21वीं बार चढ़े माउंट एवेरेस्ट पर अपा शेरपा
११ मई २०११शेरपा के साथ चार अन्य साथी भी थे. वे सब रात को दस बजे अपने कैम्प से निकले और सारी रात एवेरेस्ट की चढ़ाई कर के बुधवार सुबह दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ की चोटी तक पहुंच गए. पर्वतारोहण इतिहास की जानकार एलिजाबेथ हॉली कहती हैं, "इतना मुश्किल काम करने के लिए बहुत इच्छाशक्ति की जरूरत होती है और बार बार इतनी ऊंचाई पर चढ़ने के लिए ढेर सारा साहस भी चाहिए होता. यह एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि है."
पहले से ज्यादा खतरनाक
जानकारों के अनुसार मौसम चढ़ाई के लिए अनुकूल था, बहुत ज्यादा हवा भी नहीं चल रही थी, इसलिए इस ग्रुप को किसी खास दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा. लेकिन शेरपा बताते हैं कि बढ़ते हुए तापमान के कारण हिमालय की बर्फ पिघलने लगी है. इस कारण एवेरेस्ट पर चढ़ना अब खतरनाक होता जा रहा है, "बर्फ के पिघलने के कारण पहाड़ की पथरीली सतह दिखने लगी है. चढ़ाई करना हमारे लिए काफी मुश्किल रहा, क्योंकि बिना बर्फ के समझ नहीं आ रहा था कि हम कांटा कहां फंसाएं."
एवेरेस्ट पर टनों कूड़ा
शेरपा के ग्रुप ने एवेरेस्ट की चढ़ाई एक खास अभियान के साथ की. वातावरण में आए बदलावों का जो बुरा असर हिमालय के पहाड़ों पर पड़ रहा है, वह उसके बारे में लोगों में जागरूकता फैलाना चाहते हैं. टीम का नेतृत्व कर रहे डावा स्टीवन शेरपा ने कहा, "इस अभियान का मकसद था कि हम पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए एवेरेस्ट पर चढ़ें और पहले जो लोग यहां आए उनके द्वारा छोड़ा गया कचरा इकट्ठा करें." आम तौर पर जब लोग हिमालय पर पर्वतारोहण के लिए जाते हैं तो काफी सारा सामान रास्ते में ही छोड़ देते हैं. इसी कारण हिमालय के पहाड़ों में टनों कचरा इकट्ठा हो गया है. अपा शेरपा पहली बार 1990 में एवेरेस्ट की चोटी पर चढ़े. पिछले चार बार से वह इसी तरह के अभियान के साथ एवेरेस्ट पर चढ़ते आए हैं.
विदेश मंत्री की जान गई
शेरपा से पहले नेपाल के विदेश मंत्री शैलेन्द्र कुमार उपाध्याय ने पिछले हफ्ते एवेरेस्ट चढ़ने की कोशिश की और इसमें उनकी मौत हो गई. 82 वर्षीय उपाध्याय माउंट एवेरेस्ट पर चढ़ने वाले दुनिया के सबसे अधिक उम्र के व्यक्ति बनना चाहते थे, लेकिन कैम्प से निकलते ही उनकी मौत हो गई. एक हेलिकॉप्टर से उनके शव को राजधानी काठमांडू लाया गया जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया. अभी तक उनकी मौत की वजह का पता नहीं चल पाया है. उपाध्याय की तरह पिछले कई सालों में कई लोगों की हिमालय के पर्वतों पर चढ़ने की कोशिश में जान जा चुकी है.
1953 में एडमंड हिलेरी और टेनजिंग नॉरगे के पहली बार माउंट एवेरेस्ट पर चढ़ने के बाद से अब तक करीब तीन हजार लोग इस विशाल पहाड़ पर पैर जमा चुके हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ईशा भाटिया
संपादन: आभा एम