वजह से मामले का सही आकलन करना मुश्किल हो रहा है.

झा का कहना है कि खुदरा बाजार में विदेशी निवेश से बेरोजगारी पर भी कुछ ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. कहते हैं, "हम लगातार विकास कर रहे हैं, लेकिन रोजगार बिलकुल नहीं बढ़ा है. अगर आप पिछले पांच साल देखें, तो रोजगार में कोई बढ़तरी नहीं हुई है और वैसे इन पांच सालों में भारत में सबसे ज्यादा आर्थिक विकास हुआ है.

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तस्वीर: picture alliance/Yvan Travert/akg-images

जर्मनी के विकास को देखा जाए तो यहां भी छोटी दुकानों को सुपरमार्केट के सामने हार माननी पड़ी है. क्या अर्थशास्त्री झा का तर्क यहां भी सही साबित होता है? बॉन शहर के बॉयल इलाके में एंजेला की एक कपड़ों की दुकान है. 22 साल पहले इनकी मां ने बच्चों के लिए खास कपड़े और खिलौने बेचने का सपना पूरा किया. अब एंजेला इसे चलाती हैं. उनका कहना है, "बिजनेज अब भी अच्छा है."

लेकिन एंजेला का मानना है कि आज कल की युवा पीढ़ी को रेडीमेड और सस्ते कपड़ों की आदत हो चुकी है और ऐसे ग्राहकों को बड़ी कंपनियों का सस्ता माल अच्छा लगता है. डेयर क्लाइने लाडेन इसलिए बाकियों से अलग है. एंजेला कहती हैं, "एक वक्त ऐसा था जब कपड़ों की कीमत कुछ और थी. खरीदने और फेंकने वाली हालत नहीं थी." एंजेला के ग्राहक अपने बच्चों के लिए पर्यावरण के अनुकूल पोशाक और कपड़े से बने खिलौने खरीद सकते हैं.

एंजेला इस बात से सहमत हैं कि जर्मनी में सारा और एच एंड एम जैसे बड़े कपड़ों के ब्रैंड बच्चों के लिए सस्ते कपड़े बेचते है लेकिन उनके ग्राहक उनकी दुकान से खुश हैं. कहती हैं कि कई माएं गर्भावस्था के दौरान भी उनकी दुकान में आती हैं, "ऐसा महसूस होता है कि जिंदगी के सबसे अहम पड़ाव पर आप भी उनका साथ दे रहे हैं."

बॉन के एक स्कूल के पास गातो की किराने की दुकान है. उनकी पत्नी एशिया से हैं और उनके दुकान में इटली, भारत, फिलिपींस, इंडोनेशिया और थाइलैंड के मसाले और खास चीजें भी मिलती हैं. गातो कहते हैं, "हमारे पास ऐसी चीजे हैं जो आपको आम तौर पर सुपरमार्केट में नहीं मिलेंगी. अगर आप सुपरमार्केट में ऐसी चीजे देख भी लें, तो वह बड़ी महंगी होती हैं." गातो की दुकान में मसालों के अलावा फल और सब्जियां भी मिलती हैं. इटली से खास कॉफी मेकर और चावल पकाने वाला कुकर भी यहां मिल जाता है. गातो की रणनीति, "आपको खेल में लगे रहना पड़ता है."

Supermarkt Regal
तस्वीर: picture-alliance/BeckerBredel

गातो को शायद अपनी भविष्य की चिंता इतनी नहीं सता रही हो, लेकिन बॉन के बाहरी इलाकों में बड़े सुपरमार्केटों की वजह से छोटे दुकानदारो को बड़ी परेशानी हो रही है. बॉन विश्वविद्यालय में पढ़ रहीं श्टेफानी का कहना है कि उन्हें अब काफी दूर सुपरमार्केट में जा कर रोज का सामान खरीदना पड़ता है. आसपास की छोटी दुकाने बंद हो गई हैं. हर हफ्ते वे बड़े थैलों में घर का सामान ले कर आती हैं.

सुपरमार्केटों की वजह से रुस्तम जैसे सब्जी बेचने वालों की भी हालत खराब हो गई है. रुस्तम की दुकान सुपरमार्केट हिट के पास है. हिट में सामान आम तौर पर बाकी जगहों से सस्ता मिलता है. सुपरमार्केट के बाहर आप अपनी गाड़ी मुफ्त में खड़ी कर सकते हैं और कई बार मुफ्त में भी छोटी चीजें मिल जाती हैं. रुस्तम कहते हैं कि उनकी सब्जियां सस्ती हैं, हालांकि उनके दुकान में हिट के मुकाबले केवल आलू सस्ते मिलते हैं. रुस्तम का मानना है कि फल और सब्जियों के साथ भविष्य के लिए योजना बनाने से कोई फायदा नहीं है. सब्जियों और फलों को ज्यादा देर रखा नहीं जा सकता और हर साल फसल से ही पता लगता है कि कितना मुनाफा होने वाला है.

भारत में विदेशी निवेश को समर्थन देने वाले लोग भी यही तर्क देते हैं. वित्तीय विश्लेषण कंपनी केपीएमजी के मुताबिक देश के खुदरा बाजार में निवेश की कमी है जिस वजह से सामान भेजने और मिलने में ही बहुत बर्बाद हो जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में फल और सब्जियों को भेजने में 25 से लेकर 30 प्रतिशत हिस्सा खराब हो जाता है. कहा जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय सुपरमार्केट कंपनियों के आने से इस परेशानी को हल किया जा सकता है.

इस बीच बॉन में रुस्तम का भविष्य भी अंधेरा नजर आ रहा है. उनका कहना है कि वह अपने दुकान के लिए बहुत ज्यादा किराया देते हैं जबकि सुपरमार्केट कंपनियों के पास इतना पैसा होता है कि वे सालों तक दुकानों को किराए पर ले लें. रुस्तम कहते हैं कि उनके आसपास कई दुकान ऐसी हैं जिन्होंने सालों से अपना किराया नहीं दिया है. रुस्तम की दुकान के पास किताबें बेचने वाले गोएते उंड हाफिज को भी रोटी के लाले पड़ रहे हैं. हिट सुपरमार्केट में किताबें भी सस्ते दामों में मिल रहे हैं. लेकिन दुकान के मालिकों ने अब ऑनलाइन किताब खरीदने बेचने का काम शुरू कर दिया है.

गातो की दुकान भी सस्ते सुपरमार्केट के आगे जिंदा रहने के लिए संघर्ष कर रहा है. आल्डी और नेटो जैसे सुपरमार्केट अब बहुत ही सस्ते दामों में दुनिया भर से खाना और मसाले लाते हैं. लेकिन गातो के ग्राहकों को अच्छी क्वालिटी का सामान मिलता है और वे गातो से सामान मंगवा भी सकते हैं. किराने की दुकान के पास एक स्कूल है और मां बाप अकसर बच्चों को स्कूल से वापस लाते वक्त गातो की दुकान में खरीदारी करने आते हैं. बच्चों को मुफ्त में मिठाइयां मिलती हैं. गातो की ही तरह सैंकड़ों जर्मन दुकानदार नई रणनीतियां बनाकर सुपरमार्केटों का सामना कर रही हैं.

रिपोर्टः एम गोपालकृष्णन

संपादनः एन रंजन

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