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हरा भरा रेगिस्तान

२४ जुलाई २००९

बच्चा हो या बड़ा, हर कोई सोंधी मिट्टी की खुशबू का आनंद लेता है. सोचिए, कैसा हो अगर आप अपने घर के छोटे से आंगन में खुद ही बारिश करा सकें, उसे हराभरा बना सकें--वह भी समुद्री खारे पानी से? ऐसा मुमकिन है.

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कांचघर में फूलों की खेतीतस्वीर: AP

हम सब जानते हैं की बारिश कैसे होती है. सूरज अपनी गर्मी से नदियों और सागर के पानी को भाप में बदल देता है. यह भाप ऊपर जा कर बादलों का रूप ले लेती है. बदल जब पानी से भर जाते हैं और ऊपरी हवाओं से ठंडे होने लगते हैं तब बरस पड़ते हैं. पर अब यह पानी समुद्र के पानी की तरह खरा नहीं होता बल्कि पीने लायक मीठे पानी में बदल चुका होता है. प्रकृति के इसी सिधांत पर आधारित है ब्रिटेन के चार्ली पैटन का समुद्री ग्रीनहाउसः

"इस ग्रीनहाउस में बाहर से हवा अंदर आती रहती है, जो एक थर्मल इवैपोरेटर यानि वाष्पीकरण युक्ति से गुज़रती है. वास्तव में यह जलरोधक नालीदार गत्ते से बनी एक बड़ी दीवार है, जिस पर लगातार पानी बहता रहता है. गर्म हवा इसके संपर्क में जब आती है तब यह पानी भाप में बदल जाता है. वायु प्रवाह को जब ठंडा किया जाता है तब वह भाप संघनित हो कर मीठे पानी में बदल जाती है."

रेगिस्तान में नखलिस्तान

चार्ली पैटन अपने इस ग्रीनहाउस को ख़ास तौर से उन जगहों पर काम में लाने चाहते हैं जहां खेती-बाडी के कारण पानी के संसाधनों का बहुत अधिक मात्रा में प्रयोग हो चुका है. इस के साथ साथ मरुस्थल में भी इस तकनीक का उपयोग बहुत लाभकारी सिद्ध होगाः

"हम ऐसी तकनीक तैयार कर रहे हैं जो तब भी काम में आ सके जब सूखे जैसी स्तिथि हो. कई देशों में भूजलस्तर नीचे गिरता जा रहा है, उदाहरण के तौर पर मध्य पूर्व के देश, उत्तरी अफ्रीका, स्पेन, चीन, ऑस्ट्रेलिया और भारत में. कहा जा सकता है कि जहां खेती में सिंचाई का बहुत अधिक प्रयोग होता है वहां जलस्तर गिरता जा रहा है."

हवा बनाती है खारे पानी को मीठा

पेयजल की तुलना में समुद्री खारा पानी बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध है. हवा भी हर जगह होती ही है. चार्ली पैटन बताते हैं कि ग्रीनहाउस को हवा की दिशा के सामानांतर बनाना चाहिए. इससे यह होगा कि ग्रीनहाउस में हर समय हवा आती रहेगी और खारे पानी से मीठा पानी बनाने का यह कार्य चलता रहेगाः

Dromedarkarawane in der Wüste bei Merzouga
मेरज़ौगा मरुस्थल, मोरक्कोतस्वीर: picture-alliance / dpa

"आम तौर पर ग्रीनहाउस में टमाटर, गोभी, खीरे और सेम जैसी चीज़ें उगाई जाती है. पर हमारी विधि में एक और फ़ायदा है: पौधों को जितना पानी चाहिए, यहां उस से ज्यादा पानी बन जाता है. इसीलिए नमी से भरी हवा ग्रीनहाउस से बहार निकलती है. इस से होता यह है कि ग्रीनहाउस के चरों ओर ठंडा, नमी से भरा वातावरण बन जाता है. ग्रीनहाउस के बहार का यह वातावरण खेडी-बाडी के और भी उपयुक्त है. इस में विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे उगाए जा सकते हैं."

सब जगह दिलचस्पी

चार्ली पैटन ने साथी भी खोज लिए हैं जो इस प्रोजेक्ट को आगे ले जाना चाहते हैं. इनमें एक हैं नोर्वे की बेल्लोना संस्था. इस संसथान के योआकिम हाउके का मानना है की इस तकनीक की मदद से रेगिस्तान में भी पौधे उगाए जा सकते हैं:

"इस तरह की परियोजना में हिस्सेदार होना बहुत ही रोमांचक है. यहां सूरज की रौशनी, हवा और समुद्री पानी जैसे सीधेसादे साधनों द्वारा एक ही समय पर पेयजल, बिजली और जैव इंधन बनाया जा सकता है. हमें इस तरह के उपायों की ज़रुरत है, ताकि हम भविष्य में भी विभिन्न प्रकार के संसाधनों की मांग पूरी कर सकें."

अब तक यह समुद्री ग्रीनहाउस केवल एक परीक्षण परियोजना है. इस परीक्षण परियोजना के तहत अबू धाबी और ओमान में दो प्लांट लगाए गए हैं. अब बेल्लोना संस्था भी एक प्लांट लगाने की सोच रही है, जिसमें और भी नए प्रकार के परीक्षण किए जा सकेंगे. यह परीक्षण कब वास्तविकता में बदलेगा, यह कहना तो अभी मुश्किल है. बहरहाल चार्ली पैटन को दुनिया भर से जानकारी देने के अनुरोध तो आ ही रहे हैं.

रिपोर्ट- फ़ोल्कर म्रासेक / ईशा भाटिया

संपादन- राम यादव