हिल गई हैं कामकाजी औरतें
२८ मार्च २०१३भारत में एसोचैम की ताजा रिपोर्ट का कहना है कि दिल्ली बलात्कार कांड के बाद महिलाओं का आत्मविश्वास डिग गया है, खास तौर पर उन महिलाओं का, जो काम कर रही हैं. सिर्फ दिल्ली ही नहीं, बल्कि चेन्नई, बैंगलोर, मुंबई, हैदराबाद, पुणे, अहमदाबाद, लखनऊ, जयपुर और देहरादून जैसे शहरों में भी ऐसा ही हाल है.
फरवरी में भारतीय संसद ने नया बिल पास किया है, जिसमें काम करने की जगह पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ के खिलाफ कड़े कदम उठाए गए हैं. इसके तहत सरकारी और निजी दोनों तरह के काम में लगी औरतों को सुरक्षा देने की बात कही गई है.
नए कानून के मुताबिक अगर कोई भी शारीरिक छेड़छाड़ करता हो, छूने की कोशिश करता हो, सेक्स से जुड़ी टिप्पणी करता हो या पोर्नोग्राफी दिखाता हो, तो यह अपराध होगा और इसके लिए सजा दी जाएगी.
भारतीय संविधान के मुताबिक यौन प्रताड़ना महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. लेकिन भारत में स्थिति अलग है. अलग अलग सर्वेक्षणों से यह साबित होता आया है कि निजी और सरकारी दोनों जगह महिलाओं को इसका सामना करना पड़ता है.
ऑक्सफैम इंडिया और सोशल एंड रूरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआरआई) के 2011-12 के सर्वे में दावा किया गया कि 17 फीसदी महिलाओं को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा. यह सर्वे दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, चेन्नई, कोलकाता, अहमदाबाद, लखनऊ और दुर्गापुर में किया गया.
जिन लोगों ने इस सर्वे में हिस्सा लिया, उन्होंने यह भी बताया कि बहुत सी वजह ऐसी थी कि उन्होंने दोषियों के खिलाफ शिकायत नहीं की. केरल के छोटे से शहर कन्नौर में काम करने वाली जमीला इसकी एक वजह नौकरी जाने का खतरा भी बताती हैं, "निजी संस्थानों में यौन शोषण आम बात है. मेरे बॉस ने मेरे साथ बदतमीजी की. मैंने जब बाद में इस्तीफा दे दिया, तो मेरे पति और दूसरे रिश्तेदारों का ट्रांसफर कर दिया गया."
भारत में जो तीन काम महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक है, वे हैं मजदूरी, घरेलू कामकाज और छोटी मोटी कंपनी चलाने का. अस्पतालों में नर्सों के साथ भी बेहद बुरा बर्ताव होता है.
तिरुअनंतपुरम के श्रीचित्रा तिरुनल मेडिकल इंस्टीट्यूट के डॉक्टर पीपी सारम्मा का कहना है, "रात की पाली में काम करने वाली नर्सों को आम तौर पर इन बातों का सामना करना पड़ता है. अनजान लोगों और पुरुष मरीजों के साथ काम करना नैतिकता से भी जुड़ा होता है."
कोलकाता में 2007 में 135 स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ बातचीत के आधार पर एक सर्वे किया गया था, जिसे ब्रिटेन की पत्रिका रिप्रोडक्टिव हेल्थ मैटर्स ने प्रकाशित किया था. इसके अनुसार अस्पतालों में 57 फीसदी महिलाओं को यौन उत्पीड़न सहना पड़ा था.
दिल्ली के सेंटर फॉर वीमेन्स डेवलपमेंट स्टडीज की रिसर्चर डॉक्टर श्रीलेखा नायर का कहना है कि भारतीय समाज इस तरह से रचा बुना है, जो पुरुषों की मदद करता है और इसका खामियाजा महिलाओं को उठाना पड़ता है.
भारत में 2001 की जनगणना के मुताबिक भारत में करीब 40 करोड़ लोग काम करते थे, जो कुल आबादी का 39 फीसदी था. इनमें से महिलाओं की भागीदारी 25 फीसदी से भी कम थी. संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार से जुड़ी एक संस्था की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक लैंगिक बराबरी के मामले में भारत दुनिया में सबसे बदतर देशों में शामिल है और दक्षिण एशिया में तो इसकी स्थिति सबसे खराब है.
नायर का कहना है कि शुरू शुरू में महिलाओं को दोयम दर्जे की नागरिक के तौर पर देखा जाता है और वे अपना काम जमा लेती हैं, तो फिर उनके खिलाफ नफरत और दुश्मनी पैदा होने लगती है. नायर ने कहा, "इसका मतलब यह है कि कानून से बात नहीं बनने वाली है. इसके लिए लोगों की मानसिकता बदलने की जरूरत है."
एजेए/एमजे (आईपीएस)