70 साल से सबसे कामयाब राइफल एके 47
एके 47 दुनिया की सबसे कामयाब राइफल है. 7 दशक से यह दुनिया में सेना, सुरक्षाबल से लेकर चरमपंथियों, अपराधियों तक का पसंदीदा हथियार है. रूस की यह राइफल 30 से ज्यादा देशों में लाइसेंस लेकर या बगैर लाइसेंस के बनाई जाती है.
नाम
एके 47 के नाम में एके का मतलब है "आवटोमाट कलाशनिकोवा". इसे बनाने वाले मिखाइल क्लाश्निकोव के नाम पर राइफल को यह नाम मिला. 47 अंक 1947 से आया क्योंकि इसी साल इस राइफल का ट्रायल शुरू हुआ था.
सबसे कामयाब
राइफल की संख्या, उपयोग के साल और दुनिया भर में मौजूदगी के लिहाज से एके 47 मानव इतिहास की सबसे कामयाब असॉल्ट राइफल है. इसकी बराबरी करने वाली दूसरी कोई राइफल दुनिया में नहीं है.
कई राइफलों का संगम
एके 47 राइफल मूल राइफल नहीं है. यह पहले से मौजूद कई डिजाइनों को मिला कर बनाई गई. इसका ट्रिगर तंत्र, सेफ्टी कैच, रोटेटिंग बेल्ट और गैस आधारित हरकत की अवधारणाएं दूसरे भारी हथियारों से ली गईं हैं. हालांकि सारे गुणों को इस तरह से मिलाया गया कि कम निर्माण लागत और इसकी लंबी उम्र ने इतिहास रच दिया.
हल्की लेकिन बेहद मारक
लंबी कोशिशों के नतीजे में आई यह हल्की राइफल आसानी से मोड़ी और संभाली जा सकती थी और इसके बाद भी इसकी मारक क्षमता बहुत ज्यादा थी. इसका अचूक निशाना एक और खूबी थी जिसने इसे लोकप्रिय बनाया. सैनिकों के लिए हाथ में राइफल लेकर इतनी तेजी से फायर कर पाना पहले मुमकिन नहीं था और इसी अंदाज ने इसे सिरमौर बना दिया.
मिखाइल कलाश्निकोव
1919 में एक किसान के घर पैदा हुए मिखाइल तिमोफेयेविच कलाश्निकोव सोवियत आर्मी में लेफ्टिनेंट जनरल और देश के नायक बने. इतिहास में वह दुनिया के सबसे मशहूर हथियार डिजाइनर के रूप में दर्ज हो गए. लंबी बीमारी के बाद 2013 में 94 साल की उम्र में उनकी मौत हुई. मॉस्को में एक चौराहे पर उनकी मूर्ति भी लगाई गई है.
लंबी कोशिश के बाद सफलता
1938 में रेड आर्मी में भर्ती हुए कलाश्निकोव को उनके छोटे कद के कारण टैंक मैकेनिक बनाया गया. दूसरे विश्व यद्ध में वह टैंक कमांडर बन चुके थे और युद्ध में गंभीर रूप से घायल हो गए. 1941 से 1942 में इलाज के दौरान ही उन्होंने सोवियत सेना के लिए नई राइफल डिजाइन की. उनके डिजाइन को तो मंजूरी नहीं मिली लेकिन उनके सीनियरों ने उन्हें छोटे हथियार डिजाइन करने के काम में लगा दिया.
150 हथियारों के डिजायनर
सेना के लिए कलाश्निकोव ने इंजीनियरों के साथ मिल कर एके 47 राइफल डिजाइन की. इसके बाद वह अपने पूरे करियर में इस राइफल को बेहतर बनाने पर काम करते रहे. सिर्फ एके 47 ही नहीं, उन्होंने 150 दूसरे हथियारों के डिजाइन बनाने में मदद की.
एके 47 से आगे भी
1945 में एक प्रतियोगिता के दौरान कलाश्निकोव ने एके 47 राइफल तैयार की जो ट्रायल के लिए भेजी गई और इस प्रतियोगिता में विजयी रही. 1947 में सोवियत सेना ने इसे आधिकारिक रूप से अपना हथियार बनाया. बाद में रूस और दूसरे देशों ने इसके कई अलग अलग वर्जन तैयार किए. इनमें एकेएम, एके 103, एके 56 और एके 74 प्रमुख हैं. एके 56 चीन में डिजाइन किया गया.
सात दशक में 7.5 करोड़ राइफल
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक अब तक करीब 7.5 करोड़ एके 47 राइफलें बनाई गई हैं. कलाश्निकोव श्रेणी के कुल राइफलों की तादाद 10 करोड़ से ज्यादा है. इसमें अनाधिकारिक रूप से या फिर चोरी छिपे बनाई जाने वाली राइफलों का ब्यौरा शामिल नहीं है.
लंबाई और वजन
करीब 24-35 इंच की लंबाई वाली एके 47 राइफल का वजन बिना मैगजीन के करीब 3.47 किलो होता है. इसकी मैगजीन में 30 गोलियां होती हैं.
मारक क्षमता
अलग अलग फायरिंग मोड में प्रति मिनट 40-100 गोलियां निकलती हैं जो 350 मीटर की रेंज में अपने निशाने को छलनी कर सकती हैं.
भारत में इंसास
भारत में बनने वाले इंसास, कलांतक और इंसास लाइट मशीन गन भी एके 47 का ही प्रतिरूप माने जाते हैं जिन्हें बिना लाइसेंस लिए त्रिचुरापल्ली की ऑर्डिनेंस फैक्टरी में बनाया जाता है.
दुनिया भर में निर्माण
आधुनिक आयुध कारखानों से लेकर पाकिस्तान के कबायली इलाकों तक में इसे सरकारी और अवैध तरीके से बनाने का काम होता है. दुनिया के बाजार में इसकी कीमतें भी इसी बात से तय होती हैं कि यह कहां बनी और इसे कैसे खरीदा गया.
खास लोगों की खास एके 47
तस्वीर में दिख रही एके 47 राइफल खासतौर पर सद्दाम हुसैन के लिए तैयार करवाई गई थी. यह अब भी बगदाद के म्यूजियम में रखी है.
हथियार हो तो रूस का
यूरोप से लेकर मध्यपूर्व और एशिया से लेकर अफ्रीका और अमेरिका तक में इन राइफलों को सैनिकों और विद्रोहियो के हाथ में देखा जा सकता है. जंग कोई किसी से किसी बात के लिए लड़े, रूस हथियार सिर चढ़ कर बोलता है.