नीलगिरी में फिर से उगाए जा रहे हैं जंगल
नीलगिरी क्षेत्र में पहले जंगल थे जिन्हें स्थानीय निवासी पवित्र मानते थे. लेकिन 200 साल पहले ब्रिटिश शासन में इन्हें हटाकर चाय के बागान लगा दिए गए. अब इन जंगलों को फिर से उगाने का काम हो रहा है.
चाय की खेती का प्रभुत्व
नीलगिरी में लगभग 1,35,000 एकड़ में चाय के बागान हैं. इनसे करीब 70 फीसदी घास के मैदान और प्राकृतिक जंगल नष्ट हो गए.
जैव विविधता पर असर
नीलगिरी क्षेत्र को जैव विविधता के लिए खास माना जाता है. यहां 600 से ज्यादा पेड़-पौधों और 150 जानवरों की अनोखी प्रजातियां पाई जाती हैं. लेकिन चाय की खेती के कारण मिट्टी कमजोर हो गई है और जीवन का समर्थन नहीं कर पाती.
आदिवासी समुदायों का योगदान
ब्रिटिश शासन के दौरान विस्थापित हुए आदिवासी समुदाय जंगलों को फिर से उगाने में मदद कर रहे हैं. उनकी पारंपरिक जानकारी वन और जीवों को बचाने में अहम भूमिका निभा रही है. आदिवासी नेता मणि रमन का कहना है कि जंगल बचाने के लिए पारंपरिक तरीकों को बड़े पैमाने पर अपनाना चाहिए.
चाय पर निर्भरता
लगभग 6 लाख लोग, जिनमें 50,000 छोटे किसान भी शामिल हैं, चाय की खेती पर निर्भर हैं. चाय को पर्यटन आधारित शहरीकरण के मुकाबले कम नुकसानदायक माना जाता है. चाय के साथ पेड़ और झाड़ियां लगाने से जैव विविधता बढ़ाई जा सकती है. विशेषज्ञ खास किस्म की चाय उगाने और औषधीय पौधों से उत्पाद बनाने का सुझाव देते हैं.
फिर से जंगल उगाने में सफलता
इकोलॉजिस्ट गॉडविन वसंत बॉस्को के प्रयासों से 2,000 एकड़ में जंगलों का पुनर्निर्माण हुआ है. सात एकड़ का इलाका ऐसा है जहां अब साल भर पानी की धारा बहती है.
सरकारी प्रयास
तमिलनाडु सरकार ने पर्यावरण अनुकूल खेती को बढ़ावा देने के लिए 2.4 करोड़ डॉलर का बजट दिया है. 60,000 देशी पेड़ लगाने की योजना भी बनाई गई है.