मध्य और पूर्वी यूरोप की घुमक्कड़ी करती दो लड़कियों की यात्रा डायरी
यूक्रेन युद्ध का पर्यटन पर क्या असर पड़ा? दो सप्ताह तक डीडब्ल्यू की लैला अब्दुल्ला और शबनम सुरीता पोलैंड, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया, हंगरी और रोमानिया की यात्रा पर रहीं. कैसी रही उनकी रोजमर्रा की जिंदगी, देखें.
15वां दिन: खत्म हुआ सफर
दो सप्ताह, पांच देश, अतुलनीय अनुभव. हमने तिमिसोआरा में हॉस्टल में बिताए आखिरी पलों को याद करने के लिए यह तस्वीर ली. हमारी रिसर्च के मुताबिक, हमने जिन शहरों का दौरा किया, वहां पर्यटकों की संख्या कोरोना महामारी से पहले की तुलना में कम है, लेकिन इसकी वजहें साफ नहीं है. क्या यूक्रेन में युद्ध इसकी वजह है? हो सकता है...एक बात जिस पर हमें यकीन है, वह यह कि युद्ध ने इस इलाके के मनोबल पर गहरा असर डाला है.
14वां दिन: यात्रा के अंत की शुरुआत
आखिरी पड़ाव: तिमिसोआरा, रोमानिया. यह शहर, अब तक एक सुखद आश्चर्य रहा है! यह केंद्र कई रंगों, शैलियों और ऐतिहासिक काल के वास्तुशिल्प खजानों से भरा है. हालांकि तिमिसोआरा का असली आकर्षण इसकी जीवंत संस्कृति है. इसे अक्सर "लिटिल वियना" के रूप में जाना जाता है, जो साल भर चलने वाले कला कार्यक्रमों, नुमाइशों और संग्रहालयों का गढ़ है. जाहिर है यह हमारी यात्रा के लिए सोने पर सुहागा साबित हुआ.
13वां दिन: अलविदा बुडापेस्ट!
हम रात में घुमक्कड़ी किए बिना बुडापेस्ट को अलविदा नहीं कह सकते थे और ऐसा करने के लिए ऐतिहासिक रुइन बार जाने से बेहतर तरीका क्या हो सकता है. ये खंडहरनुमा बार होते हैं. हमने बुडापेस्ट का पहला रुइन बार स्जिंपला कोर्ट चुना, जिसे 2002 में खोला गया था. भीड़-भाड़ वाली रातों में, यह बार हजारों लोगों को आकर्षित करता है, जिनमें से अधिकतर पर्यटक होते हैं. इसके लिए इंतजार करना जायज है.
12वां दिन: एक स्थानीय लड़की के साथ बुडापेस्ट को देखना
छोटी यात्रा पर सब कुछ देख पाना बहुत मुश्किल है, इसी वजह से हम 2017 से बुडापेस्ट में रह रहीं प्रवासी जिना के पास पहुंचे. वह हमें शहर में अपनी पसंदीदा जगहों पर ले गईं. हम दुनिया के सबसे पुराने मेट्रो में से एक पर सवार हुए और हंगेरियन संसद तक गए. शानदार नजारे ने हमें उम्मीद से थोड़ा ज्यादा घूमने पर मजबूर कर दिया.
11वां दिन: हैलो बुडापेस्ट!
हम अपनी यात्रा के चौथे ठिकाने हंगरी में हैं. हम बहुत लकी निकले क्योंकि बुडापेस्ट में मौसम गजब का मिला! हमने तुरंत शहर के सेंट्रल क्वार्टर हिस्से का चक्कर लगाया और सेंट स्टीफंस बसिलिका (तस्वीर) और हीरोज स्क्वायर समेत कई अहम जगहों को देखा. हमने एथनोग्राफी म्यूजियम के ऊपर से भी बुडापेस्ट को देखा. नजारा वाकई शानदार था!
10वां दिन: अलविदा ब्रातिस्लावा!
अगला पड़ाव, हम बुडापेस्ट निकल पड़े हैं, जो ट्रेन से सिर्फ दो घंटे की दूरी पर है. ब्रातिस्लावा, बुडापेस्ट और विएना एक-दूसरे के पास हैं, और हमारी ट्रेन उन्हीं पर्यटकों से भरी हुई थी जो इन तीनों जगहों का दौरा कर रहे थे. इन शहरों में ऐतिहासिक रूप से बहुत कुछ एक सा है, उदाहरण के लिए, ब्रातिस्लावा भवनों पर स्लोवाक, जर्मन और हंगेरियन शब्दों का इस्तेमाल.
9वां दिन: अदृश्य जंग
हमने देखा कि ब्रातिस्लावा के लोग यूक्रेन की जंग पर चर्चा नहीं करना चाह रहे थे. भले ही ब्रातिस्लावा यूक्रेन की राजधानी कीव से करीब 1,200 किलोमीटर दूर है, लेकिन रिपोर्टों से पता चलता है कि पर्यटकों की संख्या कम हुई है जिसके पीछे जंग से जुड़ी आशंकाएं हो सकती है. हमने यात्रा विशेषज्ञों से बात की, लेकिन उन्होंने असर से इनकार किया. इसके उलट, उन्होंने कोविड के बाद यहां चहल-पहल की वापसी की बात की.
8वां दिन: ब्रातिस्लावा और इसके दृष्टि-भ्रम
स्लोवाक की राजधानी अपने आकर्षक पुराने शहर, महल और डेन्यूब नदी के लिए जानी जाती है लेकिन बहुत कम सैलानियों को पता है कि ब्रातिस्लावा के पास जीवंत कला और संस्कृति से जुड़ा बहुत कुछ देने को है. हमने मल्टीम गैलरी का दौरा किया. यह एक प्रयोगात्मक कला स्थल है जहां रोशनी और आइनों से आपमें ऑप्टिकल भ्रम पैदा होता है. पहले तो ऑप्टिकल भ्रम हमें भटका रहे थे, लेकिन हम तुरंत उसके आनंद में रम गए.
7वां: यह है ब्रातिस्लावा!
एक ट्रेन यात्रा और अचानक की गई बस की सवारी के बाद, हम अपने अगले पड़ाव पर पहुंचे: स्लोवाकिया की राजधानी ब्रातिस्लावा. ऐतिहासिक नजारों के साथ-साथ, ब्रातिस्लावा थोड़ा हटके है. हम पुराने शहर के फाइव पॉइंट्स कैफे पहुंचे, जहां आप अपने "सेल्फीचिनो" पर कोई भी फोटो छपवा सकते हैं. तो वहां हमें हमारी पसंदीदा सेल्फी में से एक और डीडब्ल्यू लोगो वाली एक कॉफी मिली!
6ठा दिन: प्राग को पीछे छोड़ते हुए
हमने प्राग को बहुत छाना और यह भी पता लगाने की कोशिश की कि यूक्रेन युद्ध ने यहां के पर्यटन को कैसे प्रभावित किया है. हमने पर्यटन विशेषज्ञों से बात की, जिन्होंने कथित तौर पर पर्यटकों की कम संख्या पर निराशा जताई, हालांकि हमें ऐसा बिल्कुल नहीं लगा. इसके उलट, हम शहर में पर्यटकों की भीड़ देख अचकचा गए. लेकिन अब प्राग में हमारा समय हुआ समाप्त और आ गया है समय अब यहां से आगे बढ़ने का.
5वां दिन: प्राग में साइकिल रिक्शे की सवारी
हम सिर्फ दो दिनों में प्राग में मौजूद हर चीज का लुत्फ नहीं उठा सके, लेकिन हमने शहर में नए तरीके से अनुभव बटोरने की कोशिश की और साइकिल रिक्शा की सवारी का फैसला किया. हम लिबोर से मिले, जिन्होंने प्राग वास्तुकला के अपने ज्ञान से हमें मंत्रमुग्ध कर दिया. आखिर में, शबनम उनकी साइकलिंग से खासी प्रभावित नजर आई.
चौथा दिन: प्राग की यात्रा
हम दोनों में से कोई भी पहले कभी प्राग नहीं आया, इसलिए हमने इस शहर में रुकने का फैसला किया. ये खूबसूरत बोहेमियन महानगर दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करता है, और हम जानना चाहते थे कि आखिर क्यों. हमने अपने दिन की शुरुआत वल्तावा नदी पर एक नाव पर यात्रा के साथ की, इस दौरान नजारे जबरदस्त थे. हम लकी निकले, मौसम भी हमारा साथ दे रहा था.
तीसरा दिन: पीछे मुड़कर व्रोकला को देखना
व्रोकला ने खुले हाथों से हमारा स्वागत किया, और हमें पता चला कि यह बाकियों का भी ऐसे ही स्वागत करता है, खास तौर से युद्ध से विस्थापित हुए यूक्रेनियन का. 190,000 यूक्रेनी शरणार्थी अब यहां रहते हैं. हम जहां भी गये, हमने नीले-पीले झंडे, एकजुटता के संदेश दिखाते रेस्तरां और यहां तक कि लोगों को यूक्रेनी गाने गाते हुए देखा. दो दिनों के बाद, हमारे लिए बस से अपने अगले पड़ाव पर जाने का समय आ गया है.
दूसरा दिन: व्रोकला चिड़ियाघर में!
क्या आप जानते हैं कि दुनिया में अफ्रीकी वनस्पतियों और जीवों का सबसे बड़ा संग्रह पोलैंड के व्रोकला में है? इसने हमारे अंदर उत्साह जगाया, इसलिए हम व्रोकला चिड़ियाघर में "अफ्रीकेरियम" पहुंचे. हमने कई तरह के अनुभव किए जैसे, लैला को समुद्री जीवन देखने में मजा आया और असल में उसकी मैनाटी को लेकर दिलचस्पी बढ़ गई. शबनम ने पहली बार जिराफ देखा और उम्मीद के उलट वो शार्क से बिल्कुल भी नहीं डरी
पहला दिन: व्रोकला में कदम
आखिर वह दिन आ गया! हम बर्लिन में जागे. उत्साह और थोड़ी बेचैनी के साथ अपने पहले पड़ाव व्रोकला के लिए ट्रेन ली. शहर ने कुछ अनोखे नजारों के साथ हमारा स्वागत किया, और हमें ये बेहतरीन ढंग से महसूस हुआ. हमने मध्यकालीन मेन बाजार चौक, या यूं कहें कि रयनेक का चक्कर लगाया, और नजारों को आंखों में उतारा. यह जगह यूरोप में अपनी तरह की सबसे बड़ी, और बहुत सुंदर है.
हमारी तैयारी
हमने अपनी यात्रा की तैयारी में दो सप्ताह बिताये. रूट तय किया, रिसर्च किया, आइडिया इकट्ठे किए और इंटरव्यू तय किए. यह भी अहम है: अलग-अलग कैमरों से लेकर चार्जर तक, कई किस्म के चार्जर, माइक्रोफोन और रोशनी के लिए सही उपकरण पैक करना. इतने सारे उपकरण का मतलब है बहुत सारी जिम्मेदारी. लेकिन इसका मतलब यह भी है कि हम यहां और डीडब्ल्यू ट्रैवल के सोशल मीडिया चैनलों पर आपके लिए बेहतरीन कंटेंट बना सकते हैं.
यात्रा की शुरुआत और आखिरी पड़ाव: बर्लिन
डीडब्ल्यू की शबनम सुरीता (बाएं) और लैला अब्दुल्ला (दाएं) ने 19 सितंबर को बर्लिन में मध्य और पूर्वी यूरोप के अपने दो सप्ताह के दौरे की शुरुआत की. उनकी यात्रा उन्हें पोलैंड के व्रोकला, चेक गणराज्य के प्राग, स्लोवाकिया में ब्रातिस्लावा हंगरी में बुडापेस्ट और रोमानिया में तिमिसोआरा ले जाएगी. वे यह पता लगाना चाहती हैं कि यूक्रेन युद्ध का पर्यटन पर कैसा असर पड़ रहा है.