स्पेन में ऐतिहासिक जीत के साथ ऐतिहासिक मुसीबतें
२१ नवम्बर २०११दक्षिणपंथी पीपल्स पार्टी को स्पेन के 30 साल के राजनीतिक इतिहास की सबसे बड़ी जीत हासिल हुई है. रविवार को हुए चुनावों में पार्टी को 186 सीटें मिली. पिछली बार उनके पास 154 सीटें थीं. सत्ता से जा रही सोशलिस्ट पार्टी 169 से खिसककर 110 सीटों पर आ गई है. यह पार्टी का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है. सोशलिस्ट पार्टी की हार के साथ ही यूरोजोन के वित्तीय संकट ने पांचवीं सरकार की बलि ले ली है.
जीत से पहले मुसीबत
लेकिन राहोय को फौरन गद्दी नहीं मिलेगी क्योंकि स्पेन में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया काफी लंबी है. वह 20 दिसंबर के आसपास ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ पाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं होगा कि उससे पहले का समय वह जीत की खुशी में बिताएंगे, क्योंकि उनके सिर पर आर्थिक संकट नाम की तलवार लटक रही है. और यह तलवार कितनी खतरनाक है, इसका अंदाजा उन्हें अपनी जीत के अगले दिन बाजारों के भाव देखकर हो गया होगा. सोमवार को यूरोपीय बाजारों में फिर गिरावट दर्ज की गई.
राहोय के सामने रास्ता मुश्किल इसलिए है क्योंकि जिन लोगों ने उन्हें जिताया है, उन्हीं की जेबें हल्की करने का काम राहोय को करना होगा. सार्वजनिक खर्च करने के लिए वह किस हद तक जा सकते हैं, यह सोचना उनके लिए आसान नहीं होगा. अब तक उन्होंने बस इतना ही कहा है कि वित्तीय संकट हल करने का कोई जादुई तरीका नहीं है.
यूरोजोन की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था स्पेन की हालत तेजी से पतली हो रही है और वह आयरलैंड, पुर्तगाल और ग्रीस की तरह बेलआउट पैकेज जैसी स्थिति की ओर बढ़ रही है. राहोय ने अब तक जिन सुधारों की बात कही है उनमें श्रम बाजार, सार्वजनिक क्षेत्र और वित्तीय सुधार शामिल हैं. लेकिन उन्होंने कोई स्पष्ट नीति या सोच जाहिर नहीं की है.
क्या क्या चुनौतियां
दक्षिणी झुकाव वाले अखबार अल मुंडो ने अपने संपादकीय में लिखा है "राहोय को न सिर्फ अर्थव्यवस्था की हालत सुधारनी होगी, बल्कि उन्हें राजनीति को भी नया जीवन देना होगा. उन्हें कुछ कड़े कदम उठाने होंगे जो शायद न तो यूनियनों को पसंद आएंगे और न सोशलिस्ट विपक्ष को."
हालांकि सोशलिस्ट पार्टी की राय कमजोर जरूर हुई है क्योंकि लोगों का आरोप है कि सरकार ने संकट आने पर कदम उठाने में बहुत देर कर दी. जिसका नतीजा ये हुआ कि देश दो साल में दूसरी बार आर्थिक मंदी की ओर फिसल रहा है. राहोय जानते हैं कि इस गिरावट को एकदम रोक पाना तो संभव नहीं है. जीत के बाद रविवार रात अपने भाषण में उन्होंने कहा, "कोई चमत्कार नहीं होंगे. हमने चमत्कार का वादा नहीं किया है. लेकिन हम यह देख चुके हैं कि अगर चीजों को सही तरीके से किया जाए तो उनके नतीजे अच्छे ही निकलते हैं."
राहोय के सामने अपने देश का सम्मान वापस लाने की चुनौती है. उन्होंने कहा, "ब्रसेल्स और फ्रैंकफर्ट में स्पेन की आवाज की इज्जत होनी चाहिए. हम समस्या नहीं हल बनेंगे."
असल में यह सम्मान की भावना ही है जिसके लिए लोग उनका साथ दे सकते हैं, क्योंकि राहोय के कदम उन लोगों के लिए ही तो मुश्किल होंगे.
रिपोर्टः रॉयटर्स/एपी/वी कुमार
संपादनः ओ सिंह