98 साल बाद दी जाएगी मौत की सजा
२१ सितम्बर २०१०98 सालों में वर्जीनिया में किसी महिला की मौत की सजा पर अमल का यह पहला मामला होगा. इससे पहले 1912 में 17 साल की अश्वेत किशोरी वर्जीनिया क्रिस्टियान को बिजली की कुर्सी के जरिये मौत की सजा दी गई थी. टेरेसा लुईस की आईक्यू यानी बौद्धिक क्षमता 70 के आसपास बताई जाती है. अदालत में इसे मौत की सजा के लिए पर्याप्त माना गया था. दूसरी ओर, मौत की सजा के विरोधियों का कहना है कि मंदबुद्धि होने के कारण वह अपने साथियों के चक्कर में आ गई.
टेरेसा ने अपने पति व सौतेले बेटे को मरवाने के लिए भाड़े के हत्यारों का इंतजाम किया था. उसने अपने घर का दरवाजा खोल रखा था, ताकि ये कातिल अंदर आ सकें. इन दोनों कातिलों को उम्रकैद की सजा दी गई थी, लेकिन न्यायाधीश का कहना था कि टेरेसा सांप के सिर की तरह है, उसी की योजना थी कि दोनों की हत्या की जाए.
बाद में उम्रकैद की सजा झेल रहे शालेनबैर्गर ने जेल में खुदकुशी कर ली थी. मौत से पहले लिखी अपनी चिट्ठी में उसने कहा था कि उसी ने टेरेसा को इस हत्या की योजना के लिए उकसाया था.
डेथ पेनल्टी इनफॉरमेशन सेंटर के कार्यकारी निदेशक रिचर्ड डीटर का कहना है कि सवाल यह नहीं है कि टेरेसा लुईस के एक महिला होने के कारण उस पर दया दिखानी चाहिए. लेकिन जिस अपराध के लिए हत्यारे को उम्रकैद की सजा मिली, उसी के लिए एक मंदबुद्धि व्यक्ति को मौत की सजा देना गलत होगा.
लेकिन वर्जीनिया सुप्रीम कोर्ट और संघीय अपील अदालत की राय में कहा गया है कि मंदबुद्धि होने के बावजूद टेरेसा लुईस एक सामान्य सामाजिक जीवन जीने के काबिल है, इसलिए अपराध के लिए उसे पूरी तरह से जिम्मेदार मानना चाहिए. टेरेसा के वकील का कहना है कि आईक्यू जांच का परिणाम मुकदमे के फैसले के बाद आया है.
चीन, ईरान और सऊदी अरब के साथ अमेरिका भी विश्व के उन देशों में से है, जहां सबसे अधिक मौत की सजा दी जाती है. 1976 में वहां फिर से मौत की सजा का प्रावधान शुरू किया गया था. तब से कुल मिलाकर 1215 लोगों की मौत की सजा पर अमल हो चुकी है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ
संपादन: एस गौड़