कुदरती हीरों पर भारी पड़ते लैब में बने हीरे
२१ फ़रवरी २०२४लैब में तैयार चमचमाते हीरे वैसे ही चमकते हैं जैसे कुदरती हीरे, लेकिन उनमें प्रमुख अंतर हैं- खनन किए गए प्राकृतिक हीरे एक अरब साल से अधिक पुराने हैं, जबकि लैब में बने हीरे नए हैं और उनकी कीमत आधी होती है.
इंसानों द्वारा बनाए गए हीरे 89 अरब डॉलर के वैश्विक हीरे के आभूषण बाजार को नया आकार दे रहे हैं, खासकर पश्चिम भारतीय शहर सूरत में जहां दुनिया के 90 प्रतिशत हीरे काटे और पॉलिश किए जाते हैं.
सूरत में स्थित 'ग्रीन लैब डायमंड्स' लैब में रिएक्टरों में भी हीरे का उत्पादन किया जाता है. इन रिएक्टरों में हवा का दबाव भूमिगत हीरे की खदानों के समान है.
पसंद आ रहे हैं लैब में बने हीरे
लैब में काम करने वाले टेकनिशियन हीरे के बीज को बिस्किट की तरह प्रोप्राइटरी चैंबर में रखते हैं. चैंबर में तापमान को 13 से 15 सौ डिग्री सेंटीग्रेड तक ले जाने पर मीथेन गैस के अणु टूट जाते हैं और उससे निकला कार्बन एक दूसरे से जुड़ने लगता है.
यह कार्बन चैंबर में रखे बीज के साथ जुड़ने लगता है और परत दर परत हीरा बनने लगता है. हीरे कार्बन से बने होते हैं, लेकिन उसके एटम एक टाइट क्रिस्टल स्ट्रक्चर में बंधे होते हैं. इसलिए यह धरती पर सबसे सख्त और सबसे ज्यादा संवाहक तत्व होता है.
ग्रीन लैब डायमंड्स के निदेशक स्मिथ पटेल का मानना है कि इन कीमती पत्थरों को लैब में बनाना ही हीरा उद्योग का भविष्य है.
पटेल की टीम को एक हीरा बनाने में आठ सप्ताह से भी कम समय लगता है, और उनके बनाए हीरे और प्राकृतिक हीरे के बीच अंतर करना मुश्किल है. पटेल कहते हैं, "यह एक ही चीज है, (एक ही रसायन से बना है) और उसमें वही ऑप्टिकल गुण हैं."
प्राकृतिक हीरों की घटती मांग
ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2019 और 2022 के बीच भारत से लैब में तैयार हीरों का निर्यात मूल्य के मामले में तीन गुना हो गया. पिछले साल अप्रैल से अक्टूबर के बीच ऐसे हीरों के निर्यात की मात्रा में 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई.
हीरा उद्योग के विश्लेषक पॉल सिमनिस्की ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि मूल्य के लिहाज से लैब में तैयार ऐसे रत्नों की वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी 2018 में 3.5 प्रतिशत थी, जो 2023 में बढ़कर 18.5 प्रतिशत हो गई. उनके मुताबिक इस साल यह दर शायद 20 फीसदी से भी ज्यादा हो जाएगी.
हीरा उद्योग के विश्लेषक एडन गोलान के मुताबिक पिछली फरवरी में अमेरिका में बेची गई सगाई की अंगूठियों में से 17 प्रतिशत में लैब में विकसित हीरे थे. उनका अनुमान है कि यह दर अब बढ़कर 36 फीसदी हो गई होगी.
सिमनिस्की कहते हैं, "जहां तक इंसान द्वारा बनाए जाने वाले हीरे का सवाल है तो यह तकनीक 50 और 60 के दशक से मौजूद है." लेकिन हीरे को सपने की तरह बेचने वाले उद्योग ने काफी समय तक इस संभावना का इस्तेमाल नहीं किया.
उन्होंने कहा कोई चार पांच साल पहले इस तकनीक में प्रगति दिखनी शुरू हुई और जवाहरात की क्वॉलिटी के हीरों का उत्पादन शुरू हुआ. अब उसकी क्वॉलिटी इतनी अच्छी थी कि उसका इस्तेमाल गहनों में किया जा सकता था.
निर्माता दावा करते हैं कि उनके हीरे कम कार्बन लागत पर आते हैं, हालांकि इस बारे में सवाल हैं कि क्या ऊर्जा-गहन प्रक्रिया पर्यावरण के लिए बेहतर है. कुदरती हीरों के विरोधी कहते हैं कि हीरा खदानें जलवायु के लिए नुकसानदायक हैं और कथित खूनी-हीरों से धन विवादग्रस्त इलाकों में जाता है.
पटेल ने कहा कि उनकी प्रयोगशाला स्थानीय ग्रिड से सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करती है, हालांकि अन्य लैब कार्बन पैदा करने वाली स्रोतों से बिजली लेती हैं.
एए/वीके (एएफपी)