तन्हाई में मौत को गले लगाते जापानी लोग
जापान में बेहद बीमार लोग अस्पताल में ही मरना पसंद करते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अस्पताल की बजाय अपने घर में पूरी तरह अकेले मौत से जा मिलते हैं.
आखिरी दिनों के साथी
मित्सूरू निमूमा को जब पता चला कि वह फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित हैं और इस दुनिया में कुछ ही दिनों के मेहमान हैं, तो उन्होंने अस्पताल की बजाय घर पर जाने का फैसला किया. इस तरह आखिरी दिनों में उन्हें अपने पोते और अपने कुत्ते रन के साथ भी ज्यादा वक्त बिताने का मौका मिला.
अपने घर की चार दीवारी
69 साल के मित्सूरू के सोने के कमरे की चारदीवारी रंग बिरंगी है. ये रंग उन्होंने अपने पोते के साथ मिल कर बिखेरे हैं. एक फीजियोथेरेपिस्ट आकर उनका हालचाल लेती है और उनकी टांगों की मसाज करती है. मित्सूरू कई महीनों से बिस्तर पर हैं.
घर पर ही देखभाल
तासोदो तोयो टोक्यो में अपनी बेटी के साथ रह रही हैं. 95 साल की यह महिला कैंसर और डिमेंशिया की मरीज है. बेटी उन्हें अस्पताल से घर ले आयी क्योंकि उन्हें लगा कि उनकी मां अस्पताल में कमजोर हो गयी है और डिमेंशिया की बीमारी भी बिगड़ गयी.
लंबा इंतजार
कास्तो साइतो को जब पता चला कि उन्हें कैंसर है तो उन्होंने अपने घर के नजदीकी अस्पताल में नाम लिखवाया. लेकिन यहां भर्ती होने के लिए उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ा. और जब आखिरकार उन्हें अस्पताल में बिस्तर मिला, तो उसके दो दिन बाद ही उनका निधन हो गया.
जगह की कमी
जापान में अस्पतालों में बिस्तरों की कमी एक बड़ी समस्या है. जापान में लंबे समय तक बीमार रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है. वहां हर चार में एक व्यक्ति 65 साल से ज्यादा उम्र का है. जानकारों का कहना है कि 2030 तक जापान के अस्पतालों को पांच लाख बिस्तरों की कमी से जूझना होगा.
महंगे कमरे
यासुहीरो सातो फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित हैं और अपनी जिंदगी के आखिरी दिन काट रहे हैं. वह अस्पताल में अपने लिए अलग से कमरा चाहते हैं. लेकिन रिटायर कर्मचारी के लिए अलग कमरे का खर्च उठाना संभव नहीं और बीमा कंपनी भी इसके लिए पैसे नहीं देती, इसलिए वह टोक्यो के एक अपार्टमेंट में रहने चले गये.
चलते फिरते डॉक्टर
फिजिशियन यो यासुई (दायें) ने एक मोबाइल क्लीनिक बनाया है जो घर पर रहने वाले मरीजों की देखभाल में मदद करता है. 2013 से उन्होंने लगभग ऐसे 500 लोगों की देखभाल की है जिन्होंने अपने घरों में आखिरी सांस ली.
तन्हाई में मौत?
यासुई के कई मरीज अपने घर वालों के साथ रहते हैं और कोई न कोई उनकी देखभाल के लिए मौजूद रहता है. लेकिन कई ऐसे भी है जिनसे मिलने डॉक्टर के अलावा कोई और नहीं आता. टोक्यो में यासुहीरो का कोई नहीं है. वह अपने इस फ्लैट में बिल्कुल अकेले रहते हैं.
शायद बाद की जिंदगी बेहतर हो
यासुहीरो का कहना है कि वह किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते हैं, क्योंकि वह "मौत के बाद बेहतर जिंदगी" चाहते हैं. 13 सितंबर को जब यासुहीरो की सांसें बंद हुई तो उस वक्त उनके पास डॉक्टर और नर्सों के अलावा कोई और नहीं था.