बोको हराम से भाग रहे बच्चे खोज रहे हैं परिवारों को
३१ जनवरी २०१७घुटने और पांव के बीच लंबे जख्म पर अंगुलियां फेरते हुए 13 साल का उसमान उस घड़ी को याद करता है जब उसे लगा था कि वह बचेगा नहीं. उसमान पिछले साल अपने गांव पर बोको हराम के हमले के बाद अपनी मां के साथ भाग रहा था जब दो लड़ाकों ने उसे ठोकर मार कर नीचे गिरा दिया और छुरा लिए उसकी ओर बढ़े.
उसमान ने बताया, "मैं डर गया था कि मैं मर रहा हूं और अपनी मां को फिर कभी नहीं देख पाउंगा." वह बताता है कि कैसे वह रेंगकर बामा शहर के विस्थापितों के केंद्र तक पहुंचा. यह कैंप बोर्नो प्रांत में है जो सात साल से इस्लामिक राज्य बनाने के लिए चल रहे जिहादी युद्ध का केंद्र है. दो महीने तक तक उसमान को मां का कोई पता नहीं चला. फिर राहतकर्मी अच्छी खबर ले कर आए. उसकी मां को उन्होंने उसमान के मामा के घर से खोज निकाला था.
देखिए कहां कहां बच्चों के हाथों में बंदूक है
उसमान जैसे 30,000 बच्चे बोको हराम की लड़ाई के कारण अपने परिवार खो चुके हैं या उनसे बिछड़ चुके हैं. बोको हराम से भागने के चक्कर में करीब 20 लाख लोग बेघर हो गए हैं. संयुक्त राष्ट्र बाल संस्था यूनिसेफ के अनुसार इनमें से करीब दो तिहाई बच्चों की परवरिश अपने रिश्तेदारों के यहां हो रही है जबकि करीब 10,000 खुद अपना ख्याल रखने को मजबूर हैं.
जीविका के लिए दूसरों पर निर्भरता के कारण राहतकर्मी इन बच्चों के परिवारों को खोजने की कोशिश कर रहे हैं ताकि उन्हें माता पिता से मिलवाया जा सके. लेकिन परिवार के लोगों को खोजना आसान नहीं. कई बार तो इसमें कई महीने लग जाते हैं. और इसके दौरान उन्हें अक्सर बाल विवाह, यौन शोषण या जबरी मजदूरी का शिकार होना पड़ता है. यूनिसेफ में बाल सुरक्षा के प्रमुख रैचेल हार्वे कहती हैं, "बच्चे जीने के लिए भीख मांगने, फेरी लगाने या अपना जिस्म बेचने का सहारा ले सकते हैं."
परिवार की खोज
जब कोई बच्चा अपने माता पिता के बिना कैंप में या समुदाय में पहुंचता है तो उन्हें फौरन स्थानीय राहत संस्थाओं के पास भेज दिया जाता है. ये संस्थाएं परिवारों को खोजने और बच्चों को उनसे मिलाने का प्रोग्राम चलाती हैं.
देखिए बच्चों पर कितना भारी पड़ता है युद्ध
राहतकर्मी और वोलंटीयर बच्चों से उनके परिवार के बारे में जितनी संभव हो उतनी जानकारी इकट्ठा करते हैं. इस जानकारी को वे अपने साथियों के साथ साझा करते हैं जो एक कैंप से दूसरे कैंप में और एक शहर से दूसरे शहर मे जाते हैं. वहां वे उन बच्चों के नाम पढ़ते हैं और उनके परिवारों के बारे में सूचना जुटाने की कोशिश करते हैं.
बोको हराम की वजह से विस्थापित हुए 18 लाख लोग कैंपों में रहने के बदले छह प्रांतों में विभिन्न समूहों में रहते हैं, इसलिए बच्चों के परिवारों को खोजने का काम मुश्किल और समय लेने वाला होता है.
इंटरनेशनल रेड क्रॉस सोसायटी की मिरियम अल खतीब का कहना है, "रिश्तेदारों को विस्थापितों के कैंपों में खोजना बहुत आसान होता है क्योंकि वहां लोग अपने गांवों के हिसाब से साथ रहने की कोशिश करते हैं. रेड क्रॉस के परिवार मिलन प्रोग्राम की संयोजक अल खतीब कहती हैं, "कैंपों के बाहर विस्थापन का पैटर्न बेतरतीब है और बहुत से ऐसे इलाके हैं जहां हम लड़ाई के कारण जा नहीं सकते."
भूख दोषी है या युद्ध, देखिए
माता पिता का पता चल जाने और उन्हें उनके बच्चों के बारे में बता दिए जाने के बाद भी उन्हें मिलाना हमेशा आसान नहीं होता. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की सातराख अदावारा के अनुसार बच्चों के मौजूदा अभिभावक उन्हें छोड़ने को तैयार नहीं होते. कोई बच्चों से काम लेता है तो कोई उनकी शादी कराकर कमाना चाहता है.
खुशी के आंसू
कुछ मामले ऐसे भी होते हैं जब बच्चे ही अपने माता पिता या रिश्तेदारों के पास जाने से मना कर देते हैं. उनके परिवारों को खोजने वाले वोलंटियरों के अनुसार इसके कई कारण हो सकते हैं. कुछ बच्चे घर पर हुई मार पिटाई के कारण वापस नहीं जाना चाहते तो कुछ बच्चे वापस लौटकर अपने परिवारों पर बोझ नहीं बनना चाहते.
बोको हराम द्वारा बंधक बनाई गई लड़कियों में एक 17 वर्षीय फातिमा जब दो साल बाद अपहर्ताओं के चंगुल से भागी तो वह गर्भवती थी. वह जब मां से मिली तो दोनों खूब रोये, क्योंकि दोनों ने एक दूसरे को मरा हुआ समझ लिया था. लेकिन फातिमा ने जल्द ही महसूस किया कि वह और उसका बेटा अपनी मां और भाई बहनों के साथ नहीं रह सकते. "मैंने गरीबी और मां की जिम्मेदारियां देखी. और मैंने फैसला किया कि हमारा बकासी के कैंप में बड़े भाई के साथ रहना ठीक रहेगा."
देखिए सबसे खतरनाक स्कूल
फातिमा अपने भाई के पास जाकर खुश है. लेकिन वह बहुत ही कम खुशनसीबों में शामिल है. यूनीसेफ के आंकड़ों के अनुसार अब तक अकेले रहने वाले 32,000 बच्चों में से सिर्फ 400 को उनके परिवारों के साथ मिलाया जा सका है.
रेड क्रॉस की अल खतीब कहती हैं, "ये बहुत ही निराशाजनक हो सकता है क्योंकि इसमें काफी समय लगता है, लेकिन यदि आप परिवारों की भावनाएं देखें, चाहे वह खुशी के आंसू हों या कंधे पर थपथपा कर कोई कहे कि अच्छा है कि तुम आ गए हो. तो ये प्रयास होना चाहिए."
एमजे/एके (रॉयटर्स)