जहरीली हवा से लाहौर और दिल्ली को मिलकर लड़ना होगाः विशेषज्ञ
२२ जनवरी २०२४लाहौर की हवा में जले की महक आती है. पाकिस्तान के पूर्व में बसा यह शहर अब अपनी खराब हवा के लिए बदनाम हो रहा है. जहरीली हवा के कारण हाल के महीनों में हजारों लोग बीमार हो चुके हैं. दर्जनों विमान उड़ान नहीं भर पाए. पिछले महीने स्मॉग हटाने के लिए कृत्रिम बारिश करवाई गई. लेकिन पाकिस्तान में पहली बार आजमाया गया यह नुस्खा भी काम नहीं कर पाया.
लाहौर एक मुश्किल स्थिति में है. फैक्ट्रियों और गाड़ियों का धुआं लोगों का ऐसा दुश्मन बन गया है, जिससे पार पाने की कोई तरकीब नहीं सूझ रही. दरअसल, लाहौर एक एयरशेड है, यानी स्थानीय मौसमी हालात और भोगौलिक स्थिति ऐसी है कि प्रदूषण को साफ कर पाना आसान नहीं होता.
और जब हवा पूर्व की ओर बहने लगती है, यह धुआं आसानी से सीमा पारकर भारत की ओर चला जाता है. मौसम की कुछ खास परिस्थितियों में दिल्ली के प्रदूषण में 30 फीसदी तक योगदान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का हो सकता है
सहयोग की जरूरत
एशिया दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों का घर है और महाद्वीप में छह एयरशेड हैं. ये एयरशेड पूरे महाद्वीप की हवा को प्रभावित करते हैं. इसलिए विशेषज्ञ विभिन्न देशों के बीच सहयोग की अपील कर रहे हैं. मसलन, वे चाहते हैं कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश मिलकर वायु प्रदूषण से लड़ें. लेकिन राजनीतिक हालात के चलते यह प्रदूषण जितनी ही बड़ी चुनौती है.
पाकिस्तान में एक गैरसरकारी संस्था सस्टेनेबल डिवेलपमेंट पॉलिसी इंस्टिट्यूट में विश्लेषक आबिद सुलेरी कहते हैं, "तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र से जुड़े लोग इस बात पर एकराय हैं कि प्रदूषण को सीमाएं पार करने के लिए किसी वीजा की जरूरत नहीं होती. भारत और पाकिस्तान, दोनों तरफ ही समस्याएं और अपराधी एक जैसे हैं. इसलिए इस बात का कोई मतलब नहीं बनता कि एक तरफ प्रदूषण को रोकने के उपाय किए जाएं जबकि दूसरी तरफ कोई कोशिश ना हो.”
सरकारें भले ही नीतियों पर सीधे तौर पर बात ना करें लेकिन सुलेरी कहते हैं कि क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय आयोजन ऐसे मौके होते हैं जब पर्दे के पीछे प्रदूषण जैसे मुद्दों पर बातचीत हो सकती है. वह कहते हैं कि सरकारों को वायु प्रदूषण को पूरे साल चलने वाली एक समस्या के तौर पर समझना चाहिए, ना कि एक मौसमी समस्या.
सुलेरी ने बताया, "एयरशेड के प्रबंधन के लिए क्षेत्रीय स्तर पर एक योजना की जरूरत है. लेकिन 2024 में भारत और पाकिस्तान दोनों जगह चुनाव हैं और दोनों सरकारों के बीच सहयोग उस स्तर पर नहीं पहुंच पाया है.”
राजनीति का असर
पाकिस्तान में अगले महीने आम चुनाव होने हैं. अब तक सिर्फ वहां के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने ही जलवायु नीति पर बड़े निवेश की बात कही है. ऐसा तब हुआ जब पिछले साल पाकिस्तान में आई विनाशक बाढ़ में 1,700 लोग मारे गए.
दूसरी तरफ भारत में, जहां जल्दी ही आम चुनाव का ऐलान हो सकता है, प्रदूषण एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है. नई दिल्ली स्थित सस्टेनेबल फ्यूचर्स कॉलैबेरेटिव नाम के थिंक टैंक में फेलो भार्गव कृष्णा कहते हैं, "क्षेत्रीय चुनावों में कभी-कभार प्रदूषण हटाने के वादे किए जाते हैं. 2020 में जब दिल्ली में चुनाव हुए थे तो यह हर पार्टी के मेनिफेस्टो में एक मुद्दा था.”
वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक क्षेत्रीय एयरशेड शहरों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए विभिन्न देशों को सहमत होने और मिलकर काम करने की जरूरत है. उन्हें साझे लक्ष्य और उपाय तय करने होंगे जो सभी जगह लागू किए जा सकें. इसके अलावा उन्हें नियमित तौर पर मिलने और अपने अनुभव साझा करने की जरूरत है. साथ ही, अगर संभव हों तो एक जैसे वायु गुणवत्ता मानक अपनाने की भी जरूरत है.
वर्ल्ड बैंक के मुताबिक 93 फीसदी पाकिस्तानी बेहद दूषित हवा में सांस ले रहे हैं. भारत में यह संख्या 96 फीसदी है. यानी दोनों देशों में कुल मिलाकर 1.5 अरब से ज्यादा लोग प्रदूषण की मार झेल रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तानी पंजाब में एक साल में दो लाख 20 हजार मौतों के लिए प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.
लाहौर में 67 लाख गाड़ियों सड़कों पर दौड़ रही हैं और पूरा शहर स्मॉग में लिपट जाता है. शॉपिंग वेबसाइट दराज ने कहा है कि खासकर पंजाब में पिछले अक्तूबर से एयर प्योरीफायर्स और मास्क की सर्च में तेज वृद्धि देखी गई है.
नीति-निर्माताओं पर बने दबाव
सांस के रोग के विशेषज्ञ डॉ. ख्वार अब्बास चौधरी कहते हैं कि लाहौर कभी एक खूबसूरत शहर हुआ करता था. वह बताते हैं कि उनके अस्पताल में सांस के रोगियों की संख्या दोगुनी हो गई है, जिसकी वजह वायु प्रदूषण है.
डॉ. चौधरी जिस एवरकेयर अस्पताल में काम करते हैं, वह उद्योगपति बिल गेट्स की फाउंडेशन के पैसे से चलता है. इस तरह के अस्पताल दक्षिण एशिया के कई देशों में हैं. एवरकेयर में कई समूह हैं जहां विशेषज्ञ प्रदूषण जैसे मुद्दों पर चर्चा करते हैं. डॉ चौधरी भारत और अन्य देशों के डॉक्टरों के साथ वायु प्रदूषण के सेहत पर असर जैसे विषयों पर चर्चा करते हैं. लेकिन ऐसी चर्चाएं अन्य संस्थानों में नहीं हो रही हैं.
वह कहते हैं, "देशों, सरकारों और विभागों को शामिल होने की जरूरत है. उन्हें नियमित रूप से मिलना चाहिए. आखिरकार लोगों को साथ आना होगा ताकि दोनों तरफ के नीति-निर्माताओं पर दबाव बनाया जा सके.”
बेंगलुरु स्थित सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी में शोधकर्ता प्रतिमा सिंह ने भारत में वायु प्रदूषण पर दशकों तक शोध किया है. वह कहती हैं कि दक्षिण एशियाई देश आपसी सहयोग के लिए यूरोपीय संघ जैसा मॉडल अपना सकते हैं, जहां प्रदूषण से जुड़ीं चुनौतियों और नई नीतियों पर चर्चा होती है और आंकड़े व जानकारियां साझा की जाती हैं.
वीके/सीके (एपी)