शिकारियों का शिकार करने वाले अल्फा-प्रीडेटर को किससे खतरा
हमारी दुनिया का एक अटल सत्य है, आहार शृंखला. 'कौन किसे खाता है' के इस गुंथे हुए मकरजाल में कोई शिकार है, कोई शिकारी. इस शृंखला के सबसे ऊपरी सिरे पर हैं अल्फा प्रीडेटर, जो शिकारी तो हैं लेकिन आमतौर पर किसी के शिकार नहीं.
जीने के लिए बुनियादी है खाना
हर सजीव को खाना चाहिए, खाना यानी ऊर्जा, ऊर्जा यानी पोषण. ऊर्जा और पौष्टिक तत्व, एक चक्र में ईकोसिस्टम का चक्कर लगाते हैं. इस पिरामिड की बुनियाद देखें, तो वहां आएंगे पेड़-पौधे. सूरज से रोशनी, मिट्टी से पोषण लेकर अपना खाना खुद बनाने वाले आत्मनिर्भर वनस्पति उत्पादक हैं. इनमें घास, शैवाल, कैक्टस सभी शामिल हैं.
उत्पादक और उपभोक्ता
इसके बाद शुरू होता है भोजन चक्र. इसे समझने के लिए टिड्डे का उदाहरण लेते हैं. टिड्डा पेड़-पौधों से जीवन पाता है. वो पत्तियां, फूल, टहनियां और बीज जैसी चीजें खाता है. पौधे हुए उत्पादक और टिड्डा है उपभोक्ता. वनस्पतियों को खाने वाले ऐसे शुरुआती या प्राथमिक जीव "हर्बीवोर" कहलाते हैं.
मकड़ी के जाले सा गुंथा हुआ चक्र
टिड्डे को खाती है चिड़िया, जो हुई दूसरे स्तर की उपभोक्ता या कार्निवोर (मांसाहारी) जीव. ओम्नीवोरस जीव, जो मांस और वनस्पति दोनों खाते हैं, वे भी द्वितीयक जीव हैं. इस शृंखला में एक ही स्रोत को खाने वाले कई उपभोक्ता होते हैं और एक ही जीव कई स्रोतों से भी भोजन पाता है. जैसे मकड़ी के जाल में तार आपस में गुत्थम-गुत्था रहते हैं, वैसा ही हाल फूड वेब का भी है.
शिकार और शिकारी
ऐसे जीव जो दूसरे जीवों का शिकार कर उन्हें खाते हैं, वे शिकारी जानवर (प्रीडेटर) है. जो जानवर इनका शिकार बनते हैं, वे प्रे कहलाते हैं. जैसे, चूहा खाता है कीड़ों और पक्षियों को. सांप, चूहे को खाता है. चील, सांप को खा जाते हैं. इसी तरह छिपकली है, जो कीड़ों को खाते हैं. बाज, सांप, कुत्ते, भेड़िये और यहां तक कि कई बड़ी छिपकलियां भी उन्हें खाती हैं.
एपेक्स प्रीडेटर क्या हैं?
फूड चेन की कल्पना अगर ईंट-ईंट जोड़कर बने पिरामिड से करें, तो 'एपेक्स प्रीडेटर' इसके टॉप पर हैं. ये ऐसे शिकारी हैं, जिनका आमतौर पर कोई शिकार नहीं करता. दुर्लभ अपवादों को छोड़ दें, तो इनका कोई कुदरती शिकारी नहीं होता. ये भूख, बीमारी, बुढ़ापा जैसी वजहों से मरते हैं. कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि बूढ़ा और लाचार हो जाने पर कोई और शिकारी जीव इन्हें शिकार बना ले.
ईको सिस्टम और जैव विविधता के लिए जरूरी
इन टॉप शिकारियों के लिए दुनिया लगातार ज्यादा-से-ज्यादा खतरनाक होती जा रही है. कुदरती बसेरा खत्म होना, इंसानों के साथ संघर्ष, पोचिंग और तस्करी के लिए शिकार, खाद्य शृंखला में असंतुलन जैसी वजहें भी इनके लिए जानलेवा बन रही है. नतीजतन, इनकी आबादी लगातार घट रही है.
क्या दुनिया को इन शिकारियों की जरूरत है?
बेशक! आप इन्हें ईकोसिस्टम का तराजू कह सकते हैं. मान लीजिए, सारे चीते खत्म हो जाते हैं. इसके कारण चीते का आहार बनने वाले जीवों की आबादी पर नियंत्रण नहीं रहेगा. वे बेहिसाब बढ़ते जाएंगे. उनके कारण वनस्पतियों पर दबाव बढ़ेगा और जंगल, चरागाह जैसी जगहों के सिमटने का जोखिम बढ़ जाएगा.
क्या हुआ, जब येलोस्टोन नेशनल पार्क में भेड़िये नहीं रहे
एपेक्स प्रीडेटरों की अहमियत को समझने में अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल पार्क के भेड़ियों का उदाहरण चर्चित है. 1920 का दशक आते-आते बेतहाशा शिकार के कारण यहां रहने वाले सलेटी भेड़िये (ग्रे वूल्फ) खत्म हो गए. भेड़िये नहीं रहे, तो उनके मुख्य शिकार एल्क (हिरण परिवार का एक सदस्य) की आबादी काफी बढ़ गई. इतने सारे एल्कों के चरने से समूचे पार्क में ईकोसिस्टम असंतुलित हो गया.
भेड़ियों के ना रहने से समूचे हैबिटेट पर असर पड़ा
घास और झाड़ियों की कमी से चूहा और खरगोश जैसे जीवों की संख्या घट गई. फूलों की कमी से मधुमक्खियों का खाना घट गया. यहां तक कि पक्षी भी कम हो गए. नैशनल जिओग्रैफिक के मुताबिक, भेड़िये का डर नहीं रहने से एल्क नदी के पास ज्यादा स्वच्छंद समय बिताने लगे. इसके कारण नदी तट खराब हुआ और पानी गंदला गया. साफ पानी की कमी के कारण बीवरों और जलीय जीवों को नुकसान हुआ.
येलोस्टोन में भेड़ियों की वापसी से संतुलन लौटा
एक भेड़िये के गायब हो जाने से पूरा प्राकृतिक परिवेश और वहां के जाने कितने जीवों का रहन-सहन असंतुलित हो गया. फिर 1995 में करीब 41 भेड़िये येलोस्टोन में छोड़े गए. उनकी वापसी ने समूचे लैंडस्केप पर जादुई असर किया और अभयारण्य व इसके ईकोसिस्टम की सेहत लौटने लगी. आगे की स्लाइडों में देखिए कुछ प्रमुख अल्फा प्रीडेटर.
शेर
शेर "बिग कैट" परिवार का सदस्य है. बलिष्ठ शरीर और मजबूत जबड़े वाले शेरों की प्रजाति अब केवल अफ्रीका में बची है. भारत का गिर अभयारण्य एशियाई शेरों के एक छोटे से समूह का घर है. बीबीसी वाइल्डलाइफ मैगजीन 'डिस्कवर वाइल्डलाइफ' के मुताबिक, भारत अकेला देश है जहां अभी भी शेर और बाघ, दोनों मौजूद हैं.
भेड़िया
भेड़िये बेहतरीन शिकारी होते हैं. उनके मुख्य शिकार हैं हिरण जैसे जीव, लेकिन वे चिड़िया, गिलहरी, बीवर, खरगोश और चूहों को भी खाते हैं. हालांकि, भेड़िया उन जानवरों में है जिसे लेकर इंसानी आबादी में कई भ्रांतियां हैं. नतीजतन, ईकोसिस्टम में बेहद अहम भूमिका निभाने वाले भेड़िये सबसे ज्यादा नफरत पाने वाले जीवों में हैं.
ध्रुवीय भालू
पोलर बीयर को आर्कटिक फूड चेन का राजा कहा जाता है. ये इस ईकोसिस्टम में सबसे ऊपर हैं. इनके जो हाथ लग जाए, खा लेते हैं. छोटी मछलियों से लेकर सील, वॉलरस, रेंडीयर, समुद्री पक्षी. समुद्र पर जमी बर्फ में छोटे से छेद से होकर जब बेलुगा व्हेल सांस लेने ऊपर आती है, तो ये उसका भी शिकार कर लेते हैं. हालांकि, इंसानी गतिविधियों से इसपर भी आफत आ गई है.
इंसान क्या है?
वैज्ञानिकों के मुताबिक, एक वक्त था जब इंसान भी एपेक्स प्रीडेटर था. होमो सेपियंस और उनके पूर्वज मांस खाते थे. अमेरिकन फिजिकल एंथ्रोपॉलॉजी एसोसिएशन में छपे एक पेपर के मुताबिक, करीब 20 लाख साल तक हमारे पूर्वज एपेक्स प्रीडेटर रहे. फिर पाषाण युग जब ढलान पर था, तब जीवों से मिलने वाले खाद्य स्रोतों में कमी आने लगी.
इंसान अब एपेक्ट प्रीडेटर तो नहीं, लेकिन...
इसके कारण अब तक मांसभक्षी रहा इंसान धीरे-धीरे वनस्पतियों से मिलने वाले उत्पाद भी खाने लगा. फिर वह जानवर भी पालने लगा और पौधे भी लगाने लगा. धीरे-धीरे यही इंसान खेती भी करने लगा. वह दौर बहुत पीछे छूट गया है. हम आज एपेक्स प्रीडेटर तो नहीं हैं, लेकिन फिर भी हमारे तौर-तरीके अनगिनत जीवों का खात्मा कर रहे हैं. ईकोसिस्टम असंतुलित कर रहे हैं, कुदरती परिवेश को तबाह कर रहे हैं.