हर रोज नहीं अब इंसुलिन की एक खुराक और 3 महीने की छुट्टी
१४ जुलाई २०१०नेशनल इम्यूनोलॉजी इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में डॉक्टर अवधेश सुरोलिया की टीम ने ये इंजेक्शन तैयार किया है. इसमें एसआईए- टू यानी सुपरमालिक्यूलर इंसुलिन एसेंबली-टू का इस्तेमाल किया गया है जो हारमोन का एक रूप है. जानवरों पर इसके प्रयोग में यह काफी कारगर साबित हुआ. प्रयोगशाला में एक चूहे को जब इसका इंजक्शन दिया गया तो उसके खून में चीनी की मात्रा 120 दिन तक काबू में रही.
एसआईए-टू एक किस्म का प्रोड्रग है. जब इसका इंजेक्शन दिया जाता है तो यह लंबे समय तक इंसुलिन की थोड़ी मगर पर्याप्त मात्रा खून में घोलता रहता है. प्रोड्रग एक किस्म का रसायन होता है जो शरीर के अंदर जाने पर सक्रिय होकर अपने आप बदलने लगता है. इंसुलिन की यही हल्की मात्रा खून में ग्लूकोज की बढ़ी मात्रा से लड़ने के लिए काफी होती है. इस वजह से खाना खाने के बाद खून में आया अतिरिक्त ग्लूकोज काबू में आ जाता है और दूसरी तरफ हाइपोग्लूकेमिया की भी शिकायत नहीं होती. हाइपोग्लूकेमिया लो शूगर की अवस्था है जिससे शूगर के मरीजों का सामना अहले सुबह होता है. सुरोलिया के मुताबिक एसआईए-टू का इंजेक्शन देने के बाद एक जगह जमा हो जाता है और यहीं से इंसुलिन के कण खून में घुलते हैं जिसकी वजह से एक इंजेक्शन महीनों तक शरीर में ग्लूकोज की मात्रा को संतुलित रखने में कामयाब होता है. दरअसल एसआई-टू इंसुलिन के एक बढ़िया स्रोत के रूप में काम करता है.
इलाज की ये तकनीक अब तक इस्तेमाल की जा रही तकनीक से बिल्कुल उलटी है. अभी तो मरीजों को ग्लूकोज संतुलित रखने के लिए इंसुलिन की खुराक दिन में दो बार लेनी पड़ती है. इसके बाद भी खून में ग्लूकोज की मात्रा खाना खाने के बीच बढ़ जाती है क्योंकि इंसुलिन बहुत जल्द खत्म हो जाता है. नई तकनीक शूगर के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है. इस वक्त पूरी दुनिया में शूगर के 20 करोड़ से ज्यादा मरीज हैं जिनमें सबसे बड़ी तादाद भारत और चीन के मरीजों की है.
रिपोर्टः एजेंसियां/ एन रंजन
संपादनः उ.भ.