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कितना आसान हो गया है लोगों की जासूसी करना

१९ अक्टूबर २०१६

सरकारी एजेंसियां सोशल मीडिया पर उपलब्ध डाटा का इस्तेमाल कर रही हैं. निजी कंपनियां उनकी मदद कर रही हैं. क्या जासूसी का यह तरीका ठीक है?

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Social Media Team der Polizei
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H.Schmidt

आप कहां जा रहे हैं, क्या खा रहे हैं और यहां तक कि क्या सोच रहे हैं. सरकारों को भी पता है और कंपनियों को भी. चाहे-अनचाहे ये सूचनाएं आप जासूसों को दे रहे हैं. और अगर आपको लगता है कि इन सूचनाओं का इस्तेमाल नहीं हो रहा होगा, तो आप गलतफहमी में जी रहे हैं. फेसबुक और ट्विटर ने बीते सप्ताह डाटा का विश्लेषण करने वाली एक कंपनी जियोफीडिया को अपने ग्राहकों का डेटा लेने से प्रतिबंधित कर दिया. एक गैर सरकारी संस्था के मुताबिक इस कंपनी ने ऐसे लोगों की पहचान करने में अधिकारियों की मदद की जिन्होंने काले लोगों पर हिंसा के खिलाफ आंदोलनों में हिस्सा लिया था.

द अमरेकिन सिविल लिबर्टीज यूनियन ने जियोफीडिया की शिकायत की थी. एसीएलयू का कहना था कि जियोफीडिया ने अमेरिकी पुलिस एजेंसियों को कार्यकर्ताओं के सोशल मीडिया पोस्ट और लोकेशन डाटा उपलब्ध करवाए थे. एसीएलयू ने जियोफीडिया के कुछ दस्तावेज भी जारी किए हैं. ये दस्तावेज दिखाते हैं कि जियोफीडिया ने कैसे इस बात की डींगें हांकी थी कि पुलिस की गोली से एक काले आदमी की मौत के बाद हुए आंदोलनों को उसने पूरी सफलता के साथ कवर किया. ये दस्तावेज दिखाते हैं कि जियोफीडिया के पास ट्विटर का पूरा डेटा मौजूद था जिसका लोकेशन और अन्य मानकों पर विश्लेषण किया गया.

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जियोफीडिया उन दर्जनों कंपनियों में से एक है जो सोशल मीडिया पर उपलब्ध सार्वजनिक सूचनाओं का विश्लेषण करती हैं. सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने पहले भी ऐसी कंपनियों पर लगाम कसने की कोशिशें की हैं. ट्विटर ने कुछ समय पहले ऐनालिटिक टूल डाटामिनर के जरिए लोगों के मेसेज ट्रैक करने से अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को रोक दिया था. लेकिन एसीएलयू इन कदमों से संतुष्ट नहीं है. वह चाहती है कि ऐसे ऐप्स को पूरी तरह ब्लॉक किया जाए तो जासूसी एजेंसियों या पुलिस को निगरानी रखने में मदद कर रहे हैं.

इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन (ईएफएफ) में काम करने वालीं वकील सोफिया कोप कहती हैं कि जो कंपनियां लोगों की निजी जानकारियों का विश्लेषण करती हैं उनकी जिम्मेदारी बनती है कि पता लगाएं, उनके उपलब्ध कराए गए डाटा का इस्तेमाल कौन करेगा. कोप चाहती हैं कि कंपनियों से पूछना चाहिए कि डाटा का इस्तेमाल कौन और कैसे करेगा. हालांकि यह पुरानी बहस है कि सरकारी एजेंसियों को इस डाटा पर कितना अधिकार मिलना चाहिए और कंपनियों को उनकी किस हद तक मदद करनी चाहिए. याहू पर हाल ही में आरोप लगे थे कि वह अमेरिकी अधिकारियों के लिए लोगों के ईमेल स्कैन कर रही है.

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लेकिन सोशल मीडिया का मामला ईमेल से अलग है. यहां लोग जानबूझ कर अपनी मर्जी से सूचनाएं सार्वजनिक कर रहे हैं. लिहाजा सवाल यह है कि इस डाटा को निजी माना जाए या नहीं.

वीके/एके (एएफपी)