"हमारे पास कुबेर का खजाना नहीं है"
२८ नवम्बर २०११ग्रीस और इटली के आर्थिक संकट के बीच यूरो जोन को बचाने के लिए सबसे ज्यादा पसीना जर्मनी को बहाना पड़ रहा है. जर्मनी की जेब से पैसे भी जा रहे हैं और कोई ठोस हल भी नहीं निकल रहा है. जर्मनी पर अब भी यह दबाव है कि वह जेब और ढीली करे.
जर्मनी इस अति उम्मीदों वाली स्थिति से खीझ रहा है. सोमवार को जर्मन चासंलर अंगेला मैर्केल के प्रवक्ता ने कहा, "जर्मनी अपने यूरोपीय सहयोगियों के साथ खड़ा है. जर्मनी पहले से अपने अथाह संसाधन झोंक चुका है. लेकिन हमें भी कर्ज से निपटना है. हमारे पास अनंत वित्तीय संसाधन नहीं है." जर्मन सरकार के इस रुख से संकेत मिल रहे हैं कि जर्मनी अब वित्तीय तौर पर ज्यादा मदद करने के मूड में नहीं है. जर्मनी पर सकल घरेलू उत्पाद का 80 फीसदी कर्ज है.
जर्मनी की खरी खरी
जर्मनी का कहना है, "इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि यूरोप में हमारे पास बहुत पैसा है, ऐसा नहीं है. हम यूरोप में मजबूत हैं. जर्मनी मजबूत है लेकिन हम अंनत सीमा तक मजबूत नहीं हैं." जर्मनी ने नसीहत देते हुए कहा कि यूरो जोन के सदस्य देशों को अपना कर्ज घटने पर ध्यान देना चाहिए, सरकारी खर्चे कम करने चाहिए और अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्द्धा का माहौल बनाना चाहिए.
दुनिया के कई देश जर्मनी पर दबाव डाल रहे है कि वह या तो यूरोजोन बचाव फंड के लिए और ज्यादा पैसे दे, वरना कर्ज को 17 देशों में बांटने के प्रस्ताव का विरोध करना बंद कर दे. कहा जा रहा है कि बर्लिन कुछ प्रभावी समाधानों का रास्ता भी रोके हुए है. यूरोपियन सेंट्रल बैंक चाहता है कि वह बॉन्ड बाजार में प्रभावशाली ढंग से दखल दे और सदस्य देशों के कर्ज संबंधी बॉन्ड्स की ब्याज दर गिराए.
यूरोपीय संघ-अमेरिका सम्मेलन
यूरो जोन में जारी संकट के बीच सोमवार को वॉशिंगटन में ईयू-यूएस सम्मेलन शुरू हुआ. सम्मलेन की मेजबानी अमेरकी राष्ट्रपति बराक ओबामा कर रहे हैं. सम्मेलन में यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष हरमन फान रोमपोए, यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष खोसे मानुएल बारासो और यूरोपीय संघ की विदेश नीति की प्रमुख कैथरीन एस्टन भी हिस्सा ले रही हैं.
यूरोपीय अधिकारियों के मुताबिक व्हाइट हाउस में होने वाली बैठक का मुख्य मुद्दा विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था होगी. 17 देशों वाले यूरो जोन की वित्तीय अस्थिरता का हल निकालने पर भी विचार किया जाएगा. अमेरिकी विशेषज्ञों का कहना है कि यूरो के संकट को लेकर वॉशिंगटन कुछ असमंजस में है. अमेरिका कभी यूरो जोन को एक अर्थव्यवस्था की तरह देख रहा है तो फिर उसे जर्मनी, फ्रांस और हर किसी देश को अलग अलग नजरिए से देखना पड़ रहा है.
रिपोर्ट: एएफपी/ओ सिंह
संपादन: ए जमाल