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सूनामी के बाद अब पर्यटन की चपेट में

प्रिया एसेलबोर्न (संपादन: एस गौड़)२४ दिसम्बर २००९

सूनामी से अंडमान निकोबार में लगभग 6 हज़ार लोगों की जानें गई थी. लेकिन समाज से अलग रह रहे आदिवासी अपने पुराने रिवाजों की वजह से बच भी गए थे. सूनामी से तो वे बच गए लेकिन क्या पर्यटन की चपेट से बच पाएंगे.

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अनछुई प्रकृति और उसकी आदिम संतानों का आखिरी बसेरा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह. शीशे की तरह साफ़ पानी में चमकती है सुबह की धूप, चांदी की तरह चमकता बालू का तट हैवलॉक आइलैंड का राधानगर दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत तट रेखाओं में से एक है. सबसे बड़ी बात कि यहां पर्यटकों की भीड़ नहीं होती है. जर्मनी के हैमबर्ग के 25 वर्षीय कार्स्टेन शिलर का कहना है कि यह बेहद सुंदर है.

Andamanen und Nikobaren
तस्वीर: AP

आराम करने के लिए, धूप सेंकने के लिए भारत में अंडमान सबसे ख़ूबसूरत जगह है. यहां बहुत अच्छी गोताखोरी की जा सकती है. ये द्वीप बाकी द्वीपों से कुछ कटे हुए हैं और बहुत ज़्यादा सैलानी नहीं आते. चारों ओर ख़ामोशी छाई हुई है.

मोहम्मद जादवेद कुछ दिन पहले तक अंडमान और निकोबार के चैंबर ऑफ़ कामर्स के अध्यक्ष थे. वह एक जहाज़ी बेड़े के मालिक हैं और पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी राय में यह बहुत ज़रूरी है. सन 2004 तक यहां साल में डेढ़ लाख पर्यटक आते थे. बड़े-बड़े होटल बनाए जाने वाले थे. फिर सूनामी आई. अब ताज ग्रुप यहां होटलों की एक कड़ी बनाना चाहता है. सरकार की ओर से भी अरबों के निवेश की योजना बनाई जा रही है.

लेकिन पर्यावरण संगठनों की राय में ये योजनाएं ख़तरे से भरी हैं. ख़तरा सिर्फ़ इस द्वीप समूह की बहुरंगी प्रकृति और उसके प्राणी जगत को ही नहीं है. कैसे पर्यटन पर नियंत्रण रखा जाएगा? ख़ासकर इनकी चपेट में आदिम जारवा जनजाति का अस्तित्व ख़तरे में पड़ सकता है. उनकी संख्या सिर्फ़ 350 रह गई है.

यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने 6 साल पहले आदेश दिया था कि उनके वन्य इलाके तक जाने वाली सड़क बंद रखनी पड़ेगी. आज तक यह क़दम नहीं उठाया गया है. ख़तरा है कि कुछ एक सालों के अंदर ऐंथ्रोपोलॉजी के लिहाज से मूल्यवान यह जनजाति धरती पर से मिट जाएगी.