जर्मनी में जब नाची राधा
जर्मनी के शहर श्टुटगार्ट में हुआ भारतीय फिल्म फेस्टिवल भारत के सिनेमा के बारे में ही नहीं, समाज के बारे में भी काफी कुछ बता गया. फेस्टिवल की एक झलक तस्वीरों के जरिए...
इंडिया जैसा सीन हो गया
जर्मनी के हिसाब से यह अद्भुत नजारा है. हिन्दी फिल्म स्टूडेंट ऑफ द ईयर फिल्म का गाना राधा पूरे जोर से बज रहा है. सड़क के बीचोबीच मजमा लगा है. जर्मन, भारतीय और श्टुटगार्ट घूमने आए विदेशी सब के सब घेरा बनाकर एक लड़की को इंडियन गानों पर थिरकता देख रहे हैं. श्टुटगार्ट इंडियन फिल्म फेस्टिवल में आपका स्वागत है.
भारत पसंद है
जर्मन लोग भारतीय लिबास में अच्छे लगते हैं. खासकर महिलाएं. वे सिर्फ भारतीय फिल्मों की दीवानी नहीं हैं. एक के बाद एक कई फिल्में देखने के बाद सुस्ताती ये दर्शक.
जुबान पर चढ़ी जुबान
जुबान फिल्म के म्यूजिक ने सबका ध्यान खींचा. एक हकलाते युवा की गायक बनने की यात्रा को संगीत के जरिये पेश करती इस फिल्म को देखने के बाद सबकी जुबां पर इसका म्यूजिक चढ़ गया था.
दर्शक
भारतीय फिल्मों को देखने चार दिन में 5000 से ज्यादा लोग सिनेमा हॉल पहुंचे.
तीन पत्ती
13वें श्टुगार्ट फिल्म फेस्टिवल में कुल 60 भारतीय फिल्में दिखाई गईं. इनमें निल बटे सन्नाटा जैसी भारत में लोकप्रिय रही फिल्में भी थीं और पार्च्ड जैसी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो चुकी फिल्में भी.
राजनीति कहां है
एक आयोजक ने कहा कि भारत से राजनीतिक फिल्में बहुत कम आती हैं जबकि वे ऐसी फिल्मों का इंतजार करते हैं.
मुंबई की जुड़वां बहन
श्टुटगार्ट फिल्म फेस्टिवल का यह 13वां संस्करण था. श्टुटगार्ट मुंबई का ट्विन सिटी है. मुंबई में हर साल जर्मन वाइन फेस्टिवल होता है और यहां इंडियन फिल्म फेस्टिवल.
थीथी बनी द बेेस्ट
राम रेड्डी की कन्नड़ फिल्म थीथी को सर्वोत्तम फिल्म चुना गया और जर्मन स्टार ऑफ इंडिया अवॉर्ड से नवाजा गया. मई में भारत में रिलीज हुई यह फिल्म ऐसे कलाकारों को लेकर बनाई गई है जो प्रफेशनल ऐक्टर्स नहीं हैं.
अ फार आफ्टरनून
अ फार आफ्टरनून फिल्म की निर्देशक श्रूति हरिहर सुब्रमण्यन कहती हैं कि डॉक्युमेंट्री फिल्में बनाना आसान होता है जब आपको फंडिंग की दिक्कत ना हो. तब आप अच्छी फिल्में बना सकते हैं लेकिन भारत में इसके मौके ज्यादा नहीं हैं.
द वर्लविंड
श्याम सुंदर चटर्जी की फिल्म द वर्लविंड दिखाई गई. चटर्जी एनिमेशन फिल्में बनाते हैं और कहते हैं कि फिलहाल भारत में एनिमेशन फिल्मों को कार्टून फिल्म ही समझा जाता है.
जर्मन फिल्मकारों को पसंद भारत
जॉर्ज हाइंत्सेन और फ्लोरियान हाइंत्सेन भारत के एक बेहद पुराने सिनेमा हॉल पर डॉक्युमेंट्री बनाकर लाए हैं. उनका कहना है कि भारत में ना कहानियों की कमी है, ना सिनेमाई प्रतिभा की.
कैसी हैं भारत की लड़कियां
यह मानुएला हैं, जिन्होंने भारत की टैक्सी ड्राइवर देवकी पर फिल्म बनाई है. मानुएला कहती हैं कि भारत की लड़कियां मजबूत हैं और उनकी कहानियां कहना जरूरी है. लेकिन मानुएला को अपनी भारत यात्राओं में महसूस हुआ कि जितना ज्यादा और तेजी से बदलाव होना चाहिए, वैसा हो नहीं रहा है.
अगली बार के लिए सोच नहीं
अभिषेक बनर्जी शॉर्ट फिल्म 'अगली बार' के ऐक्टर हैं. वह बताते हैं कि नए फिल्मकारों के लिए भारत में सबसे बड़ा संघर्ष पहली फिल्म बनाना होता है और स्टार्स से बंधी इंडस्ट्री में नई कहानियों के लिए जगह बनाना आसान नहीं होता.