दुनिया भर से अलग हैं नेपाल की 'कुंग फु' ननें
एक हजार साल पुराने नेपाल के द्रुक अमिताभ मठ को कोविड-19 महामारी के दौरान बंद कर दिया गया था. मठ के दरवाजे पांच साल बाद हाल ही में जनता के लिए खुले हैं. इस मौके पर यहां की ननों ने कुंग फु का हुनर दिखाया.
सालों बाद खुले मठ के दरवाजे
द्रुक अमिताभ मठ को कोविड-19 महामारी के दौरान बंद करना पड़ा था और अब जाकर पांच सालों बाद इसके दरवाजे खोले गए हैं. मठ को फिर से खोलने के समारोह में करीब एक दर्जन ननों ने मार्शल आर्ट कुंग फु के अपने हुनर का प्रदर्शन किया.
एक अनूठा बौद्ध मठ
द्रुक्पा वंश ननों को पुरुष साधुओं के बराबर का दर्जा देता है. इसे पितृसत्तात्मक बौद्ध मठों की दुनिया में एकलौता महिला मठ माना जाता है. द्रुक्पा वंश करीब एक हजार साल पुराना माना जाता है.
महिलाएं को मार्शल आर्ट सीखने की मनाही
अमूमन, ननों से खाना पकाने और साफ सफाई का काम करने की उम्मीद की जाती है और उन्हें किसी भी तरह के मार्शल आर्ट को सीखने की इजाजत नहीं दी जाती है.
एक ऐतिहासिक फैसला
लेकिन वरिष्ठ बौद्ध साधू ग्यालवांग द्रुक्पा ने फैसला किया कि वो महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार और आध्यात्मिक कल्याण के लिए उन्हें कुंग फु सिखाएंगे. तिब्बती बौद्ध परंपरा में साधू ग्यालवांग द्रुक्पा का दर्जा दलाई लामा से थोड़ा ही नीचे है.
फल फूल रही है ग्यालवांग द्रुक्पा की सोच
ग्यालवांग द्रुक्पा ने साल 2009 में यह ननरी खोली और आज इसके करीब 300 सदस्य हैं. सदस्यों की उम्र छह साल से लेकर 54 साल के बीच बताई जाती है. मार्शल आर्ट सीखने के लिए कम से कम 9 साल का होना चाहिए.
भारत से भी हैं ननें
यहां की ननें भारत, नेपाल और भूटान जैसे देशों से हैं. भारत के लद्दाख से आईं 23 साल की नन जिग्मे जांगचुब चोस्दोन कहती हैं, "हम कुंग फु खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से फिट रखने के लिए करते हैं और हमारा लक्ष्य महिलाओं के सशक्तिकरण और लैंगिक बराबरी को आगे बढ़ाना है."
समाज के लिए योगदान
इन ननों ने इससे पहले आपदा राहत के लिए धन जुटाने के लिए और पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिए हिमालय के पहाड़ों में पैदल और मोटरसाइकिल पर लंबी यात्राएं भी की हैं. सीके/आरपी (रॉयटर्स)