हर घंटे गुम हो रहे हैं 12 बच्चे
३ फ़रवरी २०१२पिछले सप्ताह बुरी तरह घायल हालत में अस्पताल लाई गई दो साल की मासूम बच्ची फलक की हालत अभी भी नाजुक बनी हुई है. बुरी तरह पीटने से उसके सिर में गंभीर चोटें आई हैं. उसका एक हाथ टूटा हुआ है और चेहरे को भी दागा गया है. डॉक्टर उसे बचाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं.
सबसे खराब हालत देश की राजधानी दिल्ली की है. यहां हर दिन दर्जनों बच्चे गायब हो जाते हैं. ताजा रिपोर्ट के अनुसार बीते चार महीनों में अकेले दिल्ली से 1600 बच्चे गायब हो चुके हैं.
कौन है जिम्मेदार
दिहाड़ी मजदूरी कर जीवन चला रहे आबिद अली भी फलक की हालत जानने अस्पताल पहुंचे. उनका कहना है, "मैं मां बाप की हालत समझ सकता हूं. मैं उम्मीद करता हूं कि वह अच्छी हो जाए. दो साल पहले मैंने भी अपनी बच्ची खोई है और पुलिस ने उसे खोजने के लिए कुछ नहीं किया."
कुछ इसी तरह की कहानी पश्चिमी दिल्ली में मकान बनाने का काम करने वाले राजकुमार सिंह की भी है. उनका 13 साल का बेटा हरि जून 2010 से लापता है. वह स्कूल के लिए घर से निकला लेकिन लौटा नहीं. बेटे के गायब होने के बाद से ही राजकुमार उसे तलाश रहे हैं, "मैं 20 बार से भी ज्यादा थाने जा चुका हूं. स्थानीय पार्षद का दरवाजा खटखटा चुका हूं. स्कूल में प्रदर्शन कर चुका हूं. लेकिन मैं चुप बैठने वाला नहीं हूं. मैंने स्थानीय अखबारों में विज्ञापन भी छपवाए हैं."
इसी तरह चार से 14 वर्ष के उन सैकडों हजारों बच्चों का जीवन भी अंधकारमय है जो लापता हैं. बच्चों के लिए काम करने वाली संस्थाओं का मानना है कि ऐसे बच्चों से भीख मंगवाने के अलावा उन्हें बंधुआ मजदूरी और वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है. कुछ मामलो में उन्हें गैरकानूनी रूप से गोद भी ले लिया जाता है.
बच्चों के अवैध व्यापार के खिलाफ काम करने वाले संगठन बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) के प्रमुख आरएस चौरसिया डॉ़यचे वेले से बातचीत में कहा, "यह बहुत अच्छी तरह संगठित गिरोह है. वे बच्चों को ऐसी जगहों पर रखते हैं, जहां कोई पहुंच ही नहीं सकता है. कई बच्चों को मानव अंगों की तस्करी, गैरकानूनी ढंग से गोद लेने और भीख मांगने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है."
अपहरण की राजधानी
दिसंबर 2011 में प्रकाशित रिपोर्ट मिसिंग चिल्ड्रन इन इंडिया में देश भर के 392 जिलों से गुम हुए बच्चों का आंकड़ा शामिल किया गया है. जनवरी 2008 से 2010 के बीच देश भर से एक लाख 20 हजार बच्चों के लापता होने जानकारी है. इसी दौरान अकेले दिल्ली से 13,570 बच्चे गायब हुए हैं. यह जानकारी मानव अधिकार संगठन, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो और विभिन्न संगठनों के एकत्रित आंकड़ों के आधार पर जुटाई गई है.
बीबीए के कैलाश सत्यार्थी के अनुसार सबसे बड़ी समस्या यह कि इन मामलों की जांच और रोकथाम के लिए जिम्मेदार एजेंसियां ही इसके प्रति गंभीर नहीं हैं.
उधर दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने नाम न छापने के अनुरोध पर बताया कि यहां कई संगठित गिरोह बच्चों की तस्करी में जुटे हैं. लापता बच्चों में बड़ी संख्या उनकी भी है जो सामाजिक, आर्थिक या दूसरे कारणों से घर छोड़ कर चले जाते हैं. हालांकि वे ये नहीं बता पाए कि बीते वर्षों में कितने बच्चे घर लौटे.
बाल अधिकार संरक्षण के राष्ट्रीय आयोग की अध्यक्ष शांता सिंह के अनुसार, "बच्चों के मामलों को लेकर और अधिक गंभीर होने की जरूरत है. इसका एकदम अभाव है."
भारत गर्व करता है कि उसकी 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम उम्र के युवाओं की है. निश्चित ही यह एक आर्थिक और सामाजिक शक्ति है. लेकिन दुर्भाग्य से वहां जहां बच्चों और खास कर लड़कियों का जीवन छोटा है.
रिपोर्टः मुरली कृष्णन/जे व्यास
संपादनः ए जमाल