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हमारे टूथब्रश पर रहते हैं सैकड़ों वायरस

मैथ्यू वार्ड आगीयूस
१५ अक्टूबर २०२४

कोई भी टूथब्रश या शावरहेड एक जैसा नहीं होता. अमेरिकी शोधकर्ताओं ने पाया कि अमेरिका और यूरोप में बाथरूम के भीतर, यहां तक कि दांत साफ करने के ब्रशों पर भी कई सारे वायरस रहते हैं.

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बैक्टीरियोफेज की डिजिटल माध्यम से बनाई गई तस्वीर
बैक्टीरियोफेज, बेहद छोटे आकार का वायरस होता है जो जीवाणुओं को संक्रमित और नष्ट करता हैतस्वीर: Colourbox

गर्म पानी से नहाना अच्छा लगता है, लेकिन ऐसा करते वक्त शावर के पानी की जो गर्म धार निकलती है, उससे नहा रहे आप इकलौते जीव नहीं होते. अमेरिका के एक शोध में पता चला है कि शावरहेड पर कई तरह के वायरस रहते हैं.

हालांकि, ये अच्छी खबर है.

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नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की माइक्रोबायोलॉजिस्ट एरिका हार्टमान ने इस शोध का नेतृत्व किया है. वह कहती हैं, "हमें मिले वायरस असंख्य हैं. हमें कुछ ऐसे वायरस भी मिले, जिनके बारे में हम बहुत कम ही जानते हैं और कई ऐसे भी मिले जिन्हें हमने पहले कभी नहीं देखा. यह बेहद अचंभित करने वाला है कि हमारी जैव विविधता में कितनी ऐसी चीजे हैं, जिनके बारे में हम नहीं जानते और उसे खोजने के लिए आपको बहुत दूर जाने की जरूरत भी नहीं है. यह आपके नाक के नीचे ही मिल जाएगा." या फिर ऐसा लगता है, बाथरूम के नल पर भी.

शावर में नहा रही एक महिला. सांकेतिक तस्वीर.
रिसर्चरों ने वायरस समूहों में इतनी विविधता पाई कि एक शावरहेड पर पाए गए समूह दूसरे शावरहेड से मेल नहीं खाते थे तस्वीर: Panthermedia/imago images

वायरस अक्सर इंसानों या जानवरों में होने वाली बीमारियों से जोड़े जाते हैं. हालांकि, हर वायरस इंसानों में बीमारियां पैदा नहीं करता. वे विज्ञान के लिए काफी मददगार भी हो सकते हैं. हार्टमान और उनकी टीम द्वारा पहचाने गए ज्यादातर वायरस बैक्टीरियोफेज हैं. इंसानों के लिए खतरा बनने की बजाय ये बैक्टीरिया को संक्रमित करते हैं. 

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यह शोध 'फ्रंटियर्स इन माइक्रोबायोम्स' नाम के एक जर्नल में छपा है. हार्टमान के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने पाया कि ज्यादातर अमेरिकी अपनी दो तिहाई जिंदगी अपने घर में बिताते हैं. ऐसे में घरों में पल रहे इन वायरसों के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करना घरों की गुणवत्ता समझने में मददगार हो सकता है. 

आपके टूथब्रश पर क्या रहता है?

वायरल समुदायों की संरचना के बारे में जानने के लिए शोधकर्ताओं ने नागरिक विज्ञान परियोजनाओं के पहले के उन आंकड़ों का उपयोग किया, जिनमें अमेरिकी घरों के टूथब्रशों और शावरहेडों से जीवों के नमूने लिए गए थे. इसके बाद रिसर्चरों ने ऐसे वातावरण की समीक्षा की. उन्हें हर जगह पर अलग-अलग तरह के वायरसों का समूह मिला.

आमतौर पर माना जाता है कि वायरस किसी जीवित-मृत क्षेत्र में पाए जाते हैं, जहां उन्हें अपनी संख्या बढ़ाने के लिए एक जीवित मेजबान की आवश्यकता होती है. कई बार वे नुकसान भी पहुंचाते हैं. हालांकि, वे बहुत जटिल समुदायों के रूप में अलग-अलग वातावरण में भी रहते हैं. अमेरिकी बाथरूमों के अंदर हार्टमान की टीम को शावरहेड के ऊपर और टूथब्रश के रेशों पर 600 से भी अधिक वायरसों की अनोखी प्रजातियां मिलीं.

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इनमें इतनी विविधता थी कि एक भी शावरहेड पर पाए गए समूह दूसरे शावरहेड से मेल नहीं खाते. यही हाल टूथब्रश के साथ भी था. उम्मीद की जा रही है कि इस शोध समूह द्वारा खोजे गए यह बैक्टीरियोफेज वायरस, जीवाणु संक्रमण के इलाज में नई राह खोल सकते हैं. साथ ही, ये एंटीमाइक्रोबियल उत्पादों के बिना भी वातावरण को साफ करने का ज्यादा उपयुक्त तरीका मुहैया कर सकते हैं.

हार्टमान कहती हैं, "आप उनके ऊपर डिसइनफेक्टेंट का जितना ज्यादा छिड़काव करेंगे, उतना ही ज्यादा उनमें प्रतिरोधी क्षमता विकसित होने की संभावना होगी. उनका इलाज और भी मुश्किल हो सकता है. हमें उन्हें अपनाने की कोशिश करनी चाहिए. सूक्ष्म जीव हर जगह पर हैं और उनमें से ज्यादातर हमें बीमार नहीं बनाते."

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शावरहेड के बैक्टीरियल समुदायों की अलग तस्वीर

इस बात का आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि जलीय परिवेश जीवन से भरा है. आखिरकार, दूसरे ग्रहों पर जीवन की तलाश कर रहे वैज्ञानिकों के लिए सर्च लिस्ट में सबसे ऊपर पानी ही है. कई अध्ययनों में यह भी सामने आया है कि वायरस और बैक्टीरियोफेज के अलावा बाथरूम की सतह पर बैक्टीरिया और फंगी भी घर कर सकते हैं.

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तीन साल पहले हार्टमान के नेतृत्व में शोध समूह ने इस विषय पर रिचर्स शुरू की. इसका नाम "ऑपरेशन पॉटीमाउथ" रखा गया क्योंकि ये रिसर्चर उन दावों की जांच करना चाहते थे जिनके मुताबिक, बाथरूम में फ्लश करने से फीकल ऐरोसॉल्स आपके टूथब्रश तक पहुंच जाते हैं. यानी, टॉइलेट का फ्लश दबाने पर पानी की सूक्ष्म बूंदों के माध्यम से मल में मौजूद वायरस फैल जाते हैं. रिसर्चरों का कहना है कि ये दावे शायद सच नहीं हैं. बल्कि, टूथब्रश पर पाए जाने वाले ज्यादातर बैक्टीरिया व्यक्ति के मुंह से ही आते हैं.

2018 में 'शावरहेड माइक्रोबायोम प्रोजेक्ट' ने अमेरिकी और यूरोपीय बाथरूमों में पाए गए माइकोबैक्टीरियम से संक्रमित शावरहेड और फेफड़ों के संक्रमण के बीच संबंध पाया. अच्छी बात यह है कि हार्टमान के ताजा शोध में यह पाया गया कि इस तरह के वातावरण में सामान्य रूप से पाए जाने वाले बैक्टीरियोफेज, हानिकारक माइकोबैक्टीरिया को निशाना बनाते हैं.

हार्टमैन कहती हैं, "हम माइकोबैक्टीरियोफेज को लेकर उन्हें आपके प्लंबिंग सिस्टम में मौजूद रोगाणुओं के सफाये में इस्तेमाल कर सकते हैं. हम इन वायरसों की समूची कार्यशैली को जानकर यह समझना चाहते हैं कि हम किस तरह उनका इस्तेमाल कर सकते हैं. "