यूक्रेन युद्ध के बीच खूब याद किया जा रहा है शांति के प्रतीक कबूतर को
प्राचीन काल से कबूतर को शांति के प्रतीक के रूप में माना गया है. यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के बाद यह चिड़िया एक बार फिर मित्रता और एकता की अहमियत की याद दिलाने वाला एक जरिया बन गई है. देखिए लोग कैसे इसका इस्तेमाल कर रहे हैं.
यूक्रेन के लिए शांति की कामना
जर्मन कलाकार जस्टस बेकर ने फ्रैंकफर्ट में एक इमारत की बाहरी दीवार पर जैतून की एक शाख लिए एक कबूतर का विशाल चित्र बनाया है. जैतून की शाख को यूक्रेन के राष्ट्रीय रंगों नीले और पीले रंग में रंगा गया है. बेकर को यह म्यूरल बनाने में तीन दिन लगे. वो इसके जरिए यूक्रेन के साथ एकजुटता और शांति के लिए उम्मीद का संदेश देना चाहते हैं.
सफेद और शुद्ध
प्राचीन काल से ऐसी मान्यताएं रही हैं कि कबूतरों में खास शक्तियां होती हैं. लोगों का मानना था कि इस चिड़िया के शरीर में पित्ताशय या गॉल ब्लैडर नहीं होता है इसलिए इसके व्यवहार में ना कटुता होती है और न दुष्टता. सफेद कबूतर यूनान में प्रेम की देवी एफ्रोडाइटी का साथी माना जाता है.
बाइबल में उम्मीद का प्रतीक
बाइबल के अनुसार महाप्रलय के बाद अपनी नाव में 40 दिन बिताने के बाद नोआ ने पानी के बीच जमीन खोजने के लिए सबसे पहले कबूतरों को भेजा. जैतून की शाख लिए ये कबूतर न सिर्फ प्रलय के अंत का बल्कि भगवान के साथ फिर से शांति की स्थापना का प्रतीक थे.
शांति का आइकॉन
पिकासो द्वारा बनाया कबूतर का चित्र 1950 के दशक में शांति आंदोलन का प्रतीक बन गया था और उसने विश्व इतिहास में अपनी जगह बना ली थी. उसके बाद पिकासो ने कई बार अपने चित्रों में कबूतर को दर्शाया और अपनी बेटी का नाम भी "पालोमा" रखा, जिसका स्पेनिश भाषा में अर्थ कबूतर होता है.
भारत में भी कबूतर
पिकासो के चित्र ने जिन कलाकारों को प्रेरणा दी उनमें भारतीय शहर चंडीगढ़ का डिजाइन बनाने वाले आर्किटेक्ट ल कोर्बूजिए भी थे. उन्होंने शहर में यह कलाकृति बनाई, जिसमें एक खुली हथेली को एक कबूतर के आकार में दिखाया गया है. यह कलाकृति अंग्रेजी हुकूमत से भारत की स्वतंत्रता का प्रतीक थी.
शांति आंदोलन का प्रतीक
शांति प्रदर्शनों में इस्तेमाल होने वाले इस लोगो को 1970 के दशक में फिन्निश ग्राफिक डिजाइनर मीका लौनीस द्वारा ली गई एक कबूतर की तस्वीर से बनाया गया था. अब हर शांति प्रदर्शन में नीले झंडे दिखाए जाते हैं जिन पर यह लोगो बना होता है.
एक पुराना संदेश
यूक्रेन युद्ध के खिलाफ प्रतिक्रिया के रूप में जर्मन थिएटर कंपनी बर्लिनर औंसौम्ब्ल ने पिकासो के मशहूर चित्र के साथ इस झंडे को दर्शाया. इस झंडे को सबसे पहले 1950 के दशक में जर्मन थिएटर जगत के दिग्गज बेर्टोल्ट ब्रेक्ट ने स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में लगाया था. बर्लिनर औंसौम्ब्ल ब्रेक्ट की शांति की अपील को फिर से जीवित करना चाहता है और यूक्रेन के साथ एकजुटता दिखाना चाहता है.
युद्ध की क्रूरता
इस साल जर्मनी के शहर कोलोन में पारंपरिक रोज मंडे परेड को एक शांति रैली में बदल दिया गया, जिसमें 25,000 लोगों ने हिस्सा लिया. एक झांकी में खून से लथपथ एक कबूतर को और रूस के झंडे को उस कबूतर के आर पार दिखाया गया. (किम-आइलीन स्टरजेल, लैला अब्दल्ला)