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ब्रिक्स सम्मेलन: क्या है पीएम मोदी की रूस यात्रा का मकसद

चारु कार्तिकेय
२१ अक्टूबर २०२४

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स देशों के 16वें शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने एकबार फिर रूस जा रहे हैं. वह 22 अक्टूबर को दो-दिवसीय यात्रा के लिए रूस रवाना होंगे. चार महीने में पीएम मोदी की यह दूसरी रूस यात्रा है.

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जोहानिसबर्ग में हुए 15वें ब्रिक्स सम्मेलन में मोदी और अन्य नेता मंच पर
इस बार ब्रिक्स सम्मेलन में नए सदस्य देशों का स्वागत किया जाएगातस्वीर: Prime Ministers Office/Zuma Press/picture alliance

ब्रिक्स के 16वें शिखर सम्मेलन की मेजबानी रूस कर रहा है. मॉस्को की अध्यक्षता में सम्मेलन का आयोजन रूस के कजान शहर में किया जा रहा है. सम्मेलन की थीम है, "न्याय संगत वैश्विक विकास और सुरक्षा के लिए बहुपक्षवाद को मजबूत करना."

भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि इस शिखर सम्मेलन में संगठन द्वारा की गई पहलों की तरक्की की समीक्षा का एक मौका मिलेगा. साथ ही, भविष्य में साथ मिलकर काम करने के लिए क्षेत्रों को चिह्नित करने का भी अवसर मिलेगा.

दमखम दिखाना चाहता है रूस?

सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अलावा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोवान और ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकीयान भी भाग लेंगे.

मॉस्को में पत्रकारों से बात करते हुए पुतिन
ब्रिक्स सम्मेलन में पुतिन 20 द्विपक्षीय बैठकों में हिस्सा लेंगेतस्वीर: yacheslav Prokofyev/Sputnik/Pool via REUTERS

ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा इस बार सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे. एएफपी के मुताबिक उनके कार्यालय ने बताया कि उनके सिर पर चोट लगी है, जिस वजह से वो रूस नहीं जा पाएंगे. कार्यालय ने यह नहीं बताया कि उन्हें चोट कैसे लगी, लेकिन ब्राजील की स्थानीय मीडिया के मुताबिक लूला बाथरूम में गिर गए थे.

इसी साल शुरू हुए ब्रिक्स के विस्तार के क्रम में ईरान, मिस्र, इथियोपिया, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और सऊदी अरब भी ब्रिक्स के सदस्य बन गए हैं. तुर्की, अजरबैजान और मलेशिया ने भी सदस्यता लेने के लिए आवेदन किया हुआ है.

जानकारों का मानना है कि रूस इस समय बैठक की मेजबानी कर पश्चिमी देशों को यह दिखाना चाहता है कि यूक्रेन युद्ध के बीच भी दुनिया के कई बड़े देश रूस के सहयोगी बने हुए हैं.

राष्ट्रपति पुतिन के विदेशी मामलों के सलाहकार यूरी उषाकोव का कहना है कि 32 देशों ने सम्मेलन में हिस्सा लेने की पुष्टि की है और 20 से भी अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्ष इसमें भाग लेंगे. उषाकोव के मुताबिक, पुतिन करीब 20 द्विपक्षीय बैठकें करेंगे और यह सम्मेलन रूस में होने वाला "इतिहास में सबसे बड़ा विदेश नीति कार्यक्रम" बन सकता है. 

मोदी की इस साल दूसरी रूस यात्रा

भारत-रूस संबंधों के परिप्रेक्ष्य में देखें, तो चार महीने में पीएम मोदी दूसरी बार रूस जा रहे हैं. इससे पहले वह जुलाई में मॉस्को गए थे. उनके और पुतिन के बीच काफी गर्मजोशी दिखाई दी थी. पुतिन को गले लगाते हुए उनकी तस्वीरों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई और यूक्रेन समेत पश्चिमी देशों ने आलोचना भी की थी.

एक दूसरे को गले लगाते मोदी और पुतिन
जुलाई में मोदी रूस गए थे और पुतिन से कई विषयों पर बातचीत की थीतस्वीर: Gavriil Grigorov/Sputnik/Kremlin Pool Photo via AP/picture alliance

हालांकि, इसके एक महीने बाद अगस्त में मोदी यूक्रेन भी गए और राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेंस्की से मिले. इसे यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में भारत की तरफ से संतुलन का संदेश देने की कोशिश के तौर पर देखा गया. इसके बाद सितंबर में मोदी अमेरिका गए और राष्ट्रपति जो बाइडेन से हुई मुलाकात में उन्होंने अपनी रूस यात्रा का भी जिक्र किया.

कई देशों को उम्मीद है कि पुतिन से नजदीकी के कारण भारत यूक्रेन युद्ध में मध्यस्थता कर सकता है, लेकिन नई दिल्ली ने अभी तक औपचारिक रूप से इस दायित्व को स्वीकार नहीं किया है.

सिंगापुर में स्थित 'इंस्टिट्यूट ऑफ साउथ एशियाई स्टडीज' में प्रोफेसर राजा मोहन ने समाचार एजेंसी एपी से बातचीत में कहा कि भारत, रूस का साथ नहीं छोड़ सकता है, लेकिन "वह अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों से रिश्ते बना और बढ़ा रहा है क्योंकि भारत का आर्थिक विकास और तकनीकी विकास इन साझेदारियों पर निर्भर करता है."

'स्विफ्ट का विकल्प'

लंदन के 'चाथम हाउस' में दक्षिण एशिया के सीनियर रिसर्च फेलो क्षितिज वाजपेयी का कहना है कि भारत और ब्राजील, ब्रिक्स को मुख्य रूप से एक आर्थिक दृष्टिकोण से देखते हैं जिसका उद्देश्य है अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में शक्ति के अधिक समान वितरण को बढ़ावा देना, जबकि "चीन और रूस इसे एक भूराजनीतिक मंच की तरह देखते हैं."

रूस ने कहा है कि ब्रिक्स देश एक ऐसी भुगतान व्यवस्था में भाग लें, जो वैश्विक बैंक मेसेजिंग नेटवर्क 'स्विफ्ट' का विकल्प बन सके, जिसकी बदौलत मॉस्को अपने साझेदारों के साथ पश्चिमी प्रतिबंधों की चिंता किए बिना व्यापार कर सके.

'कार्नेगी रूस यूरेशिया सेंटर' के निदेशक अलेक्जेंडर गाबुयेव ने एपी को बताया, "रूस का मानना है कि अगर आप ऐसा मंच बना दें जहां चीन, रूस, भारत, ब्राजील और सऊदी अरब हों - इनमें से कई ऐसे देश हैं जो अमेरिका के लिए बेहद जरूरी साझेदार हैं - तो वॉशिंगटन इस मंच पर प्रतिबंध लगाने से कतराएगा.