हाथ से खिलाने पर बच्चों को मां बाप से अलग किया
२२ जनवरी २०१२भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वो इस मामले में नॉर्वे के विदेश मंत्रालय से लगातार संपर्क में हैं. इस मामले में भारत की तरफ से कूटनीतिक विरोध पत्र भी ओस्लो और नई दिल्ली भेजा गया है. अनिवासी भारतीय दंपति अनुरूप और सागरिका भट्टाचार्य के तीन साल के बेटे अभिज्ञान और एक साल की बेटी ऐश्वर्या को नॉर्वे की बच्चों को संभालने वाली समिति अपने साथ ले गई. इस बारे में समिति को नॉर्वे की एक स्थानीय अदालत से निर्देश मिले थे. अनुरूप और सागरिका भट्टाचार्य ने कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की है. दंपति ने अपनी पंरपराओं के मुताबिक बच्चों को हाथ से खाना खिलाया और अपने साथ एक ही बिस्तर पर सुलाया. नॉर्वे की संस्कृति और कानून में इसकी मनाही है. हालांकि भारत में यह आम बात है. बच्चों की देख रेख करने वाली समिति को जब इस बात की खबर हुई तो वो अदालत में गई और फिर बच्चों को उनके मां बाप से अलग कर पालनघर में रख दिया गया.
इसी महीने की 12 तारीख को ओस्लो में भारतीय दूतावास के एक अधिकारी ने पालनघर में जा कर इन बच्चों को देखा और बताया कि वो फिलहाल ठीक हैं. इसके बाद भारतीय दूतावास ने भारत की सरकार और विदेश मंत्रालय की चिंता के बारे में नॉर्वे के विदेश मंत्रालय को जानकारी दी. उन्होंने नॉर्वे की सरकार को बताया कि बच्चों से उनका अपने धार्मिक, सामाजिक, जातीय और भाषाई माहौल में पलने बढ़ने का हक छीना जा रहा है. विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इन बच्चों को भारत में उनके परिवार के दूसरे लोगों के पास भेज दिया जाए. मंत्रालय ने दलील दी है कि भविष्य के हितों को देखते हुए इन बच्चों के लिए यही अच्छा होगा.
नॉर्वे के प्रशासन ने कहा है कि सरकार ने उनकी चिंता को समझा है और वो इस मामले का जल्द से जल्द कोई हल निकालने की कोशिश में हैं. भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वो इस मामले पर लगातार नॉर्वे की सरकार के संपर्क में हैं और बातचीत को आगे बढ़ा रहे हैं. भारत इस मामले में पहले ही दो बार कूटनीतिक विरोध दर्ज करा चुका है. उसका कहना है कि बच्चों को मां से अलग करना किसी भी हाल में उचित नहीं है.
बच्चों का बेहतर ख्याल रखने की कोशिश में नॉर्वे खुद को कुछ कुछ ज्यादा ही अलग समझता है. संयुक्त राष्ट्र ने 2005 में यहां इतने ज्यादा बच्चों को सार्वजनिक देखभाल में रखने की कड़ी आलोचना भी की थी. छोटे से मुल्क में फिलहाल कम से कम 12,500 बच्चे सार्वजनिक देखभाल में रह रहे हैं. इनमें से बहुत ऐसे हैं जिनके मां बाप या अभिभावक उनकी जिम्मेदारी उठाने में सक्षम हैं.
रिपोर्टः पीटीआई/एन रंजन
संपादनः ओ सिंह