90 वर्ष के हुए पंडित रविशंकर
७ अप्रैल २०१०7 अप्रैल, 1920 को वाराणसी में पंडित रविशंकर का जन्म हुआ था. अपनी युवावस्था में वे अपने बड़े भाई उदय शंकर की मंडली के साथ एक नर्तक के रूप में काम करते रहे. इस दौरान उन्हें यूरोप के विभिन्न देशों की यात्रा का अवसर मिला. 1938 में नृत्य छोड़कर उन्होंने उस्ताद अलाउद्दीन खान के शिष्य के रूप में सितार सीखने का बीड़ा उठाया.
अपने समय के दूसरे प्रसिद्ध सितार वादकों के विपरीत पंडित रविशंकर ने एक अनोखी शैली विकसित की, जो आलाप, जोड़ और झाला की एकल प्रस्तुति के द्वारा चरित्रात्मक है. उनके संगीत में एक ओर जहां कर्नाटक संगीत का प्रभाव देखा जा सकता है, वहीं दूसरी ओर यह ध्रुपद संगीत की मंद गंभीर शैली से ओतप्रोत है. आधुनिक युग में अनेक शास्त्रीय संगीतकारों ने अपने राग बनाए हैं, जिन्हें वे खुद प्रस्तुत करते हैं. लेकिन पंडित रविशंकर के बनाए हुए राग दूसरे कलाकारों के बीच भी लोकप्रिय हुए हैं. इनमें तिलक श्याम, नट भैरव और बैरागी का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है.
पंडित रविशंकर ने पश्चिमी शास्त्रीय संगीतकारों के साथ गहन सहयोग किया है. येहूदी मेनुहिन के साथ उनके सहयोग से ईस्ट मीट्स वेस्ट नामक श्रृंखला सामने आई. इसके अलावा ज़ुबिन मेहता के साथ उनके सहयोग से रागमाला तैयार की गयी. इन रचनाओं से भारतीय शास्त्रीय संगीत पश्चिम के श्रोताओं के बीच लोकप्रिय हो सका. बीट्ल्स मंडली के जार्ज हैरिसन उनके छात्र बने, व उनके सहयोग से यूरोप व अमेरिका में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. पंडित रविशंकर भारत के एकमात्र संगीतकार थे, जिन्होंने वूडस्टॉक के प्रसिद्ध संगीत महोत्सव में भाग लिया था.
पंडित रविशंकर को अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं. 1967 में उन्हें पद्मभूषण, 1981 में पद्मविभूषण और 1999 में भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया है.
रिपोर्ट: उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादन: राम यादव