1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

चीन से बढ़ते आयात पर भारत खुश हो या चिंतित!

विवेक कुमार
१९ सितम्बर २०२४

चीन से भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है. चीनी आयात बढ़ने से भारत चिंतित तो है लेकिन चीन पर निर्भरता उसकी मजबूरी भी है और एक तरह से भविष्य के लिए निवेश भी.

https://p.dw.com/p/4kouE
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
तस्वीर: Indian PM's Office/AP/picture alliance

पिछले हफ्ते जब भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत और चीन के बीच आर्थिक संबंधों में संतुलन की कमी है और व्यापार घाटा बढ़ रहा है, तब भारत सरकार चीनी कंपनियों को भारत में निवेश और निर्यात करने के लिए और ज्यादा सुविधाएं देने पर विचार कर रही थी.

जयशंकर ने जिनेवा में ग्लोबल सेंटर फॉर सिक्योरिटी पॉलिसी में एक भाषण के दौरान कहा, "हमें लगता है कि चीन के साथ आर्थिक संबंध बहुत ही अन्यायपूर्ण और असंतुलित रहे हैं. वहां हमारे समान को बाजार में पहुंच नहीं मिलती, जबकि चीन को भारत में बहुत बेहतर बाजार पहुंच प्राप्त है.”

जयशंकर की यह शिकायत आंकड़ों में बहुत साफ नजर आती है. बीते वित्त वर्ष में चीनी आयात 100 अरब डॉलर को पार कर गया और इस साल इसके और बढ़ने की संभावना है. इसके उलट पिछले वित्त वर्ष में भारत ने चीन को मुश्किल से 16 अरब डॉलर का निर्यात किया था. वित्त वर्ष 2024-25 के पहले सात महीनों में चीन से आयात 60 अरब डॉलर को पार कर चुका है, जो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 10 फीसदी ज्यादा है.

बढ़ते व्यापार घाटे से चिंता

इस व्यापार घाटे को लेकर भारत चिंतित तो है लेकिन इसके बावजूद सरकार चीन पर हाल के सालों में लगाए गए कई प्रतिबंधों को ढीला करने की योजना बना रही है. हाल ही में समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने खबर दी थी कि भारत सरकार अब एक नई योजना पर काम कर रही है जिसमें 10 फीसदी तक चीनी हिस्सेदारी वाले निवेशक को अब सरकारी मंजूरी की जरूरत नहीं होगी. इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आसानी से भारत में निवेश करने में मदद मिलेगी.

सरकार सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए एक ‘पोस्ट-इन्वेस्टमेंट मॉनिटरिंग' ढांचा भी स्थापित करने की योजना बना रही है. इस कदम से भी चीनी निवेशक भारत की ओर आकर्षित होंगे, जो विशेषज्ञों के मुताबिक भारत को उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों जैसे सौर सेल, ईवी और बैटरी निर्माण में वैश्विक सप्लाई चेन में शामिल होने के लिए महत्वपूर्ण है.

भारत ने पहले ही चीनी नागरिकों के लिए वीजा जारी करने की प्रक्रिया को आसान किया है और उन क्षेत्रों के लिए चीनी इंजीनियरों की वीजा मंजूरी की रफ्तार बढ़ाई है जिन्हें स्थानीय उत्पादन के लिए केंद्रीय सब्सिडी मिलती है.

दुविधा के दौर में भारत

दरअसल, चीन को लेकर भारत इस समय दुविधा के दौर में है. एक तरफ उसके भू-राजनीतिक विवाद हैं जो उसे चीन से दूरी बढ़ाने और प्रतिबंध लगाने पर मजबूर करते हैं, जबकि दूसरी तरफ उसकी ग्लोबल फैक्ट्री बनने की महत्वाकांक्षाएं हैं जिनके लिए उसे कच्चा माल, निवेश और आधुनिक तकनीक तीनों की जरूरत है, जिसका सबसे बड़ा और सस्ता सप्लायर चीन है.

डॉ. शाउन रे इंटरनेशनल काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इकोनॉमिक रिलेशंस में विजिटिंग प्रोफेसर हैं और अंतरराष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञ हैं. वह कहती हैं कि फिलहाल, चीन के बिना काम करना मुमकिन नहीं है. उन्होंने डॉयचे वेले हिंदी से बात करते हुए कहा, "भारत के घरेलू बाजार में मांग बढ़ रही है, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग्रीन इकोनॉमी से जुड़े उत्पादों की भी मांग बढ़ रही है, जैसे कि सोलर एनर्जी, बैटरी और इलेक्ट्रिक वाहन. इसके लिए, भारत को कच्चे माल, निवेश और तकनीक की जरूरत है. समस्या ये है कि चीन अभी सबसे सस्ता सप्लायर है, और व्यापार का सिद्धांत है कि हमें सबसे कम कीमत पर विभिन्न उत्पाद चाहिए. इसलिए फिलहाल, कुछ समय के लिए चीन पर निर्भरता टालना मुश्किल है."

चीन पर निर्भरता बहुत से देशों की चिंता है और इसे कम करने के लिए जर्मनी जैसे देशों की कंपनियांकई उपाय कर रही हैं. हाल के सालों में भारत ने अपने यहां निर्माण और उत्पादन की क्षमता में तेजी से वृद्धि की है. जुलाई में खत्म हुई तिमाही में औद्योगिक उत्पादन में सालाना आधार पर 4.8 फीसदी की वृद्धि हुई. मैन्युफैक्चरिंग में 4.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसमें विशेष रूप से इलेक्ट्रिकल उपकरण (28.3 प्रतिशत), मशीनरी और उपकरणों को छोड़कर तैयार धातु उत्पाद (11 फीसदी) और अन्य परिवहन उपकरण (25.5 फीसदी) में बड़ी वृद्धि देखी गई.

‘मेक इन इंडिया' योजना के तहत भारत ने विदेशी कंपनियों को भारत में निर्माण के लिए पूरे जोर-शोर से आमंत्रित किया है. इसमें कामयाबी भी मिली है. जैसे कि एप्पल के आईफोन को भारत में बनाने के लिए तैयार किया गया. लेकिन इस तरह की योजनाओं में भी पृष्ठभूमि में चीन की मौजूदगी रही है. एप्पल भारत में निर्माण के लिए तब राजी हुआ जब चीनी सप्लायरों और भारतीय कंपनियों के बीच संयुक्त उपक्रमों को मंजूरी मिली. इसके चलते एप्पल ने आईफोन असेंबली का 14 फीसदी कारोबार भारत में स्थानांतरित कर दिया.

इस बात को अब उद्योग जगत भी समझ रहा है जो काफी समय तक चीन से आयात पर सख्ती बरतने का समर्थक रहा है. जिंदल स्टील एंड पावर के प्रमुख और सांसद नवीन जिंदल ने चीनी स्टील पर टैक्स का समर्थन किया है लेकिन व्यापार के लिए एक व्यावहारिक नजरिया अपनाने की बात कही है. हाल ही में मीडिया से बातचीत में जिंदल ने कहा, "बहुत सी स्टील कंपनियां चीन से उपकरण और टेक्नॉलोजी आयात करती हैं. चीन स्टील का सबसे बड़ा उत्पादक है और कुछ क्षेत्रों में वे बहुत अच्छे हैं.”

एक तरह का निवेश है व्यापार घाटा

विशेषज्ञ मानते हैं कि इस वक्त अगर चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ रहा है तो इसे भविष्य के लिए एक निवेश भी माना जा सकता है. डॉ. शाउन रे सौर ऊर्जा उद्योग की मिसाल देती हैं, जिसमें भारत ने उत्पादन बढ़ाने पर विनिर्माताओं को अतिरिक्त सुविधाएं देने के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई)  जैसी योजना लागू कर रखी है.

डॉ. रे कहती हैं, "सौर ऊर्जा से अधिक बिजली पैदा करने के लिए हमें सोलर सेल, बैटरी और मॉड्यूल की जरूरत है. पहले, हम ये सब चीन से आयात करते थे. प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना शुरू होने के बाद, भारत में उत्पादन बढ़ा है. लेकिन सच ये है कि घरेलू उत्पादन अभी भी मांग को पूरा नहीं कर रहा है, जो कि भारत के नेट जीरो लक्ष्यों को पूरा करने के लिए और बढ़नी चाहिए. और अब हम सुन रहे हैं कि इस क्षेत्र में चीनी निवेश को मंजूरी दी जा रही है."

ट्रंपोनॉमिक्स का भारत जैसे देशों पर क्या होगा असर?

डॉ. रे यह भी बताती हैं कि हालांकि चीन से आयात बढ़ा है, लेकिन इसकी प्रकृति बदल गई है. वह कहते हैं, "पहले, हम घरेलू बाजार की मांग को पूरा करने के लिए आयात करते थे, जैसे प्लास्टिक उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक्स, रसायन और साधारण उत्पाद. अब, अधिकांश आयात औद्योगिक उत्पादों से संबंधित है. ये उत्पाद चीन को निर्यात नहीं हो सकते, लेकिन भारत अन्य देशों के साथ जुड़ने की कोशिश कर रहा है, जिससे भारत का निर्यात उन देशों को बढ़ेगा. इस दृष्टिकोण से, छोटी अवधि में बजट घाटा होना अनिवार्य है,"

भविष्य की चुनौतियां

चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे को लेकर विशेषज्ञ दो चुनौतियों की ओर ध्यान दिलाते हैं. एक तो भारतीय बाजार में चीनी मांग का लगातार बढ़ते जाना. 2020 में सीमा पर हुए तनाव के बाद भारत ने चीनी कंपनियों पर कई तरह की पाबंदियां लगाई थीं. लेकिन उससे भारतीय बाजार में चीनी उत्पादों की मांग कम नहीं हुई, उलटा भारत में निवेश कम हो गया. दूसरी चुनौती चीन पर लंबे समय तक निर्भरता से जुड़े खतरे हैं, क्योंकि कोविड महामारी में दुनिया ने यह सीखा है कि सप्लाई चेन के लिए एक ही देश पर निर्भर रहना खतरनाक हो सकता है. इसके अलावा सुरक्षा के खतरे भी हैं, जिस कारण विभिन्न देश चीनी उत्पादों पर प्रतिबंध लगा रहे हैं. जैसे कि भारत ने चीन से ड्रोन विमानों के पुर्जे आयात करने पर पिछले साल प्रतिबंध लगा दिया था.

डॉ. रे कहती हैं हैं, "भारत को छोटी और लंबी अवधि के फायदे और नुकसान के बारे में सोचना चाहिए. ध्यान हमारी खुद के क्षमताओं को बढ़ाने और लागत को कम करने पर होना चाहिए. जरूरी है कि भारत की खुद की क्षमताएं बढ़ें, तभी चीन पर निर्भरता कम होगी. और यह एक व्यवस्थित तरीके से किया जाना चाहिए, यह सोचकर कि छोटी और मध्य अवधि में क्या हासिल किया जा सकता है."

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी