किसी भी भारतीय शहर की हवा अच्छी नहीं: लांसेट
लांसेट प्लेनेट हेल्थ पत्रिका में छपे एक शोध के मुताबिक भारत में ऐसी कोई जगह नहीं है जहां हवा के प्रदूषण का सालाना औसत स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुकूल हो.
कोई जगह सुरक्षित नहीं
लांसेट प्लेनेट हेल्थ में छपे एक अध्ययन के मुताबिक भारत में ऐसी कोई जगह नहीं है जहां वायु प्रदूषण का सालाना औसत स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुरक्षित बताए गए स्तर से नीचे हो.
अपने मानकों पर भी खरा नहीं उतरता देश
इस अध्ययन में यहां तक दिखाया गया है कि भारत की 81.9 प्रतिशत आबादी ऐसे इलाकों में रहती है जहां की वायु गुणवत्ता का स्तर देश के अपने 'नेशनल एम्बिएंट एयर क्वॉलिटी स्टैंडर्ड्स' (एनएएक्यूएस) पर भी खरा नहीं उतरता.
भारत के मानक वैश्विक मानकों से ज्यादा आसान
एनएएक्यूएस के मुताबिक भारत में सुरक्षित वायु गुणवत्ता का मतलब होता है पीएम 2.5 के 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन पांच माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की सिफारिश करता है.
मर रहे लाखों लोग
नए अध्ययन के मुताबिक पीएम2.5 के ऊंचे स्तर की वजह से भारत में हर साल 15 लाख लोगों की मौत हो रही है, जो कुल मौतों का 25 प्रतिशत है. अध्ययन के मुताबिक अगर देश में वायु की गुणवत्ता इन मानकों को हासिल कर भी लेती, तब भी वायु प्रदूषण के प्रति लंबे एक्सपोजर की वजह से तीन लाख लोग हर साल मर ही जाते.
जानलेवा पीएम2.5
अध्ययन में यह भी सामने आया कि पीएम2.5 के स्तर में हर 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की बढ़ोतरी से दूसरे कारणों को मिला कर मौत का खतरा 8.6 प्रतिशत बढ़ जाता है. देश में इसका औसत स्तर 2019 में अरुणाचल प्रदेश के निचले सुबनसिरी जिले में 11.2 से लेकर 2016 में दिल्ली और गाजियाबाद में 119 तक पाया गया.
पुराने हैं भारत के मानक
भारत में विपक्ष ने इन आंकड़ों पर चिंता जताई है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम और एनएएक्यूएस को 2009 में लाया गया था और अब इन्हें अपडेट करने की जरूरत है.