भारत से विवाद के बीच चिंता में कनाडा के सिख
३० सितम्बर २०२३कई दशकों से कनाडा सिखों के लिए सुरक्षित देश रहा है. 1980 और 90 के दशक में अलग देश 'खालिस्तान' की मांग के लिए हुए सशस्त्र संघर्ष की वजह से बहुत से लोग भारत छोड़कर विदेशों में बस गए. आज कनाडा में करीब 8 लाख सिख रहते हैं. यह भारत के बाहर सिखों की सबसे बड़ी आबादी है.
मौजूदा वक्त में भारत के अंदर खालिस्तान की मांग न के बराबर नजर आती है. लेकिन कनाडा के सिख समुदाय में इसकी उम्मीदें आज भी बरकरार हैं. इसी वजह से भारत और कनाडा के रिश्तों में बीते कई साल से तनाव बरकरार है.
हाल ही में जब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने संसद में बताया कि सिख अलगाववादी नेता और कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा की धरती पर हत्या के पीछे भारत सरकार का हाथ होने के कथित प्रमाणिक आरोप हैं, तो तनाव चरम पर पहुंच गया.
ट्रूडो के बयान के बाद भारत ने कनाडाई नागरिकों की वीजा प्रक्रिया पर रोक लगा दी. भारतीय विदेश मंत्रालय ने कनाडा के इल्जामों को "बेतुका" बताया है.
खालिस्तान आंदोलन के समर्थक हुए मुखर
टोरोंटो के हेजलडीन पार्क में बने भारतीय कॉन्सुलेट जनरल के दफ्तर के बाहर सिख निरंतर प्रदर्शन करते रहे हैं.
कुछ प्रदर्शनकारी भारतीय डिप्लोमैटिक मिशन को बंद करने की मांग कर रहे हैं और कनाडा सरकार से भारतीय सरकार के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.
सुनमीत कौर एक सिख एक्टिविस्ट हैं. पश्चिमी टोरोंटो के ब्रैंम्पटन इलाके में अपने घर पर डीडब्ल्यू से बात करते हुए उन्होंने कहा, "अगर भारत सरकार कनाडा में कनाडाई नागरिक की हत्या में शामिल हो सकती है, क्योंकि वह अपनी मातृभूमि की आवाज उठा रहे थे, तो आप कल्पना कर सकते हैं कि भारत के दमनकारी शासन में रह रहे पंजाबी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में क्या-क्या झेल रहे होंगे."
भारत में सिखों की ज्यादातर आबादी पंजाब में रहती है. 2.8 करोड़ की आबादी वाले राज्य में 60% से ज्यादा सिख हैं.
कौर ने कहा, "फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन से धर्म, नस्ल से हैं. अगर आप कनाडा में हैं और अपने मौलिक अधिकार का, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल नहीं कर सकते और आप सुरक्षित नहीं हैं, तब यह बहुत चिंता की बात है. सिर्फ कनाडा के लिए नहीं बल्कि सभी लोकतंत्रों के लिए."
सिखों का खालिस्तान आंदोलन सिखों के लिए पंजाब में अलग देश की मांग करता है. भारत सरकार इस आंदोलन और इसके नेताओं को आतंकवादी मानती है.
राजनयिक विवाद के बीच तनाव में सिख
एक अन्य सिख एक्टिविस्ट कुलजीत सिंह स्पष्ट करते हैं कि सिख समुदाय के बहुत से लोग खालिस्तान के लिए अपनी कुर्बानी देने को तैयार हैं. वो कहते हैं, "हम जानते हैं कि पंजाब राज्य को भारत के कब्जे से आजाद करवाने की हमारी जंग में हमेशा कुर्बानियां रही हैं."
उनका कहना है कि हरदीप सिंह निज्जर की मौत "हमारे समुदाय के लिए, एक और कुर्बानी है जिसे हम सह लेंगे जब तक कि यह हमें पंजाब की आजादी के हमारे असल मकसद के नजदीक ले जा रही है."
पश्चिमी कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में एक सिख सांस्कृतिक केंद्र के बाहर जून 2023 में निज्जर की अज्ञात नकाबपोश हमलावरों ने हत्या कर दी थी. उनकी मौत से भारत और कनाडा के बीच राजनयिक तनाव बढ़ गया था.
कुलजीत सिंह मानते हैं कि उनके विचार चरमपंथी हैं और वहां कई सिख ऐसे भी हैं जो राजनैतिक रूप से कम सक्रिय हैं.
टोरंटो का श्री गुरु नानक सिख सेंटर जगदीश सिंह संधू के लिए दूसरा घर है. संधू कैब चलाते हैं. जब भी उनकी शिफ्ट खत्म होती है, वह माथा टेकने और दोस्तों से मिलने यहां आते हैं. साथ ही यहां उन्हें हर वक्त गर्मागर्म लंगर भी मिलता है.
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"हमारे भाईचारे ने शुरुआत में मेरी बड़ी मदद की. उन्होंने मुझे सब दिया- मेरे लिए खाना, मेरे परिवार के लिए खाना. मैं यहां भी रह सकता था, जब मेरे पास रहने की जगह नहीं थी. यहां मुझे खुशी मिलती है, अंदरूनी शांति मिलती है, जो मुझे कहीं और नहीं मिल सकती."
सिख समुदाय के बाकी लोग कहते हैं कि वे कनाडा में सुरक्षित महसूस करते हैं और इसीलिए पूरी दुनिया से सिख यहां आकर बसते हैं. हालांकि, हमले के बाद कुछ सिखों का कहना है कि उनका पूरा समुदाय और नेता इस डर में जी रहे हैं कि भारत सरकार उन्हें मारने के लिए किसी हमलावर को भेज सकती है.
कनाडाई हिंदुओं को मामला बढ़ने का डर
हिंदू इंडो-कनाडाई समुदाय में सबसे बड़ा आबादी समूह हैं. करीब 8 लाख 30 हजार हिंदू कनाडा में रहते हैं. कनेडियन हिंदू फोरम, टोरोंटो के प्रवक्ता गौरव शर्मा ने कहा कि निज्जर की हत्या के बाद वह सिख समुदाय में उठ रही चरमपंथी भावनाओं के लेकर काफी चिंतित हैं.
उन्होंने कहा, "हम नहीं चाहते कि यह हालात इतने बिगड़ जाएं कि इनसे कम्युनिटी का कामकाज या आम जिंदगी प्रभावित हो." उन्होंने कहा कि कई चरमपंथी सिख, हिंदू समुदाय से कनाडा छोड़ने की मांग कर रहे हैं. शर्मा ने कहा, "प्रधानमंत्री ट्रूडो के बयान ने दुर्भाग्य से चरमपंथी विचारधाराओं के लिए एक अच्छा प्लेटफॉर्म मुहैया कर दिया है."
फ्री स्पीच का कनाडा का दावा
भारतीय समुदाय से न आने वाले लोगों ने डीडब्ल्यू को बताया कि दोनों ही समुदायों के रीति-रिवाज काफी अलग हैं और हर कनाडाई नागरिक के लिए बोलने की आजादी का अधिकार होना चाहिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि वह कहां से है.
हालांकि इस मामले पर लोगों की राय बंटी हुई है कि ट्रूडो को अपने आरोपों को बल देने के लिए हरदीप सिंह निज्जर की हिंसक हत्या के सबूत देने चाहिए थे. भारत ने भी ऐसी ही मांग की थी लेकिन कनाडा चुप्पी साधे हुए है.
मामले के बारे में जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने समाचार एजेंसी एपी को बताया था कि ट्रूडो की सरकार ने यह जानकारी कनाडा में भारतीय राजनयिकों की सर्विलांसिंग करके हासिल की है. साथ में कनाडा ने कुछ जानकारी फाइव आइज इंटेलिजेंस अलायंस के एक सदस्य से भी हासिल की थी. इस दल में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और न्यू जीलैंड शामिल हैं.
डीडब्ल्यू ने कनाडा में भारत के उच्चायोग से भी बात करनी चाही लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला.