हथियारों का बाज़ार होगा 100 अरब डॉलर का
३० अक्टूबर २००९भारत बड़ी मात्रा में हथियारों का आयात करने वाला देश है. वह हथियारों के व्यापार में निजी कंपनियों की भूमिका को बढ़ाना चाहता है, फ़िलहाल रक्षा बाज़ार में निजी क्षेत्र की 20 फ़ीसदी हिस्सेदारी है. लेकिन इसमें बढ़ोतरी की काफ़ी संभावनाएं बताई गई हैं.
भारत की नई रक्षा नीति के तहत सरकार घरेलू कंपनियों को बड़े प्रोजेक्ट्स में बोली लगाने की अनुमति देगी, लेकिन इसमें ख़र्च कंपनियों का ख़ुद का होगा.
अब तक निजी कंपनियों को भारत सरकार के बड़े रक्षा सौदों में बोली लगाने के लिए नहीं बुलाया जाता था. लेकिन अब सरकार निजी क्षेत्र की रक्षा व्यापार में भागीदारी बढ़ाना चाहती है.
"अब बोली लगाने के लिए बाज़ार खुला है. सभी कंपनियां किसी भी प्रोजेक्ट के लिए, दुनिया के सबसे बड़े प्रोजेक्ट के लिए भी बोली लगा सकती है.''
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता सितांशु कर का कहना था कि "अब स्थानीय कंपनियों को टैंक्स, गोलीबारी और युद्धक हवाई जहाज़ के ठेकों के लिए भी बोली लगाने की छूट होगी. इस कदम से ख़र्चों में कमी आएगी और इससे भारत को रक्षा क्षेत्र में उत्पादन का बड़ा केंद्र बनने में मदद मिलेगी."
इस कदम से टाटा मोटर्स, महिन्द्रा एंड महिन्द्रा, अशोक लेलैंड के साथ लारसन और टर्बो जैसी कंपनियों को नए मौक़े मिलेंगें. रक्षा मंत्री ए के एंटनी का कहना है कि "फ़िलहाल रक्षा उद्योग को बढ़ाने और उसमें भागीदारी बढ़ाने के साथ ही,सौदों में पारदर्शिता और सभी को इकट्ठा करने की कोशिश है."
"अगले पांच से छह साल में पूंजी अधिग्रहण के लिए बजट प्रावधान बढ़ कर 50 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा." एके एंटोनी ने बताया. जबकि रक्षा विशेषज्ञों और कंपनियों का कहना है कि अगले दस साल में यह 100 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा.
भारत पूर्व सोवियत संघ के समय के अपने हथियार बेहतर और आधुनिक बनाना चाहता है ताकि वह चीन और पाकिस्तान की टक्कर में खड़ा हो सके. अगले पांच साल में सरकार हथियारों के आधुनिकीकरण के लिए 30 अरब डॉलर ख़र्च करना चाहती है. विदेशी रक्षा कंपनियों ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है. ज़ाहिर है हथियारों का एक संपन्न और भारी भरकम बाज़ार सबकी आंखों के सामने घूम रहा है.
रिपोर्टः रॉयटर्स/आभा मोंढे
संपादनः एस जोशी