सेना में बच्चों की भर्ती पर रोक लगेः फ्रांस
२७ सितम्बर २०११अफगानिस्तान में आए दिन आत्मघाती हमले होते हैं. इन हमलों के लिए खास तौर से बच्चों को तैयार किया जाता है. अधिकतर इन मासूमों को पता भी नहीं होता कि वे अपनी जान खतरे में डाल रहे हैं. यही हाल दुनिया के और कई देशों का भी है. अफ्रीका के कई देशों में तो बच्चों को सेना में भर्ती किया जाता है. संयुक्त राष्ट्र इस पर रोक लगाने की कोशिश करता रहा है और काफी हद तक सफल भी रहा है. लेकिन आज भी दुनिया भर में कम से कम ढाई लाख बच्चे ऐसे हैं जिन्हें इस अपराध से बचाने की जरूरत है.
राजनीतिक प्रतिबंध की मांग
सोमवार को इसी मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की बैठक चली. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एक कार्यकारी दल ने मांग की है कि जिन देशों के नाम ब्लैकलिस्ट किए गए हैं उनके खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएं. लेकिन यह मांग फाइलों में दब कर रह गई है और अब तक इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है. फ्रांस के मानवाधिकारों के राजदूत फ्रान्कोइज जिमेरे ने समाचार एजेंसी एएफपी को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "हम मांग कर रहे हैं कि ऐसे देशों पर राजनीतिक प्रतिबंध लगाने के लिए प्रक्रिया को आसान बनाया जाए ताकि हम उन पर और दबाव बना सकें और उन पर इसका प्रभाव पड़े. फिलहाल तो यह बेहद बेतुके ढंग से उलझा हुआ है."
सोमवार को संयुक्त राष्ट्र की बैठक से पहले जिमेरे ने न्यूयॉर्क में पत्रकारों से कहा, "देशों को धमकाने में यह कारगर होगा - कोई भी देश नहीं चाहता कि उसका नाम ब्लैकलिस्ट हो. हम लगातार देख रहे हैं कि बच्चों की फौज की पूरी पूरी बटैलियन खत्म हो रही हैं. ऐसा सिर्फ प्रतिबंध लगने के डर से हो रहा है."
कानूनी कार्यवाही जरूरी
नेपाल, बर्मा, श्रीलंका और अफगानिस्तान समेत इराक, सूडान, युगांडा, कोलंबिया, फिलिपीन्स और कांगो इस सूची में शामिल हैं. जिमेरे की मांग है कि इन देशों पर राजनीतिक प्रतिबंध के अलावा कानूनी कार्यवाही भी हो. उनका मानना है कि यदि इन्हें अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत के आगे पेश होना पड़े तो वे बच्चों को सेना में भर्ती करना बंद कर देंगे, "मानवाधिकारों के लिए 80 प्रतिनिधिमंडलों का राजदूत रहने के बाद मैं यह बात कह सकता हूं कि जिन लोगों को किसी बात से डर नहीं लगता, उन्हें भी अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत का नाम सुन कर सच्चाई दिखने लगती है."
2007 में पैरिस में हुई संयुक्त राष्ट्र की बैठक में दुनिया भर में सेना में बच्चों की भर्ती पर रोक लगाने पर चर्चा हुई. उस समय 60 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे. तब से अब तक करीब सौ देश इसका हिस्सा बन चुके हैं. जिमेरे ने कहा, "हम चाहते हैं कि पूरी दुनिया में इन नियमों का पालन हो और हमें उम्मीद है कि इस साल के अंत तक हम सौ का लक्ष्य पूरा कर पाएंगे."
पाकिस्तान और चीन का इंकार
चीन, रूस और पाकिस्तान ने संधि पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है. यह समझना मुश्किल है कि इन देशों को बच्चों के अधिकारों से क्या परहेज है. जिमेरे ने इस बात पर चर्चा करते हुए कहा, "इसके कई कारण हैं - कुछ देश आत्मघाती हमलों में मारे जाने वाले बच्चों को इसमें नहीं गिनना चाहते, तो कुछ देशों को लगता है कि ऐसा करने से उनके अंतरिम मामलों में दखल दिया जा सकता है."
जिमेरे ने श्रीलंका का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां सरकार ने सेना का हिस्सा रह चुके बच्चों को एक बार फिर समाज में जगह दिलाई है और बाकी देशों को भी इस से सीख लेनी चाहिए, "बच्चों का अपने बचपन पर अधिकार है और हमें यह सुनिश्चित करना है कि ऐसा मुमकिन हो. साथ ही लोगों को यह बात भी समझनी होगी कि बच्चों का सेना में होना एक युद्धकालीन अपराध है."
रिपोर्ट: एएफपी/ईशा भाटिया
संपादन: ए कुमार