हैजा के प्रकोप की शुरुआत बांग्लादेश से हुई
२७ अगस्त २०११हैजा की महामारी ने गरीब देशों को करीब चार दशकों से अपनी चंगुल में ले रखा है. अब वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि उस जीवाणु की नस्ल बांग्लादेश में पैदा हुई थी. ताजा महामारी सातवीं बार है जब से हैजा दुनिया भर में फैला है. हैजा विब्रियो कॉलेरा नाम के बैक्टीरिया से होता है. जब मानव शरीर के गंदे अवशेष पानी या खाने या फिर किसी दूसरे के हाथों तक पहुंचते हैं तो बीमारी फैलती है. इस बीमारी में दस्त और उल्टियां होती हैं जिससे मरीज शरीर का सारा पानी खो देते हैं. साफ पानी न मिलने पर मरीज की मौत घंटों के अंदर अंदर हो सकती है. ज्यादातर मरीजों को नमक वाला पानी पिलाया जाता है और गंभीर मामलों में कीटाणु नाशक एंटीबायटिक दवाइयां देनी पड़ती हैं. दुनिया भर से मरीजों से लिए गए विब्रियो कॉलेरा के 154 सैंपल के जीन अनुक्रमण से पता चलता है कि आजकल की महामारी के लक्षण 1975 में बंगाल की खाड़ी में फैले हैजा से मिलते हैं.
एल तोर जिसे विब्रियो कॉलेरा के लिए खास नाम दिया गया है उसने 1982 में जीन को ग्रसित कर दिया और शरीर पर एंटीबायटिक दवाइयों का असर करना बंद कर दिया. नतीजतन रोग दुनिया भर में फैल गया. वैज्ञानिकों की नई जांच से मिली जानकारी ब्रिटिश साइंस पत्रिका नेचर में छपी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि आधुनिक यात्रा से जीवाणु के फैलने का डर ज्यादा है.
ब्रिटेन के वेलकम ट्रस्ट संगेर इंस्टीट्यूट की जूलियन पारखिल कहती है, "हमारा अनुसंधान हैजा के विश्व भर में फैलने की अहमियत को दर्शाता है. यह उस मत के खिलाफ जाता है जिसमें कहा जाता आया है कि हैजा हमेशा स्थानीय स्ट्रेन से बढ़ता है. लेकिन इस शोध के जरिए हमें महामारी को समझने में मदद मिलेगी."
हर साल हैजा की चपेट 30 से 50 लाख लोग आते हैं और इनमें से करीब एक से सवा लाख लोगों की सालाना मौत हो जाती है.
हैती में भूकंप आने के बाद वहां हैजा फैला था. हैती में 2010 में हैजा फैलने के बाद इससे 2,000 से ज्यादा लोग मारे गए हैं.
रिपोर्ट:एजेंसियां /आमिर अंसारी
संपादन: एन रंजन