40 साल बाद नाटो में लौटेगा फ्रांस
१२ मार्च २००९अगले सप्ताह फ्रांस की संसद में इस बारे में मतदान होगा. नाटो देशों ने फ्रांस के इस फ़ैसले पर ख़ुशी और राहत का इज़हार किया है. चालीस साल पुराने आत्म निर्वसन को त्यागकर फ्रांस अब यूरोप के सैन्य संगठन नाटो में फिर से पूरी तरह आने की राह पर है. फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सारकोज़ी ने राजधानी पेरिस में एक सैन्य कॉलेज में रक्षा विशेषज्ञों के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए नाटो में लौटने का एलान किया.
1966 में तत्कालीन राष्ट्रपति चार्ल्स डि गॉल ने फ्रांस को नाटो के सैन्य कमान से हटा लिया था. अमेरिका के हावी होने से जुड़ा उनका तर्क था कि नाटो के साए में रहने से फ्रांस की संप्रभुता कमतर होती है. यूं देखा जाए तो 1966 में फ्रांस नाटो की निर्णायक मंडली से अलग हुआ था जिसमें संगठन का एटमी हथियार ढांचा और योजना कमेटी शामिल थे. संगठन से वो पूरी तरह से कभी अलग नहीं रहा. बल्कि बोस्निया कोसोवो और अफ़गानिस्तान में उसने मित्र कमान के तहत सुऱक्षा बल भेजे भी हैं.
लेकिन अब राष्ट्रपति सारकोज़ी का कहना है कि इस बात का कोई अर्थ नहीं कि नाटो के संस्थापकों में एक रहा फ्रांस इसके सैन्य कामकाज पर अपना कोई दखल रखने लायक स्थिति में न रहे. सारकोज़ी का कहना है कि नाटो में पूरी तरह लौटने के फ़ैसले से फ्रांस की आज़ादी सुनिश्चित होती है. और इससे दूर रहना इस आज़ादी को सीमित करना होगा.
संयोग है कि अगले महीने नाटो अपनी स्थापना की साठवीं वर्षगांठ मना रहा है और इससे जुड़ा समारोह हो भी फ्रांस में रहा है. ऐसे में फ्रांस के ताज़ा फ़ैसले से उसकी तो मुंह मांगी मुराद पूरी हो गयी है. नाटो महासचिव जनरल याप डि हूप शेफर ने फ्रांस के एलान का स्वागत करते हुए कहा कि इससे नाटो और मज़बूत होगा. यूरोपीय संघ के विदेश मामलों के प्रमुख खावियर सोलाना ने कहा है कि फ्रांस के नाटो में बाक़ायदा लौट आने से यूरोप की सुरक्षा स्थिति बेहतर होगी.
लेकिन आलोचकों की राय में सारकोज़ी ने नाटो में लौटने का फ़ैसला तो कर दिया लेकिन अब फ्रांस को कई मामलों पर अमेरिकी प्रभुत्व के दबाव में काम करना होगा. मिसाल के लिए इराक का हवाला दिया जा रहा है. जहां अमेरिका से दोस्ती के बावजूद फ्रांस ने अपनी सेना नहीं भेजी थी. फ्रांस के पूर्व विदेश मंत्रि डोमिनिक डि वेलेपिन की आशंका है कि नए हालात में क्या ऐसा करना फ्रांस के लिए मुमकिन रह पाएगा.
विपक्षी दलों ने सारकोज़ी के फ़ैसले को देश की संप्रभुता के ख़िलाफ बताया है. लेकिन इस तरह की आशंकाओं को खारिज करते हुए फ्रांस के रक्षा मंत्री हर्वे मोरिन ने कहा है कि जर्मनी भी नाटो में रहने के बावजूद युद्ध के ख़िलाफ़ रहा है तो फ्रांस भी ऐसे ही रहेगा.