60 साल का हुआ बच्चों का रबर निप्पल
२८ जुलाई २००९आपको ये जानकार हैरानी होगी कि बच्चों के मुंह में डाला जाने वाला रबर निप्पल बुजुर्ग हो गया है. लेकिन दुनिया भर में आज भी ये अपना वही पुराना काम ही कर रहा है, रोते मासूमों को शांत कराने का. भारत में इसे निप्पल कहा जाता है तो ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में इस डमी कहा जाता है. अमेरिकी बच्चों का ये बोबो लैटिन अमेरिका में चुपोन के नाम से जाना जाता है.
आख़िर कैसे बना ये रबर निप्पल. ये किस्सा भी कम दिलचस्प नहीं है. अब तक जुटाई गई जानकारी के मुताबिक जर्मनी में काफी पहले से ही बच्चों को कपड़े में लपेट कर मीठी ब्रेड दी जाती थी. 1506 में बनाई गई एक पेंटिंग में तो बकायदा यह दिखाया भी गया है.
लेकिन इसके क़रीब 300 साल बाद, यानी 18वीं सदी आते आते बच्चों की दुनिया के लिए कुछ और नए प्रयोग हुए. इस दौरान चुन्नू मुन्नू जब भी रोते थे तो उन्हें चांदी की चम्मच दे दी जाती थी. लेकिन ये सिर्फ धनी परिवार ही करते थे. आम लोग अपने मासूमों के आंसू मूंगे की मदद से थामते थे. माना जाता था कि चांदी की चम्मच देने से बच्चों की किस्मत बेहतर होती है जबकि मूंगे को बेहतर सेहत से जोड़कर देखा जाता था.
लेकिन 19वीं सदी आते आते बच्चों को स्तन जैसे आकार वाली मीठी गोली दी जाने लगी. आरंभ में इसका प्रयोग अमेरिका में हुआ फिर धीरे धीरे यूरोप में भी. लेकिन बच्चे तो बच्चे ही हैं, धीरे धीरे मीठी गोली से भी बोर होने लगे. बिस्तर, पालने या गोद में सवार बच्चे कभी रोते तो कभी मुंह में अंगूठा डाल देते.
इसी दौरान 1949 में जर्मनी में जबड़े के विशेषज्ञ विल्हेम बाल्टर्स और दांतों के डॉक्टर आल्डोफ म्युलर ने बच्चों की तकलीफ काफी हद समझ ली. उसी साल इन दोनों ने बच्चों के लिए रबर निप्पल बनाया. फिर क्या था, इसके आते ही बच्चे भी ख़ुश हो गए और मां बाप भी.
मुलायम रबर की इस छोटी सी चीज़ से बच्चे अपनी ही दुनिया में रहने लगे. उन्हें दूध पीने का एहसास भी होता रहा और दांत निकलते समय होने वाली खुजली से भी काफी राहत मिली. वक्त बीतने के साथ बच्चों की दूध की बोतल का ढक्कन बनाने में भी इससे फायदा मिला. धीरे धीरे इसके रबर और आकार में भी बदलाव आए और इसके नुकसान को लेकर बहस भी चलती रही.
अलग अलग जगहों पर की गई रिसर्च के ज़रिए इससे होने वाले नुकसान भी सामने आए. अब भी कई डॉक्टरों का कहना है कि अगर बच्चा रबर निप्पल को चबाकर निगल ले तो उसे कान की बीमारी हो सकती है. लगातार कई घंटों तक इसे मुंह में रखने वाले बच्चों को बोलने में मुश्किल भी हो सकती है. कई बार बच्चे रबर निप्पल के चक्कर में अपने होंठ भी काट देते हैं. लेकिन ये समस्याएं माता पिता की अच्छी देखरेख से नहीं होतीं.
बहरहाल इसमें कोई शक नहीं कि बच्चों की तरह उम्रदराज़ होता निप्पल भी बेहतरी की तरफ बढ़ रहा है. ये रबर निप्पल का कमाल ही है कि इसकी रिसर्च पर जुटे वैज्ञानिक मज़ाक करते हुए कहते हैं कि ये अब तक पता नहीं चल सका है कि इससे किसे ज़्यादा राहत मिलती है? बच्चों को, या बड़ों को.
रिपोर्ट: निकलिस पेट्रा/ ओ सिंह
संपादन: राम यादव