हथियारों के निर्यात में चीन नंबर 3
१६ मार्च २०१५स्टॉकहोम स्थित थिकटैंक इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2010 से 2014 के बीच विश्व भर में हथियारों के कारोबार में पिछले पांच सालों के मुकाबले करीब 16 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई. दुनिया भर में हथियारों का सालाना व्यापार कई अरब डॉलर का है. ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि "अमेरिका काफी मजबूती से आगे बना हुआ है" और परंपरागत हथियारों के कुल वैश्विक निर्यात में उसका हिस्सा करीब 31 फीसदी है.
सिपरी की रिपोर्ट के अनुसार 27 फीसदी हिस्सेदारी से साथ रूस दुनिया भर में हथियारों के निर्यात के मामले में दूसरे नंबर पर है. तीसरे स्थान पर आने वाले चीन की हिस्सेदारी दोनों चोटी के निर्यातकों से काफी कम है. कुल वैश्विक निर्यात में लगभग पांच प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ जर्मनी और फ्रांस भी चीन से बहुत पीछे नहीं हैं.
सबसे ज्यादा खरीदार एशिया में
इन आंकड़ों में ध्यान देने वाली यह भी है कि हथियारों की खरीदारी करने वाले ज्यादातर देश एशिया में हैं. भारत हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार है जो 15 फीसदी आयात करता है. दूसरे नंबर पर पांच फीसदी खरीद के साथ सउदी अरब और चीन हैं. चीन एक ओर हथियारों की खरीद कर रहा है तो दूसरी ओर वह बड़े पैमाने पर हथियार बेच भी रहा है.
एशिया के तीन देश - पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार - चीनी निर्यात का दो-तिहाई से भी बड़ा हिस्सा खरीद रहे हैं. चीन के कुल निर्यात का 41 फीसदी तो अकेला पाकिस्तान ही खरीदता है. बीते पांच सालों के दौरान चीन से हथियारों का निर्यात करने वाले देशों की सूची में अफ्रीका के 18 देश भी शामिल हैं.
भारत है सबसे बड़ा आयातक
दुनिया में हथियारों की खरीद के मामले में चोटी के देश भारत में सबसे ज्यादा आयात रूस से होता है. रूस अपने सबसे बड़े खरीदार को उसके कुल आयात का करीब 70 फीसदी मुहैया कराता है. अमेरिका से हथियार खरीदने वाले बहुत ज्यादा बिखरे हुए हैं. अमेरिकी हथियारों का सबसे बड़ा ग्राहक दक्षिण कोरिया है लेकिन वह भी अमेरिका के कुल निर्यात का केवल 9वां हिस्सा ही है.
बीते पांच सालों में यूक्रेन और रूस में हथियारों के निर्यात में बढ़ोत्तरी हुई है जबकि जर्मनी और फ्रांस में कमी आती दिखी है. सिपरी की रैंकिंग के यह सारे आंकड़े सौंपे गए हथियारों की मात्रा पर आधारित हैं, उनके मूल्य पर नहीं. पिछले पूरे दशक के दौरान हथियारों के व्यापार का बाजार काफी बढ़ा है, लेकिन मात्रा के हिसाब से यह 1980 के दशक के मुकाबले करीब एक तिहाई कम है.
आरआर/एमजे (एएफपी)