20 जुलाई - हिटलर हत्या का षड़यंत्र
२० जुलाई २००९फ़्युहरर पर आज एक बम हमला किया गया. फ़्युहरर को सिर्फ़ मामुली सी चोट लगी. उन्होंने तुरंत फिर से अपना काम शुरू कर दिया और योजना के मुताबिक डूसे से लंबी बातचीत की. - नाज़ी जर्मन रेडियो, 20 जुलाई, 1944.
फ़्युहरर - यानी हिटलर, और दूचे - यानी इटली का फ़ासीवादी तानाशाह मुसोलिनी. ऐसी बात नहीं कि 20 जुलाई से पहले हिटलर की हत्या की कोशिश नहीं की गई थी. लेकिन इस षड़यंत्र को इतिहास में एक विशेष स्थान मिला हुआ है. 20 जुलाई, सन 1944 को आजके पोलैंड में स्थित पूर्वी प्रशिया के रास्टेनबुर्ग के नज़दीक फ़्युहरर के हेडक्वार्टर में हिटलर अपनी सेना के प्रमुख अफ़सरों से मिलने वाला था. कर्नल क्लाउस शेंक ग्राफ़ फ़ॉन श्टाउफ़ेनबैर्ग के नेतृत्व में अफ़सरों के एक ग्रुप ने वहीं उसको बम से उड़ा देने की योजना बनाई थी. श्टाउफ़ेनबैर्ग उस मीटिंग में मौजूद थे, और एक बैग में बम छिपाकर उन्होंने उसे टेबल के नीचे रख छोड़ा था. उसके बाद वे बर्लिन लौट आए. बम फूटा, लेकिन हिटलर बच गया. रात को ही पता चल गया कि उसकी जान बच गई. रेडियो पर हिटलर ने घोषणा की -
महत्वाकांक्षी, अनैतिक, व साथ ही, नासमझ, अपराधी, बेवकूफ़ अफ़सरों के एक छोटे से गिरोह ने मुझे, और मेरे साथ जर्मन सेना के समुचे नेतृत्व को ख़त्म कर देने के लिए षड़यंत्र किया था.
हिटलर ने कहा कि षड़यंत्रकारियों से पूरी सख़्ती से निपटा जाएगा. 20 जुलाई की रात को ही श्टाउफ़ेनबैर्ग व दूसरे मुख्य षड़यंत्रकारियों को गिरफ़्तार कर गोलियों से उड़ा दिया गया. अगले हफ़्तों में लगभग 1000 लोगों को गिरफ़्तार किया गया. तथाकथित जन अदालत में उनके ख़िलाफ़ मुकदमा चलाया गया, और 200 लोगों को फ़ांसी की सज़ा दी गई. सेना के कनिष्ठ अफ़सर एवाल्ड हाइनरिष फ़ॉन क्लाइस्ट के पिता को भी फ़ांसी दी गई थी. वे खुद भी षड़यंत्र में शामिल थे, लेकिन उनका सुराग नहीं मिल पाया. वे बताते हैं कि किन उद्देश्यों के साथ यह षड़यंत्र किया गया था -
मुझे यह देखकर बेहद तकलीफ़ होती थी, कि जर्मनों के नाम पर कैसे अपराध किए जा रहे हैं. और मैं अपने आपसे पूछता था कि क्या दुनिया को दिखाया नहीं जा सकता कि जर्मनी में ऐसे भी लोग हैं, जो अलग तरीके से सोचते हैं? इसके अलावा मुझे पूरा विश्वास था कि अगर हिटलर की हत्या कर दी जाए, तो बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकेगी. और जर्मनी इस तरीके से तबाह नहीं होगा. - एवाल्ड हाइनरिष फ़ॉन क्लाइस्ट.
20 जुलाई का षड़यंत्र स्पष्ट कर देता है कि विश्वयुद्ध के अंतिम सालों में नाज़ी संरचना का एक हिस्सा उसके ख़िलाफ़ हो चुका था - उसके अंदर ही प्रतिरोध के बीज पनपने लगे थे. भले ही ये षड़यंत्रकारी लंबे समय तक नाज़ी शासन से जुड़े रहे हों, अपनी अंतरात्मा की आवाज़ उन्होंने नहीं ठुकराई. उससे जन्मे प्रतिरोध की आज भी जर्मनी में सराहना की जाती है.
हम या तो फ़्युहरर के प्रति निष्ठावान हो सकते हैं, या जर्मनी के प्रति. दोनों एकसाथ संभव नहीं है - हिटलर हत्या के षड़यंत्र पर बनी फ़िल्म ऑपरेशन वालक्युरे में क्लाउस शेंक ग्राफ़ फॉन श्टाउफ़ेनबैर्ग की भूमिका में टॉम क्रुज़ कहते हैं. जर्मनी में ऐतिहासिक स्थलों पर इस फ़िल्म की शुटिंग की गई. टॉम क्रुज़ साइंटोलॉजी के सक्रिय सदस्य हैं, इस वजह से फ़िल्म के ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी हुए. जर्मन इतिहास का हॉलीवूड संस्करण - कहना पड़ेगा कि यह काफ़ी सफल रहा है. निर्देशक ब्रायन सिंगर ने ऐतिहासिक बारीकियों पर काफ़ी ध्यान दिया है. साथ ही, षड़यंत्र के कारणों और षड़यंत्रकारियों के दृष्टिकोण को स्पष्ट करने की भी कोशिश की गई है. फ़िल्म में श्टाउफ़ेनबैर्ग कहते हैं -
जर्मन सेना वेयरमाख़्ट ने शपथ दिलाई है, जो हिटलर की मौत तक जायज़ है. सबसे बड़ी बात यह है कि हम कुछ करें, तुरंत कुछ करें, इससे पहले कि हमें जंग में हार खानी पड़ी. नहीं तो हिटलर जर्मनी हमेशा के लिए बना रहेगा. यह मेरे लिए काफ़ी नहीं है. हमें कामयाब होना पड़ेगा.
फ़िल्म में यह भी स्पष्ट किया गया है कि षड़यंत्र क्यों नाकाम हुआ. हेडक्वार्टर में हिटलर की मींटिंग समय से पहले शुरू की गई. षड़यंत्रकारियों को जल्दबाज़ी में बम का फ़्युज़ ऑन करना पड़ा. बम के साथ बैग टेबल के पहिए में फ़ंसा रह गया. हिटलर बाल-बाल बच गया.
नाज़ी शासन के ख़िलाफ़ प्रतिरोध को अक्सर फ़िल्मों का विषय बनाया गया है. मिसाल के तौर पर पूर्वी जर्मनी के मशहूर निर्देशक फ़्रांक बायर ने ब्रुनो आपित्ज़ के उपन्यास भेड़ियों के बीच नंगा पर इसी नाम की फ़िल्म बनाई थी, जिसमें एरविन गेशोनेक और आर्मिन म्युलर श्टाल जैसे प्रसिद्ध अभिनेताओं ने काम किया था. इस फ़िल्म में बुखेनवाल्ड के यातना शिविर में भूमिगत प्रतिरोध संघर्षकर्ताओं द्वारा एक यहूदी बच्चे की जान बचाने की सच्ची कहानी बताई गई है. मेल ब्रुक्स ने द प्रोड्युसर्स नाम से एक म्युज़िकल बनाई थी, जिसमें हिटलर को एक समकामी मसखरे के रूप में पेश किया गया था. इस म्युज़िकल को जब जर्मनी में एक नाटक के रूप में पेश किया गया, तो सारे देश में एक तेज़ बहस छिड़ी थी कि क्या हिटलर को जर्मनी कॉमेडी के पात्र के रूप में पेश करना जायज़ है. नाज़ी संगठन एसए की वर्दी में शो गर्ल और रंगीन कागज़ के चिरकुट फ़ेंकते टैंक. लेकिन जर्मन लेखक रोल्फ़ होखहुथ ने 1963 में अपने नाटक डेर श्टेलफ़र्ट्रेटर या प्रतिनिधि के साथ एक सनसनी पैदा कर दी थी. उनका आरोप था कि तत्कालीन पोप पीयुस बारहवें को 1942 में ही आउषवित्ज़ के नाज़ी मौत शिविर में यहूदियों की आम हत्या के बारे में जानकारी मिल चुकी थी. लेकिन उन्होंने कोई विरोध नहीं किया, वे ख़ामोश रहे. होखहुथ के इस नाटक के साथ नाज़ी दौर में वैटिकन की भूमिका पर एक बहस छिड़ी, जो आज भी जारी है. संस्कृति चीज़ों को सीधे-सीधे बदल नहीं सकती है, लेकिन वह बहस की शुरूआत कर सकती है, जिसका असर दूरगामी होता है.
रिपोर्ट - उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादन - राम यादव