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विज्ञान के क्षेत्र में भारत ने 75 सालों में क्या हासिल किया?

रजत शर्मा
१४ अगस्त २०२२

1947 में भारत खाद्यान्न, विज्ञान और तकनीक के लिए विदेशों पर निर्भर था. 75 साल बाद आज इन क्षेत्रों में देश अग्रणी है.

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भारत अपने ज्यादातर अंतरिक्ष कार्यक्रम आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में बने सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च करता है.
भारत अपने ज्यादातर अंतरिक्ष कार्यक्रम आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में बने सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च करता है.तस्वीर: Arun Sankar/AFP

तारीख, 21 अप्रैल 1956. आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में कहते हैं-

"जरा आज की दुनिया पर नजर डालिए, वहां अब तक की सबसे जबरदस्त, सबसे एक्साइटिंग समस्याएं खड़ी हैं. ये समस्याएं सिर्फ सियासी नहीं है, बल्कि ये समस्याएं युद्ध और शांति की बड़ी समस्याओं से भी बड़ी हैं. हम एटमी जमाने की दहलीज पर खड़े हैं. यह एक ऐसी चीज है, जो दुनिया को उससे भी ज्यादा बदलकर रख देगी, जितना कि औद्योगिक क्रांति ने बदला था. औद्योगिक क्रांति केवल आंशिक रूप से ही भारत में आई है, लेकिन इसने यूरोप और अमेरिका में लोगों के जीवन-स्तर को इंकलाबी तौर पर ऊपर उठाया है. अब औद्योगिक क्रांति भारत में आ रही है, लेकिन ठीक इसी समय एटॉमिक रिवोल्यूशन भी यहां आ रहा है. दोनों साथ आएंगी और हम इस बात का जोखिम नहीं उठा सकते कि इनमें से किसे पहले और किसे बाद में दाखिल होने दें. इसलिए हमें दोनों को साथ लेकर चलना होगा."

Indien | Jawaharlal Nehru mit Mahatma Gandhi und Abul Kalam Azad
महात्मा गांधी के साथ देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद. (वर्धा, महाराष्ट्र. 1935)तस्वीर: public domain

नेहरू आजाद भारत के पहले आईआईटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) खड़गपुर में इंजीनियरों के पहले दीक्षांत समारोह में बोल रहे थे. यही सोच स्वतंत्र भारत की वैज्ञानिक यात्रा का आधार बनी. विद्यार्थियों को देश में ही विज्ञान, प्रौद्योगिकी और शोध के साधन मुहैया कराने से शुरू हुई यात्रा आज चंद्रमा और मंगल तक पहुंच चुकी है. आजादी के वक्त भारत अन्न की कमी से जूझ रहा था, आयात पर निर्भर था. लेकिन कुछ ही दशकों में वैज्ञानिक शोध और किसानों-मजदूरों के अथक परिश्रम से देश अपनी जरूरतों के साथ-साथ दुनियाभर में खाद्यान्न निर्यात करने लगा. रक्षा क्षेत्र में भारत अन्य देशों की आपत्ति, दखल और सियासी विरोध के बावजूद परमाणु हथियार बनाने में कामयाब रहा. इस सफर पर एक निगाह...

1947-1975 तक: संस्थान बने, दिशा मिली

1947 से 1975 तक देश में आईआईटी, आईआईएम, एम्स, डीआरडीओ और इसरो जैसे कई शीर्ष शिक्षण और शोध संस्थान बनाए गए. आजादी से पहले स्थापित टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR), इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) जैसे संस्थान भी काम कर रहे थे. नेहरू सरकार ने पहली पंच-वर्षीय योजना में ऐसे वैज्ञानिक संस्थानों की नींव रखने को प्राथमिकता दी. कम संसाधनों के बावजूद इन संस्थानों के शोध और प्रयासों से भारत को कुछ अभूतपूर्व सफलताएं मिलीं.

आजादी के बाद देश के सामने भुखमरी, कुपोषण और बीमारियों से हो रही मौतें बड़ी चुनौती थीं. भारत में अनाज की उपज कम थी. देश की जरूरतों के लिए बाहर से अनाज मंगवाना पड़ता था, जो अक्सर निम्न गुणवत्ता का होता था. तब भारत की खेती में ट्रैक्टर जैसी मशीनों का इस्तेमाल न के बराबर था. भारत ट्रैक्टर तक के लिए विदेशों पर निर्भर था.

आजादी के वक्त से ही नेहरू सरकार का जोर था कि खेती में आधुनिक उपकरण इस्तेमाल किए जाएं. इसी सोच के साथ देश में ट्रैक्टर बनाने के लिए 1953 में एचएमटी ट्रैक्टर्स की शुरुआत की गई थी.
आजादी के वक्त से ही नेहरू सरकार का जोर था कि खेती में आधुनिक उपकरण इस्तेमाल किए जाएं. इसी सोच के साथ देश में ट्रैक्टर बनाने के लिए 1953 में एचएमटी ट्रैक्टर्स की शुरुआत की गई थी.तस्वीर: public domain

दूसरी समस्या थी सिंचाई की. इससे निपटने के लिए आजादी के कुछ दिनों बाद ही देश के कई हिस्सों में छोटे-बड़े बांध बनाने का काम शुरू हुआ. इनमें भाखड़ा-नंगल डैम नेहरू सरकार का ड्रीम प्रोजक्ट था. ऐसे बांधों से देश में सिंचित क्षेत्र बढ़ा और बिजली भी मिली. दूसरी तरफ शोध में जुटे भारतीय वैज्ञानिकों (ICAR) ने अनाज, खासतौर पर गेहूं की बेहतर किस्में बनाने पर काम किया. 1980 आते-आते इस हरित क्रांति की सफलता ने भारत को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बना दिया.

ग्रामीण भारत का एक आधार पशुपालन भी था. 70 के दशक में नेशनल डेयरी डेवलेपमेंट बोर्ड (NDDB) के प्रयासों से भारत में 'ऑपरेशन फ्लड' शुरू हुआ. इस मिशन से कभी दूध की कमी वाले देशों में शामिल भारत साल 2000 आते-आते दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक बन गया.

भाखड़ा बांध. 1950 के दशक में बना सिविल इंजीनियरिंग का यह बेजोड़ नमूना उत्तर भारतीय राज्यों की जीवनधारा बना और आज भी है.
भाखड़ा बांध. 1950 के दशक में बना सिविल इंजीनियरिंग का यह बेजोड़ नमूना उत्तर भारतीय राज्यों की जीवनधारा बना और आज भी है.तस्वीर: Keystone/Getty Images

परमाणु शक्ति और अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत धीमे, लेकिन सधे हुए कदमों से आगे बढ़ा. दोनों क्षेत्रों में लाजिम वजहों से अंतरराष्ट्रीय दखल और सियासी खींचतान ज्यादा थी. भारत के परमाणु कार्यक्रम के संस्थापक होमी जहांगीर भाभा और अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक विक्रम साराभाई ने 1947 के आसपास अपने क्षेत्र से जुड़े संस्थानों की नींव रख दी थी. देश की जरूरतों और अंतरराष्ट्रीय राजनीति को ध्यान में रखते हुए भारत ने परमाणु कार्यक्रम पर तेजी से काम किया. लेकिन भारत-चीन युद्ध, नेहरू के निधन और फिर होमी भाभा की एक हादसे में मौत होने की वजह से भारत के परमाणु संपन्न होने का इंतजार खिंचता गया.

मई 1974 में थार रेगिस्तान के पोखरण में ऑपरेशन 'स्माइलिंग बुद्धा' (पोखरण 1) की सफलता ने भारत को परमाणु हथियार संपन्न देश बना दिया. आजादी से इस दिन तक (और आज भी) अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत अपने परमाणु कार्यक्रम को शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए समर्पित बताता रहा है. इस कामयाबी के करीब 24 साल बाद भारत ने ऑपरेशन 'शक्ति' (पोखरण 2) टेस्ट किया और खुद को पूरी तरह परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र घोषित कर दिया.

ऑपरेशन 'पोखरण 2' में परमाणु डिवाइस के परीक्षण स्थल पर बना गड्ढा. भारत सरकार ने यह तस्वीर 17 मई 1998 को जारी की थी.
ऑपरेशन 'पोखरण 2' में परमाणु डिवाइस के परीक्षण स्थल पर बना गड्ढा. भारत सरकार ने यह तस्वीर 17 मई 1998 को जारी की थी. तस्वीर: AFP/epa/picture alliance

1975 आते-आते भारत अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए देश के कई हिस्सों में रिसर्च सेंटर, कम्युनिकेशन सेंटर और स्पेसपोर्ट बना चुका था. 1 अप्रैल 1975 को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को आधिकारिक रूप से- 'इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन' (ISRO) नाम दिया गया. 19 अप्रैल 1975 को भारत ने सोवियत रूस के रॉकेट के जरिये पूरी तरह देश में बनाया अपना पहला सैटेलाइट 'आर्यभट्ट' अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक भेजा. इसके बाद अंतरिक्ष के जरिये टीवी को आमजन तक पहुंचाने के लिए SITE और STEP अभियान चलाए गए. यह दुनिया में अपनी तरह के शुरुआती प्रयोग थे. इनकी सफलता ने 'इंडियन नेशनल सैटेलाइट सिस्टम' (INSAT) का रास्ता खोला.

कर्नाटक के हासन जिले में बना इसरो का मास्टर कंट्रोल रूम.
कर्नाटक के हासन जिले में बना इसरो का मास्टर कंट्रोल रूम. तस्वीर: Jagadessh NV/EPA/picture alliance

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लिए भारत में 1958 में 'डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलेपमेंट ऑर्गेनाइजेशन' (DRDO) की स्थापना की गई. ब्रिटिश राज के दौर की ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियां भारत में काम कर रही थीं, लेकिन DRDO को उन्नत लड़ाकू विमान, आर्टिलरी सिस्टम, टैंक, सोनार, कमांड-कंट्रोल और मिसाइल सिस्टम तैयार करने के लिए बनाया गया था. 1980 के दशक से पहले DRDO को कोई बड़ी सफलता हासिल नहीं हुई और इसके कुछ प्रोजेक्टों को तो बंद तक करना पड़ा. लेकिन बाद में DRDO ने भारत के लिए ब्रह्मोस, पृथ्वी और अग्नि जैसी मिसाइलों की बड़ी रेंज बना ली. 

ब्रह्मोस मिसाइल भारत की सबसे उन्नत मिसाइलों में से है. इसके अलावा DRDO ने इलेक्ट्रॉनिक्स, लाइफ साइंस और एयरो सिस्टम से जुड़े उन्नत उत्पाद बनाए हैं.
ब्रह्मोस मिसाइल भारत की सबसे उन्नत मिसाइलों में से है. इसके अलावा DRDO ने इलेक्ट्रॉनिक्स, लाइफ साइंस और एयरो सिस्टम से जुड़े उन्नत उत्पाद बनाए हैं.तस्वीर: Partha Sarkar/Xinhua/IMAGO

आजाद भारत के सामने कुपोषण, संक्रामक और वेक्टर जनित बीमारियां बहुत बड़ी चुनौती थीं. इनसे भी बड़ी चुनौती थी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों जैसे बुनियादी ढांचे की कमी. 1947 में एक भारतीय की औसत जीवन-संभाव्यता करीब 32 साल थी (आज 70 साल). 1940 के दशक में देश में मलेरिया के मामले हजारों या लाखों में नहीं, बल्कि करोड़ों में हुआ करते थे.

1970 के दशक तक पोलियो देश में फैल चुका था. इसी दशक की शुरुआत में भारत पोलियो की स्वदेशी वैक्सीन बनाने में कामयाब हो गया था. पोलियो के अलावा कुष्ठ के मामलों की संख्या भी बहुत ज्यादा थी. तपेदिक और टेटनेस जैसी बीमारियों, जिनसे वैक्सीन लगाकर बचा जा सकता था, उनसे भी लोगों की मौत हो रही थी.

1975 तक इन बीमारियों से लड़ने के लिए भारत ज्यादातर विदेशी मदद पर निर्भर था. यह स्वास्थ्य स्तर के हिसाब से आजाद भारत का सबसे खराब दौर रहा है. लेकिन इसके बाद भारत ने बड़े स्तर पर संक्रामक रोगों और अन्य बीमारियों को रोकने में कामयाबी पाई. 1975 से पहले देश में स्वास्थ्य से जुड़े संस्थान बनने शुरू हुए और लोगों को ट्रेनिंग मिलनी शुरू हुई.

1975 के बाद: सफल हुए, कारवां जारी

1975 के बाद भारत में बड़े सियासी बदलाव हुए. पहले आपातकाल लागू होना और फिर आजाद भारत के इतिहास में कांग्रेस पार्टी का पहली बार सत्ता से बाहर होना. तेजी से बदलते हालात में भारत के वैज्ञानिक कार्यक्रमों, खासतौर पर परमाणु कार्यक्रम की रफ्तार थोड़ी धीमी जरूर हुई, लेकिन थमी नहीं. चूंकि लगभग हर क्षेत्र में शीर्ष संस्थानों की नींव रखी जा चुकी थी, इसलिए हर क्षेत्र में बदलाव दिखने लगे.

लातूर, महाराष्ट्र में खेती करती महिलाएं.
लातूर, महाराष्ट्र में खेती करती महिलाएं.तस्वीर: Murali Krishnan/DW

खाद्यान्न के क्षेत्र में हरित क्रांति ने भारत में अनाज की कमी को पूरा तो किया ही, निर्यात करने लायक भी बनाया. 1950 के दशक में गेहूं की उपलब्धता प्रति व्यक्ति 66 ग्राम/प्रतिदिन हुआ करती थी. 2000 के दशक में यह बढ़कर प्रति व्यक्ति 160 ग्राम/प्रतिदिन हो गई. ICAR ने देशभर के कृषि विश्वविद्यालयों और रिसर्च सेंटरों के साथ मिलकर फसलों की कई खरपतवार रोधी और कीट रोधी किस्में तैयार की हैं. राष्ट्रीय जीन बैंक बनाया गया, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए बीज सुरक्षित रखे जा सकें. मौजूदा वक्त में रिमोट सेंसिंग, मौसम का पूर्वानुमान और मिट्टी की सेहत जांचने तक की तकनीक उपलब्ध हैं और भारत हर साल रिकॉर्ड उत्पादन कर रहा है. वहीं श्वेत क्रांति का तीसरा और अंतिम चरण 1985 से 2000 तक चला. यहां तक भारत दुनिया के अग्रणी दुग्ध उत्पादकों में शामिल हो चुका था.

2014 में प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही दिनों बाद भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में भारत के परमाणु कार्यक्रम की जानकारी लेते नरेंद्र मोदी.
2014 में प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही दिनों बाद भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में भारत के परमाणु कार्यक्रम की जानकारी लेते नरेंद्र मोदी.तस्वीर: PIB/AFP

परमाणु हथियार बनाने के बाद भारत ने परमाणु ऊर्जा की क्षमता बढ़ाने की कोशिश की. भारत ने अंतरराष्ट्रीय राजनैतिक मंचों पर भी इस मुद्दे पर सफलता हासिल की है. लेकिन तकनीक और उपकरणों के स्तर पर भारत अब भी परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है. इस समय देश में कुल 7 परमाणु ऊर्जा संयंत्र काम कर रहे हैं, जिनकी संख्या बढ़ाकर 16 करने की योजना है.

तमिलनाडु के कूडणाकुलम में बना परमाणु ऊर्जा संयंत्र.
तमिलनाडु के कूडणाकुलम में बना परमाणु ऊर्जा संयंत्र.तस्वीर: Nathan G/EPA/picture alliance

अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत ने 1975 के बाद से बाकमाल सफलता हासिल की है. भास्कर 1, भास्कर 2, इनसैट-2B, IRS-1C, इनसैट-3B जैसे सैटेलाइटों को अगले 25 साल में लॉन्च किया गया. इस बीच 1984 में वह पल भी आया, जब राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय बने.

अंतरिक्ष से लौटकर मीडिया से बातचीत करते भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा. उनके साथ हैं रूसी अंतरिक्ष यात्री यूरी मालशेव.
अंतरिक्ष से लौटकर मीडिया से बातचीत करते भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा. उनके साथ हैं रूसी अंतरिक्ष यात्री यूरी मालशेव.तस्वीर: Alexander Moklesov/SNA/IMAGO

2000 तक भारत लॉन्च व्हीकल PSLV का सफल परीक्षण कर चुका था. फिर 2008 में बड़ा मौका आया, जब भारत ने चंद्रमा तक अपना पहला मिशन भेजा- चंद्रयान-1. भारत ऐसा करने वाला पांचवां देश बना. इसके बाद भारत अन्य देशों के सैटेलाइट भी अंतरिक्ष में ले जाने लगा.

भारत का मंगलयान. यह दुनिया में मंगल तक जाने वाला सबसे किफायती मिशन था.
भारत का मंगलयान. यह दुनिया में मंगल तक जाने वाला सबसे किफायती मिशन था.तस्वीर: Indian Space Research Organization/EPA/picture alliance

अगला बड़ा मौका था 2013 में लॉन्च हुआ मंगल मिशन- मंगलयान, जो 9 महीने की यात्रा के बाद मंगल की परिधि तक पहुंच गया. अंतरिक्ष उड़ानों के खर्च के लिहाज से यह बहुत ही किफायती मिशन था. 2017 में इसरो का लॉन्च व्हीकल PSLV-C37 एक साथ 104 सैटेलाइट लेकर गया, जो उस वक्त एक रिकॉर्ड बना. 2018 में भारत ने गगनयान मिशन की घोषणा की, जिसमें भारत अंतरिक्ष यात्रियों को धरती की उपकक्षा तक ले जाएगा और सफलतापूर्वक वापस लाएगा. भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को देश के वैज्ञानिक सफर की सबसे चमकदार सफलता कहा जा सकता है. 

भारत के मंगल मिशन (मार्स ओर्बिटर स्पेसक्राफ्ट) पर काम करते ISRO के इंजीनियर.
भारत के मंगल मिशन (मार्स ओर्बिटर स्पेसक्राफ्ट) पर काम करते ISRO के इंजीनियर.तस्वीर: Xinhua/IMAGO

अंतरिक्ष और परमाणु क्षेत्र जैसे जटिल क्षेत्रों के लिए भारत में सुपर कंप्यूटर भी विकसित किए गए हैं. इस समय देश का सबसे तेज सुपर कंप्यूटर ‘परम सिद्धि एआई' है. वैज्ञानिक इसका इस्तेमाल- उन्नत मैटीरियल, एस्ट्रोफिजिक्स, कंप्यूटेशनल कैमिस्ट्री, स्वास्थ्य और मौसम पूर्वानुमान जैसे संवेदनशील कामों में किया जाता है.

2005 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की सुपर कंप्यूटिंग फैसिलिटी में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह.
2005 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की सुपर कंप्यूटिंग फैसिलिटी में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह.तस्वीर: TC Malhotra/ZUMA Press/IMAGO

जीव विज्ञान के क्षेत्र में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग तकनीक भारत में जीव विज्ञान की बड़ी सफलताओं में से है. 1988 में भारतीय वैज्ञानिक लालजी सिंह और उनकी टीम (CSIR-CCMB) ने डीएनए तकनीक विकसित की, जिसे अदालतों में एक पुख्ता सबूत के तौर पर माना जाने लगा. आज बहुत से पारिवारिक विवाद और अपराधिक मामले सुलझाने में इस कमाल की तकनीक का इस्तेमाल दुनियाभर में हो रहा है.

स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत ने 1975 के बाद बड़ी सफलताएं हासिल की हैं. 1975 के बाद भारत में बड़े स्तर पर टीकाकरण अभियान (EIP और UIP) शुरू किया गया. बाद में यह कार्यक्रम आज के वृहद अभियान- राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का हिस्सा बने. नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और इम्यूनोलॉजी जैसे संस्थान स्थापित किए गए, ताकि देश में ही स्वास्थ्य विज्ञान पर बेहतर शोध हो सके. ICMR की देखरेख में शोध संस्थानों ने 1980 के दशक में खसरा, पोलियो, बीसीजी, हेपाटाइटिस बी और स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियों की वैक्सीन तैयार की.

भारत के टीककरण अभियान का आधारभूत ढांचा इतना मजबूत हो चुका है कि आज देश की लगभग हर पंचायत तक इसकी पहुंच है.
भारत के टीककरण अभियान का आधारभूत ढांचा इतना मजबूत हो चुका है कि आज देश की लगभग हर पंचायत तक इसकी पहुंच है.तस्वीर: Arun Sankar/AFP/Getty Images

2011 में भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया गया. कुष्ठ रोग के मामले बहुत गिर गए और टीकाकरण बच्चों की परवरिश का हिस्सा बन गया. हाल में कोविड महामारी के दौरान वैक्सीन पर शोध, उत्पादन और 200 करोड़ टीकाकरण भारत के टीकाकरण कार्यक्रम की सफलता और मजबूत बुनियाद दिखाता है.

भारतीय संविधान में दर्ज मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों का भी जिक्र है. इनमें से एक कर्तव्य है वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना. यह यात्रा लंबी अवश्य है, किंतु अनंत नहीं. जन-कल्याण के साथ-साथ वैज्ञानिक उपलब्धियां इस लंबी यात्रा का रोमांच भी बनाए रखती हैं. 

चांद के दूसरी तरफ भी मिला पानी